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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
होते हैं । अन्तर्वीपजों में संख्यात वर्ष की और असंख्यात वर्ष की आयु वालों में भी उत्पन्न होते हैं । यदि वे देवों में उत्पन्न हों तो वानव्यन्तर देवों तक उत्पन्न होते हैं । ये जीव चार गति में जाने वाले, दो गतियों से आने वाले, प्रत्येक शरीर वाले और असंख्यात कहे गये हैं।
[४] स्थलचर संमूर्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक कौन हैं ? स्थलचर संमूर्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक दो प्रकार के हैं चतुष्पद स्थलचर और परिसर्प स्थलचर । चतुष्पद स्थलचर ० तिर्यंच कौन हैं ? चतुष्पद स्थलचर० चार प्रकार के हैं, एक खुर वाले, दो खुर वाले, गंडीपद
और सनखदप । यावत् जो इसी प्रकार के अन्य भी चतुष्पद स्थलचर हैं । वे संक्षेप से दो प्रकार के हैं-पर्याप्त और अपर्याप्त । उनके तीन शरीर, अवगाहना जघन्य अंगुल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट दो कोस से नौ कोस तक । स्थिति जघन्य से अन्तर्मुहर्त और उत्कृष्ट चौरासी हजार वर्ष की होती है | शेष सब जलचरों के समान समझना । यावत् ये चार गति में जाने वाले और दो गति में आनेवाले हैं, प्रत्येकशरीरी और असंख्यात हैं ।
परिसर्प स्थलचर० तिर्यंचयोनिक क्या हैं ? परिसर्प स्थलचर० तिर्यंचयोनिक दो प्रकार के हैं, यथा-उरग परिसर्प० और भुजग परिसर्प० । उरग परिसर्प० क्या हैं ? उरग परिसर्प० चार प्रकार के हैं-अहि, अजगर, असालिया और महोरग । अहि कौन हैं ? अहि दो प्रकार के हैं-दर्वीकर और मुकुली । दर्वीकर कौन हैं ? दर्वीकर अनेक प्रकार के हैं, जैसे-आशीविष
आदि यावत् दर्वीकर का पूरा कथन । मुकुली क्या हैं ? मुकुली अनेक प्रकार के हैं, जैसेदिव्य, गोनस यावत् मुकुली का पूरा कथन ।
अजगर क्या हैं ? अजगर एक ही प्रकार के हैं । आसालिक क्या हैं ? प्रज्ञापनासूत्र के अनुसार जानना । महोरग क्या हैं ? प्रज्ञापना के अनुसार जानना । इस प्रकार के अन्य जो उरपरिसर्प जाति के हैं वे संक्षेप से दो प्रकार के हैं-पर्याप्त और अपर्याप्त । विशेषता इस प्रकार-इनकी शरीर अवगाहना जघन्य से अंगुल के असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट योजन पृथक्त्व । स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट तिरपन हजार वर्ष । शेष द्वार जलचरों के समान जानना यावत् ये जीव चार गति में जाने वाले दो गति से आने वाले, प्रत्येकशरीरी और असंख्यात हैं ।
भुजग परिसर्प संमूर्छिम स्थलचर क्या हैं ? भुजग परिसर्प संमूर्छिम स्थलचर अनेक प्रकार के हैं, यथा-गोह, नेवला यावत् अन्य इसी प्रकार के भुजग परिसर्प । ये संक्षेप से दो प्रकार के हैं-पर्याप्त और अपर्याप्त । शगंगवगाहना जघन्य अंगुल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट धनुषपृथक्त्व स्थिति उत्कृष्ट से बयालीस हजार वर्ष | शेष जलचरों की भाँति कहना यावत् ये चार गति में जाने वाले, दो गति से आने वाले, प्रत्येकशरीरी और असंख्यात हैं ।
खेचर का क्या स्वरूप है ? खेचर चार प्रकार के हैं, चर्मपक्षी रोमपक्षी, समुद्गकपक्षी और विततपक्षी । चर्मपक्षी क्या हैं ? चर्मपक्षी अनेक प्रकार के हैं, जैसे-वल्गुली यावत् इसी प्रकार के अन्य चर्मपक्षी । रोमपक्षी क्या हैं ? रोमपक्षी अनेक प्रकार के हैं, यथा-ढंक, कंक यावत् अन्य इसी प्रकार के रोमपक्षी । समुद्गकपक्षी क्या हैं ? ये एक ही प्रकार के हैं । जैसा प्रज्ञापना में कहा वैसा जानना । इसी तरह विततपक्षी भी जानना । ये खेचर संक्षेप से दो प्रकार के कहे गये हैं पर्याप्त और अपर्याप्त इत्यादि पूर्ववत् । विशेषता यह है कि इनकी