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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
क्या हैं ? उरपरिसर्प के पूर्ववत् भेद जानना किन्तु आसालिक नहीं कहना । इन उरपस्सिों की अवगाहना जघन्य से अंगुल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट से एक हजार योजन है। इनकी स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट पूर्वकोटि है । ये मरकर यदि नरक में जाते हैं तो पांचवें नरक तक जाते हैं, सब तिर्यंचों और सब मनुष्यों में भी जाते हैं और सहस्रार देवलोक तक भी जाते हैं । शेष सब वर्णन जलचरों की तरह जानना । यावत् ये चार गति वाले, चार आगति वाले, प्रत्येकशरीरी और असंख्यात हैं ।
भुजपरिसर्प क्या हैं ? भुजपरसिौ के भेद पूर्ववत् कहने चाहिए । चार शरीर, अवगाहना जघन्य से अंगुल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट से दो कोस से नौ कौस तक, स्थिति जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से पूर्वकोटि । शेष स्थानों में उरपरिसरों की तरह कहना । यावत् ये दूसरे नरक तक जाते हैं ।
[४८] खेचर क्या हैं ? खेचर चार प्रकार के हैं, जैसे कि चर्मपक्षी आदि पूर्ववत् भेद कहना । इनकी अवगाहना जघन्य से अंगुल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट से धनुषपृथक्त्व। स्थिति जघन्य से अन्तर्मुहर्त और उत्कृष्ट पल्योपम का असंख्यातवां भाग, शेष सब जलचरों की तरह कहना । विशेषता यह है कि ये जीव तीसरे नरक तक जाते हैं ।
[४९] मनुष्य का क्या स्वरूप है ? मनुष्य दो प्रकार के हैं, यथा-सम्मूर्छिम मनुष्य और गर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्य । भगवन् ! सम्मूर्छिम मनुष्य कहाँ उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! मनुष्य क्षेत्र के अन्दर होते हैं, यावत् अन्तर्मुहूर्त की आयु में मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं । भंते ! उन जीवों के कितने शरीर होते हैं ? गौतम ! तीन, औदारिक, तैजस और कार्मण ।
गर्भज मनुष्यों का क्या स्वरूप है ? गौतम ! गर्भज मनुष्य तीन प्रकार के हैं, कर्मभूमिज, अकर्मभूमिज और अन्तर्वीपज । इस प्रकार मनुष्यों के भेद प्रज्ञापनासूत्र के अनुसार कहना और पूरी वक्तव्यता यावत् छद्मस्थ और केवली पर्यन्त । ये मनुष्य संक्षेप से पर्याप्त और अपर्याप्त रूप से दो प्रकार के हैं | भंते ! उन जीवों के कितने शरीर हैं ? गौतम ! पांच, औदारिक यावत् कार्मण । उनकी शरीरावगाहना जघन्य से अंगुल का असंख्यातवाँ भाग और उत्कृष्ट से तीन कोस की है । उनके छह संहनन और छह संस्थान होते हैं ।
भंते ! वे जीव, क्या क्रोधकषाय वाले यावत् लोभकषाय वाले या अकषाय हैं ? गौतम ! सब तरह के हैं । भगवन् ! वे जीव क्या आहारसंज्ञा वाले यावत् लोभसंज्ञावाले या नोसंज्ञावाले हैं ? गौतम ! सब तरह के हैं । भगवन् ! वे जीव कृष्णलेश्यावाले यावत् शुक्ललेश्या वाले या अलेश्या वाले हैं ? गौतम ! सब तरह के हैं । वे श्रोत्रेन्द्रिय उपयोग वाले यावत् स्पर्शनेन्द्रिय उपयोग और नोइन्द्रिय उपयोग वाले हैं । उनमें सब समुद्धात पाये जाते हैं, वे संज्ञी भी हैं, नोसंज्ञी-असंज्ञी भी हैं । वे स्त्रीवेद वाले भी हैं, पुंवेद, नपुंसकवेद वाले भी हैं और अवेदी भी हैं । इनमें पांच पर्याप्तियां और पांच अपर्याप्तियां होती हैं ।
इनमें तीनों दृष्टियां पाई जाती हैं । चार दर्शन पाये जाते हैं । ये ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी हैं । जो ज्ञानी हैं-वे दो, तीन, चार और एक ज्ञान वाले होते हैं । जो दो ज्ञान वाले हैं, वे नियम से मतिज्ञानी और श्रुतज्ञानी हैं, जो तीन ज्ञानवाले हैं वे मतिज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी हैं अथवा मतिज्ञानी, श्रुतज्ञानी और मनःपर्यवज्ञानी हैं । जो चार