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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
जो ज्ञानी हैं वे नियम से दो ज्ञानवाले हैं-मतिज्ञानी और श्रुतज्ञानी । जो अज्ञानी हैं वे नियम से दो अज्ञान वाले हैं मति-अज्ञानी और श्रुत-अज्ञानी । ये जीव, वचनयोग और काययोग वाले हैं । ये जीव आकार-उपयोग वाले भी हैं और अनाकार-उपयोग वाले भी हैं । इन जीवों का आहार नियम से छह दिशाओं के पुद्गलों का है । इनका उपपात नैरयिक, देव और असंख्यात वर्ष की आयुवालों को छोड़कर शेष तिर्यंच और मनुष्यों से होता है । इनकी स्थिति जघन्य से अन्तर्मुहुर्त और उत्कृष्ट से बारह वर्ष की है । ये मारणांतिक समुद्घात से समवहत होकर भी मरते हैं और असमवहत होकर भी । हे भगवन् ! ये मरकर कहाँ जाते हैं ? गौतम ! नैरयिक, देव और असंख्यात वर्ष की आयुवाले तिर्यंचों मनुष्यों को छोड़कर शेष तिर्यंचों मनुष्यों में जाते हैं । अतएव ये जीव दो गति में जाते हैं, दो गति से आते हैं, प्रत्येकशरीरी हैं और असंख्यात हैं ।
[३७] त्रीन्द्रिय जीव कौन हैं ? त्रीन्द्रिय जीव अनेक प्रकार के हैं, औपयिक, रोहिणीत्क, यावत् हस्तिशौण्ड और अन्य भी इसी प्रकार के त्रीन्द्रिय जीव । ये संक्षेप से दो प्रकार के हैंपर्याप्त और अपर्याप्त । इसी तरह वह सब कथन द्वीन्द्रिय समान करना । विशेषता यह है कि त्रीन्द्रिय जीवों की उत्कृष्ट, शरीरावगाहना तीन कोस की है, उनके तीन इन्द्रियां हैं, जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट उनपचास रात-दिन की स्थिति है । यावत् वे दो गतिवाले, दो आगतिवाले, प्रत्येकशरीरी और असंख्यात कहे गये हैं ।
[३८] चतुरिन्द्रिय जीव कौन हैं ? चतुरिन्द्रिय जीव अनेक प्रकार के हैं-यथा अंधिक, पुत्रिक यावत् गोमयकीट और इसी प्रकार के अन्य जीव । ये संक्षेप से दो प्रकार के हैं-पर्याप्त
और अपर्याप्त । हे भगवन् ! उन जीवों के कितने शरीर हैं ? गौतम ! तीन । इस प्रकार पूर्ववत् कथन करना । विशेषता यह है कि उनकी उत्कृष्ट शरीर-अवगाहना चार कोस की है, उनके चार इन्द्रियाँ हैं, वे चक्षुदर्शनी और अचक्षुदर्शनी हैं, उनकी स्थिति उत्कृष्ट छह मास की है । शेष कथन त्रीन्द्रिय जीवों की तरह जानना यावत् वे असंख्यात कहे गये हैं ।
[३९] पंचेन्द्रिय का स्वरूप क्या है ? पंचेन्द्रिय चार प्रकार के हैं, नैरयिक, तिर्यंचयोनिक, मनुष्य और देव ।
[४०] नैरयिक जीवों का स्वरूप कैसा है ? नैरयिक जीव सात प्रकार के हैं, यथा रत्नप्रभापृथ्वी-नैरयिक यावत् अधःसप्तमपृथ्वी-नैरयिक । ये नारक जीव दो प्रकार के हैं-पर्याप्त
और अपर्याप्त । भगवन् ! उन जीवों के कितने शरीर है ? गौतम ! तीन, वैक्रिय, तैजस और कार्मण । भगवन् ! उन जीवों के शरीर की अवगाहना कितनी है ? गौतम ! दो प्रकार की है, यथा भवधारणीय और उत्तरवैक्रिय । इसमें से जो भवधारणीय अवगाहना है वह जघन्य से अंगुल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट से पाँच सौ धनुष । जो उत्तरवैक्रिय शरीरावगाहना है वह जघन्य से अंगुल का संख्यातवां भाग और उत्कृष्ट एक हजार योजन की है ।
भगवन् ! उन जीवों के शरीर का संहनन कैसा है ? गौतम ! एक भी संहनन उनके नहीं है क्योंकि उनके शरीर में न तो हड्डी है, न नाडी है, न स्नायु है । जो पुद्गल अनिष्ट, अकान्त, अप्रिय, अशुभ, अमनोज्ञ और अमनाम होते हैं, वे उनके शरीररूप में इकट्ठे हो जाते हैं । भगवन् ! उन जीवों के शरीर का संस्थान कौनसा है ? गौतम ! उनके शरीर दो प्रकार