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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
[७३] तीन वेदरूप दूसरी प्रतिपत्ति में प्रथम अधिकार भेदविषयक है, इसके बाद स्थिति, संचिट्ठणा, अन्तर और अल्पबहुत्व का अधिकार है । तत्पश्चात् वेदों की बंधस्थिति तथा वेदों का अनुभव किस प्रकार का है, यह वर्णन किया गया है । प्रतिपत्ति-२ का मुनिदीपरत्न सागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
(प्रतिपत्ति-३ "चतुर्विध) [७४] जो आचार्य इस प्रकार कहते हैं कि संसारसमापनक जीव चार प्रकार के हैं, वे ऐसा प्रतिपादन करते हैं, यथा-नैरयिक, तिर्यंचयोनिक, मनुष्य और देव ।
| प्रतिपत्ति-३ नैरयिक उद्देशक-१ | [७५] नैरयिकों का स्वरूप क्या है ? नैरयिक सात प्रकार के हैं, प्रथमपृथ्वीनैरयिक, यावत् सप्तमपृथ्वी नैरयिक ।
[७६] हे भगवन् ! प्रथम पृथ्वी का क्या नाम और क्या गोत्र है ? गौतम ! प्रथम पृथ्वी का नाम 'धम्मा' है और उसका गोत्र रत्नप्रभा है । गौतम ! दूसरी पृथ्वी का नाम वंशा है और गोत्र शर्कराप्रभा है । तीसरी पृथ्वी का नाम शैला, चौथी का अंजना, पांचवीं का रिठा है, छठी का मघा और सातवीं पृथ्वी का नाम माधवती है । इस प्रकार तीसरी पृथ्वी का गोत्र वालुकाप्रभा, चोथी का पंकप्रभा, पांचवीं का धूमप्रभा, छठी का तमःप्रभा और सातवीं का गोत्र मस्तमःप्रभा है ।
[७७] सात पृथ्वीओ के क्रमशः सात नाम इस प्रकार है-धर्मा, वंशा, शैला, अंजना, रिष्टा, मघा और माघवती ।
[७८] सात पृथ्वीओ के क्रमशः सात गोत्र इस प्रकार है-रत्ना, शर्करा, वालुका, पंका, घूमा, तमा और तमस्तमा ।
[७९] भगवन् ! यह रत्नप्रभापृथ्वी कितनी मोटी कही गई है ? गौतम ! यह रत्नप्रभापृथ्वी एक लाख अस्सी हजार योजन मोटी है ।
[८०] 'प्रथम पृथ्वी की मोटाई एक लाख अस्सी हजार योजन की है । दूसरी एक लाख बत्तीस हजार योजन की, तीसरी एक लाख अट्ठाईस हजार योजन की, चौथी एक लाख बीस हजार योजन की, पांचवीं एक लाख अठारह हजार योजन की, छठी एक लाख सोलह हजार योजन की और सातवीं एक लाख आठ हजार योजन की है।
[८१] भगवन् ! यह रत्नप्रभापृथ्वी कितने प्रकार की है ? गौतम ! तीन प्रकार कीखरकाण्ड, पंकबहुलकांड और अपबहुल कांड । भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी का खरकाण्ड कितने प्रकार का है ? गौतम ! सोलह प्रकार का रत्नकांड, वज्रकांड, वैडूर्य, लोहिताक्ष, मसारगल्ल, हंसगर्भ, पुलक, सौगंधिक, ज्योतिरस, अंजन, अंजनपुलक, रजत, जातरूप, अंक, स्फटिक और रिष्ठकांड । भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी का रत्नकाण्ड कितने प्रकार का है ? गौतम ! एक ही प्रकार का है । इसी प्रकार रिष्टकाण्ड तक एकाकार कहना । यावत् पंकबहुलकांड अपबहुलकांड भी एकाकार ही है । इसी तरह शर्कराप्रभा यावत् अधःसप्तमा पृथ्वी भी एकाकार कहना ।