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जीवाजीवाभिगम-२/-/७०
व संख्यातगुण हैं । भरत - ऐरवत कर्मभूमिग मनुष्यपुरुष दोनों यथोत्तर संख्यातगुण हैं, उनसे भरत - एखत कर्मभूमिक मनुष्यस्त्रियां दोनों संख्यातगुण हैं, उनसे पूर्वविदेह - पश्चिमविदेह कर्मभूमिक मनुष्यपुरुष दोनों संख्यातगुण हैं, उनसे पूर्वविदेह - पश्चिमविदेह कर्मभूमिक मनुष्यस्त्रियां दोनों संख्यातगुण हैं, उनसे अनुत्तरोपपातिक देवपुरुष असंख्यातगुण हैं, उनसे उपरिम ग्रैवेयक देवपुरुष संख्यातगुण हैं, उनसे यावत् आनतकल्प के देवपुरुष यथोत्तर संख्यातगुण हैं, उनसे अधः सप्तमपृथ्वी के नैरयिक नपुंसक असंख्यातगुण हैं, उनसे छठी पृथ्वी के नैरयिक नपुंसक असंख्यातगुण हैं, उनसे सहस्रारकल्प में देवपुरुष असंख्यातगुण हैं, उनसे महाशुक्रकल्प के देवपुरुष असंख्यातगुण हैं, उनसे पांचवीं पृथ्वी के नैरयिक नपुंसक असंख्यातगुण हैं, उनसे लान्तककल्प के देवपुरुष असंख्यातगुण हैं, उनसे चौथी पृथ्वी के नैरयिक नपुंसक असंख्यातगुण हैं, उनसे ब्रह्मलोककल्प के देवपुरुष असंख्यातगुण हैं, उनसे तीसरी पृथ्वी के नैरयिक नपुंसक असंख्यातगुण हैं, उनसे माहेन्द्रकल्प के देवपुरुष असंख्यातगुण हैं, उनसे सनत्कुमारकल्प के देवपुरुष असंख्यातगुण हैं, उनसे दूसरी पृथ्वी के नैरयिक नपुंसक असंख्यातगुण हैं,
उनसे अन्तर्द्वीपिक अकर्मभूमिक मनुष्य नपुंसक असंख्यातगुण हैं, उनसे देवकुरुउत्तरकुरु अकर्मभूमिक मनुष्य नपुंसक दोनों संख्यातगुण हैं, यावत् विदेह तक यथोत्तर संख्यातगुण कहना, उनसे ईशानकल्प में देवपुरुष असंख्यातगुण हैं, उनसे ईशानकल्प में देवस्त्रियां संख्यातगुणी हैं, उनसे सौधर्मकल्प में देवस्त्रियां संख्यातगुणी हैं, उनसे भवनवासी देवपुरुष असंख्यातगुण हैं, उनसे भवनवासी देवस्त्रियां संख्यातगुणी हैं, उनसे इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक नपुंसक असंख्यातगुण हैं, उनसे खेचर तिर्यक्योनिक पुरुष संख्यातगुण हैं, उनसे खेचर तिर्यस्त्रियां संख्यातगुणी हैं, उनसे स्थलचर तिर्यक्योनिक पुरुष संख्यातगुण हैं, उनसे स्थलचर तिर्यक्योनिक स्त्रियां संख्यातगुणी हैं, उनसे जलचर तिर्यक्योनिक पुरुष संख्यातगुण हैं, उनसे जलचर तिर्यक्ोनिक स्त्रियां संख्यातगुण हैं, उनसे वानव्यन्तर देव संख्यातगुण हैं, उनसे वानव्यन्तर देवियां संख्यातगुणी हैं, उनसे ज्योतिष्क देवास्त्रियां संख्यातगुण हैं, उनसे खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यक्योकि नपुंसक संख्यातगुण हैं, उनसे स्थलचर ति०यो० नपुंसक संख्यातगुण हैं, उनसे जलचर ति०यो० नपुंसक संख्यातगुण हैं, उनसे चतुरिन्द्रिय नपुंसक विशेषाधिक हैं, उनसे त्रीन्द्रिय नपुंसक विशेषाधिक हैं, उनसे द्वीन्द्रिय नपुंसक विशेपाधिक हैं, उनसे तेजस्कायिक एकेन्द्रिय नपुंसक असंख्यातगुण हैं, उनसे पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय नपुंसक विशेषाधिक हैं, उनसे अपकायिक एकेन्द्रिय नपुंसक विशेषाधिक हैं, उनसे वायुकायिक एकेन्द्रिय नपुंसक विशेषाधिक हैं, उनसे वनस्पतिकायिक एकेन्द्रिय नपुंसक अनन्तगुण हैं।
[ ७१] भगवन् ! स्त्रियों की कितने काल की स्थिति है ? गौतम ! 'एक अपेक्षा से' इत्यादि कथन जो स्त्री- प्रकरण में किया गया है, वही यहाँ कहना । इसी प्रकार पुरुष और नपुंसक की भी स्थिति आदि का कथन पूर्ववत् समझना । तीनों की संचिट्ठणा और तीनों का अन्तर भी जो अपने-अपने प्रकरण में कहा गया है, वही यहाँ कहना ।
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[७२] तिर्यक्योनि की स्त्रियां तिर्यक्योनि के पुरुषों से तीन गुनी और त्रिरूप अधिक हैं । मनुष्यस्त्रियां मनुष्यपुरुषों से सत्तावीसगुनी और सत्तावीसरूप अधिक हैं । देवस्त्रियां देवपुरुषों से बत्तीसगुनी और बत्तीसरूप अधिक हैं ।