SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 186
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रज्ञापना- १/-/१८९ [१८९] ( सरागदर्शन के) ये आठ आचार हैं - निःशंकित, निष्कांक्षित, निर्विचिकित्स, अमूढदृष्टि, उपबृंहण, स्थिरीकरण, वात्सल्य और प्रभावना । [१९०] वीतरागदर्शनार्य दो प्रकार के हैं । उपशान्तकषाय- वीतरागदर्शनार्य और क्षीणकषाय- वीतरागदर्शनार्य । उपशान्तकषायवीतरागदर्शनार्य दो प्रकार के हैं । प्रथमसमय और अप्रथमसमय-उपशान्तकषाय- वीतरागदर्शनार्य अथवा चरमसमय और अचस्मसमयउपशान्तकषायवीतरागदर्शनार्य । क्षीणकषाय- वीतरागदर्शनार्य दो प्रकार के हैं । छद्मस्थ और केवलि-क्षीणकषायवीतरागदर्शनार्य । छद्मस्थ क्षीणकषाय- वीतरागदर्शनार्य दो प्रकार के हैं । स्वयंबुद्ध और बुद्धबोधितछद्मस्थ-क्षीणकषाय- वीतरागदर्शनार्य । स्वयंबुद्ध-छद्मस्थ- क्षीणकषाय- वीतरागदर्शनार्य दो प्रकार के हैं । प्रथमसमय और अप्रथमसमय अथवा चरमसमय और अचरमसमय- स्वयंबुद्ध-छद्मस्थक्षीणकषाय- वीतराग-दर्शनार्य । बुद्धबोधित - छद्मस्थ-क्षीणकषाय- वीतरागदर्शनार्य दो प्रकार के हैं। प्रथमसमय और अप्रथमसमय अथवा चरमसमय और अचरमसमय-बुद्धबोधित-छद्मस्थक्षीणकषाय- वीतरागदर्शनार्य । १८५ 1 केवल क्षीणकषाय- वीतरागदर्शनार्य दो प्रकार के हैं-सयोगि और अयोगि- केवलिक्षीणकषाय- वीतरागदर्शनार्य । सयोगि- केवलि-क्षीणकषाय- वीतरागदर्शनार्य किस प्रकार के हैं ? सयोगि- केवलि-क्षीणकषाय- वीतरागदर्शनार्य दो प्रकार के हैं । प्रथमसमय और अप्रथमसमय अथवा चरमसमय और अचरमसमय-सयोगिकेवलि-क्षीणकषाय- वीतरागदर्शनार्य । अयोगि- केवलिक्षीणकषाय- वीतरागदर्शनार्य दो प्रकार के हैं । प्रथमसमय और अप्रथमसमय अथवा चरमसमय और अचरमसमय- अयोगिकेवलि-क्षीणकषाय- वीतरागदर्शनार्य । चारित्रार्य दो प्रकार के हैं, सराग और वीतरागचारित्रार्य । सरागचारित्रार्य दो प्रकार के हैं- सूक्ष्म और बादरसम्पराय - सराग चारित्रार्य । सूक्ष्मसम्पराय - सरागचारित्रार्य दो प्रकार के हैंप्रथमसमय और अप्रथमसमय अथवा चरमसमय और अचरमसमय-सूक्ष्मसम्पराय सरागचारित्रार्य । अथवा सूक्ष्मसम्पराय - सरागचारित्रार्य दो प्रकार के हैं । संक्लिश्यमान और विशुद्धयमान । बादरसम्पराय - सराग चारित्रार्य दो प्रकार के हैं- प्रथम और अप्रथमसमय अथवा चरम और अचरमसमय- बादरसम्पराय सराग चारित्रार्य अथवा बादरसम्पराय सराग चारित्रार्य दो प्रकार के हैं। प्रतिपाति और अप्रतिपाती । वीतराग चारित्रार्य दो प्रकार के हैं । उपशान्तकषाय और क्षीणकषाय- वीतराग चारित्रार्य । उपशान्तकषाय- वीतराग चारित्रार्य दो प्रकार के हैं । प्रथम और अप्रथमसमय अथवा चरम और अचरमसमय-उपशान्तकषाय- वीतरागचारित्रार्य । क्षीणकषाय- वीतराग चारित्रार्य दो प्रकार के हैंछद्मस्थ और केवलि - क्षीणकषाय- वीतराग चारित्रार्य | छद्मस्थ-क्षीणकषाय-वीतराग चारित्रार्य दो प्रकार के हैं । स्वयंबुद्ध और बुद्धबोधित । स्वयंबुद्ध-छद्मस्थ-क्षीणकषाय- वीतराग चारित्रार्य दो प्रकार के हैं । प्रथम और अप्रथमसमय अथवा चरम और अचरमसमय- स्वयंबुद्ध- छद्मस्थ- क्षीणकषाय- वीतराग चारित्रार्य । बुद्धबोधितछद्मस्थ-क्षीणकषाय- वीतराग चारित्रार्य दो प्रकार के हैं- प्रथम और अप्रथमसमय अथवा चरम और अचरमसमय- बुद्धबोधित-छद्मस्थ-क्षीणकषाय- वीतराग चारित्रार्य । केवलि - क्षीणकषायवीतराग चारित्रार्य दो प्रकार के हैं-सयोगिकेवलि अयोगिकेवलि । सयोगिकेवलिक्षीणकषाय- वीतरागचारित्रार्य दो प्रकार के हैं- प्रथम और अप्रथमसमय अथवा
SR No.009785
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy