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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
का ? गौतम ! वे अपने योग्य पुद्गलों का ही आहार करते हैं । भंते ! क्या वे समीपस्थ पुद्गलों का आहार करते हैं या दूरस्थ पुद्गलों का ? गौतम ! वे समीपस्थ पुद्गलों का ही आहार करते हैं । भंते ! क्या वे तीन दिशाओं, चार दिशाओं, पाँच दिशाओं और छह दिशाओं में स्थित पुद्गलों का आहार करते हैं ? गौतम ! व्याघात न हो तो छहों दिशाओं के पुद्गलों का आहार करते हैं । व्याघात हो तो तीन, चार और कभी पाँच दिशाओं में स्थित पुद्गलों का आहार करते हैं । प्रायः विशेष करके वे जीव कृष्ण, नील यावत् शुक्ल वर्ण वाले पुद्गलों का आहार करते हैं । गन्ध से सुरभिगंध दुरभिगंध वाले, रस से तिक्त यावत् मधुररस वाले, स्पर्श से कर्कश - मृदु यावत् स्निग्ध-रूक्ष पुद्गलों का आहार करते हैं । वे उन आहार्यमाण पुद्गलों के पुराने वर्णगुणों को यावत् स्पर्शगुणों को बदलकर, हटाकर, झटककर, विध्वंसकर उनमें दूसरे अपूर्व वर्णगुण, गन्धगुण, रसगुण और स्पर्शगुणों को उत्पन्न करके आत्मशरीरावगाढ पुद्गलों को सब आत्मप्रदेशों से ग्रहण करते हैं ।
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भगवन् ! वे जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नरक से, तिर्यञ्च से, मनुष्य से या देव से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! तिर्यञ्च से अथवा मनुष्य से आकर उत्पन्न होते हैं । तिर्यञ्च से उत्पन्न होते हैं तो असंख्यातवर्षायु वाले भोगभूमि के तिर्यञ्चों को छोड़कर शेष पर्याप्त अपर्याप्त तिर्यंचों से आकर उत्पन्न होते हैं । मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं तो अकर्मभूमि वाले और असंख्यात वर्षों की आयुवालों को छोड़कर शेष मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार व्युत्क्रान्ति - उपपात कहना ।
उन जीवों की स्थिति कितने काल की है ? गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट से भी अन्तर्मुहूर्त । वे जीव मारणान्तिक समुद्घात से समवहत होकर मरते हैं या असमवहत होकर ? गौतम ! दोनो प्रकार से मरते है ।
भगवन् ! वे जीव अगले भव में कहाँ जाते हैं ? कहाँ उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों में, तिर्यञ्चों में, मनुष्यों में और देवों में उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! तिर्यंचों में अथवा मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं । भंते ! क्या वे एकेन्द्रियों में यावत् पंचेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे एकेन्द्रियों, यावत् पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों में उत्पन्न होते हैं, लेकिन असंख्यात वर्षायुवाले तिर्यंचों को छोड़कर शेष पर्याप्त अपर्याप्त तिर्यंचों में उत्पन्न होते हैं । अकर्मभूमिवाले, अन्तरद्वीपवाले तथा असंख्यात वर्षायुवाले मनुष्यों को छोड़कर शेष पर्याप्त अपर्याप्त मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं । भगवन् ! वे जीव कितनी गति में जानेवाले और कितनी गति से आने वाले हैं ? गौतम ! वे जीव दो गतिवाले और दो आगतिवाले हैं । हे आयुष्मन् श्रमण ! वे जीव प्रत्येक शरीरवाले और असंख्यात लोकाकाश प्रदेश प्रमाण कहे गये हैं ।
[१५] बादर पृथ्वीकायिक क्या हैं ? वे दो प्रकार के हैं-श्लक्ष्ण बादर पृथ्वीकाय और खर बादर पृथ्वीकाय ।
[१६] श्लक्ष्ण बादर पृथ्वीकाय क्या हैं ? श्लक्ष्ण बादर पृथ्वीकाय सात प्रकार के हैंकाली मिट्टी आदि भेद प्रज्ञापनासूत्र अनुसार जानना यावत् वे संक्षेप से दो प्रकार के हैं-पर्याप्त और अपर्याप्त । हे भगवन् ! उन जीवों के कितने शरीर हैं ? गौतम ! तीन, औदारिक, तैजस और कार्मण । इस प्रकार सब कथन पूर्ववत् जानना । विशेषता यह है कि इनके चार लेश्याएँ