________________
१८६
आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
चरम और अचरमसमय-सयोगिकेवलि-क्षीणकषाय-वीतरागचारित्रार्य । अयोगिकेवलि-क्षीणकषायवीतरागचारित्रार्य दो प्रकार के हैं-प्रथम और अप्रथमसमय अथवा चरम और अचरमसमयअयोगिकेवलि-क्षीणकषाय-वीतरागचारित्रार्य । प्रकारान्तर से चारित्रार्य पांच प्रकार के हैं । सामायिक-चारित्रार्य, छेदोपस्थापनिक-चास्त्रिार्य, परिहारविशुद्धिक-चारित्रार्य, सूक्ष्मसम्पराय-चास्त्रिार्य
और यथाख्यात-चारित्रार्य । सामायिक-चारित्रार्य दो प्रकार के हैं-इत्वरिक और यावत्कथित सामायिक-चारित्रार्य । छेदोपस्थापनिक-चास्त्रिार्य दो प्रकार के हैं-सातिचार और निरतिचारछेदोपस्थापनिक-चारित्रार्य । परिहारविशुद्धि-चारित्रार्य दो प्रकार के हैं-निर्विश्यमानक और निर्विष्टकायिक-परिहारविशुद्धि-चारित्रार्य । सूक्ष्मसम्पराय-चारित्रार्य दो प्रकार के हैं-संक्लिश्यमान और विशुद्धयमान । यथाख्यात-चारित्रार्य दो प्रकार के हैं-छद्मस्थ और केवलियथाख्यात ।
[१९१] देव कितने प्रकार के हैं ? चार प्रकार के हैं । भवनवासी, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक । भवनवासी देव दस प्रकार के हैं-असुरकुमार, नागकुमार, सुपर्णकुमार, विद्युत्कुमार, अग्निकुमार, द्वीपकुमार, उदधिकुमार, दिशाकुमार, पवनकुमार और स्तनितकुमार । ये देव संक्षेप में दो प्रकार के हैं । पर्याप्तक और अपर्याप्तक । वाणव्यन्तरदेव आठ प्रकार के हैं । किन्नर, किम्पुरुष, महोरग, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस, भूत और पिशाच । वे संक्षेप में दो प्रकार के हैं; पर्याप्तक और अपर्याप्तक । ज्योतिष्क देव पांच प्रकार के हैं । चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारे । वे देव संक्षेप में दो प्रकार के हैं-पर्याप्तक और अपर्याप्तक ।
वैमानिक देव दो प्रकार के हैं-कल्पोपन्न और कल्पातीत । कल्पोपपन्न देव बारह प्रकार के हैं-सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्मलोक, लान्तक, महाशुक्र, सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण और अच्युत । वे देव संक्षेप में दो प्रकार के हैं । पर्याप्तक और अपर्याप्तक।
कल्पातीत देव दो प्रकार के हैं-अवेयकवासी और अनुत्तरौपपातिक । ग्रैवेयक देव नौ प्रकार के हैं । अधस्तन-अधस्तन-प्रैवेयक, अधस्तन-मध्यम-ग्रैवेयक, अधस्तन-उपरिम-ग्रैवेयक, मध्यम-अधस्तन-प्रैवेयक, मध्यम-मध्यम-ग्रैवेयक, मध्यम-उपरिम-ग्रैवेयक, उपरिम-अधस्तनग्रैवेयक, उपरिम-मध्यम-ग्रैवेयक और उपरिम-उपरिम-ग्रैवेयक । ये संक्षेप में दो प्रकार के हैंपर्याप्तक और अपर्याप्तक । अनुत्तरौपपातिक देव पांच प्रकार के हैं-विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित और सर्वार्थसिद्ध ।
पद-१ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
(पद-२ "स्थान") [१९२] भगवन् ! बादरपृथ्वीकायिक पर्याप्तक जीवों के स्थान कहाँ कहे हैं ? गौतम ! स्वस्थान की अपेक्षा से आठ पृथ्वियों में । रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, वालुकाप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमःप्रभा, तमस्तमःप्रभा और ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी में । अधोलोक में-पातालों, भवनों, भवनों के प्रस्तटों, नरकों, नरकावलियों एवं नरक के प्रस्तटों में । ऊर्ध्वलोक में कल्पों, विमानों, विमानावलियों और विमान के प्रस्तटों में | तिर्यक्लोक में-टंकों, कूटों, शैलों, शिखरीपर्वतों, प्राग्भारों, विजयों, वक्षस्कार पर्वतों, वर्षक्षेत्रों, वर्षधरपर्वतों, वेलाओं, वेदिकाओं, द्वारों, तोरणों, द्वीपों और समुद्रों में । उपपात, समुद्घात में और स्वस्थान की अपेक्षा से लोक के असंख्यातवें भाग में हैं ।