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जीवाजीवाभिगम-१/-/४४
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शरीरावगाहना जघन्य से अंगुल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट धनुषपृथक्त्व है । स्थिति उत्कृष्ट बहत्तर हजार वर्ष की है । यावत् ये खेचर चार गतियों में जानेवाले, दो गतियों से आनेवाले, प्रत्येकशरीरी और असंख्यात हैं ।
[४५] गर्भव्युत्क्रान्तिक पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक क्या हैं ? यह तीन प्रकार के हैं, जलचर, स्थलचर और खेचर |
[४६] (गर्भज) जलचर क्या हैं ? ये जलचर पांच प्रकार के हैं-मत्स्य, कच्छप, मगर, ग्राह और सुंसुमार । इन सबके भेद प्रज्ञापनासूत्र के अनुसार कहना यावत् इस प्रकार के गर्भज जलचर संक्षेप से दो प्रकार के हैं-पर्याप्त और अपर्याप्त । हे भगवन् ! इन जीवों के कितने शरीर कहे गये हैं ? गौतम ! औदारिक, वैक्रिय, तैजस और कार्मण ।
इनकी शरीरावगाहना जघन्य से अंगुल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट से हजार योजन की है । इन जीवों के छह प्रकार के संहनन होते हैं, जैसे कि वज्रऋषभनाराचसंहनन, ऋषभनाराचसंहनन, नाराचसंहनन, अर्धनाराचसंहनन, कीलिकासंहनन, सेवासिंहनन । इन जीवों के शरीर के संस्थान छह प्रकार के हैं-समचतुरस्रसंस्थान, न्यग्रोधपरिमंडलसंस्थान, सादिसंस्थान, कुब्जसंस्थान, वामनसंस्थान और हुंडसंस्थान । इन जीवों के सब कषाय, चारो संज्ञाएँ, छहों लेश्याएँ, पांचों इन्द्रियाँ, शुरू के पांच समुद्घात होते हैं । ये जीव संज्ञी होते हैं । इनमें तीन वेद, छह पर्याप्तियाँ, छह अपर्याप्तियाँ, तीनों दृष्टियां, तीन दर्शन, पाये जाते हैं । ये जीव ज्ञानी भी होते हैं और अज्ञानी भी । जो ज्ञानी हैं उनमें दो या तीन ज्ञान होते है । जो दो ज्ञानवाले हैं वे मति और श्रुतज्ञानवाले हैं । जो तीनज्ञान वाले हैं वे नियम से मतिज्ञानी, श्रुतज्ञानी और
अवधिज्ञानी हैं । इसी तरह अज्ञानी भी जानना। इन जीवों में तीन योग, दोनों उपयोग होते हैं | आहार छहों दिशाओं से करते है ।
___ ये जीव नैरयिकों से यावत् सातवीं नरक से आकर उत्पन्न होते हैं । असंख्यवर्षायु वाले तिर्यंचों को छोड़कर सब तिर्यंचों से भी आकर उत्पन्न होते हैं । अकर्मभूमि, अन्तर्वीप और असंख्यवर्षायु वाले मनुष्यों को छोड़कर शेष सब मनुष्यों से भी आकर उत्पन्न होते हैं । ये सहस्रार तक के देवलोकों से आकर भी उत्पन्न होते हैं । इनकी जघन्य स्थिति अन्तर्मुहुर्त की
और उत्कृष्ट पूर्वकोटी की है । ये दोनों प्रकार के मरण से मरते हैं । ये यहाँ से मर कर सातवीं नरक तक, सब तिर्यंचों और मनुष्यों में और सहस्रार तक के देवलोक में जाते हैं । ये चार गतिवाले, चार आगतिवाले, प्रत्येकशरीरी और असंख्यात हैं।
[४७] (गर्भज) स्थलचर क्या हैं ? (गर्भज) स्थलचर दो प्रकार के हैं, यथा-चतुष्पद और परिसर्प । चतुष्पद क्या हैं ? चतुष्पद चार तरह के हैं, यथा- एक खुवाले आदि भेद प्रज्ञापना के अनुसार कहना । यावत् ये स्थलचर संक्षेप से दो प्रकार के हैं पर्याप्त और अपर्याप्त। इन जीवों के चार शरीर होते हैं । अवगाहना जघन्य से अंगुल का असंख्यातवां भाग
और उत्कृष्ट से छह कोस की है । इनकी स्थिति उत्कृष्ट तीन पल्योपम की है । ये मरकर चौथे नरक तक जाते हैं, शेष सब वक्तव्यता जलचरों की तरह जानना यावत् ये चारों गतियों में जानेवाले और चारों गतियों से आनेवाले हैं, प्रत्येकशरीरी और असंख्यात हैं ।
- परिसर्प क्या हैं ? परिसर्प दो प्रकार के हैं-उत्परिसर्प और भुजपरिसर्प । उपरपरिसर्प