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प्रज्ञापना-२/-/१९२
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भगवन् ! बादरपृथ्वीकायिकों के अपर्याप्तकों के स्थान कहाँ कहे हैं ? गौतम ! बारदपृथ्वीकायिक-पर्याप्तकों के समान उनके अपर्याप्तकों के स्थान हैं । उपपात और समुद्घात की अपेक्षा से समस्त लोक में तथा स्वस्थान की अपेक्षा से लोक के असंख्यातवें भाग में हैं। गौतम ! सूक्ष्मपृथ्वीकायिक, जो पर्याप्तक हैं और जो अपर्याप्तक हैं, वे सब एक ही प्रकार के हैं, विशेषतारहित हैं, नानात्व से रहित हैं और हे आयुष्मन् श्रमणो ! वे समग्र लोक में परिव्याप्त हैं । भगवन् ! बादर अप्कायिक-पर्याप्तकों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! (१) स्वस्थान की अपेक्षा से-सात घनोदधियों और सात घनोदधि-वलयों में | अधोलोक में पातालों में, भवनों में तथा भवनों के प्रस्तटों में । ऊर्ध्वलोक में-कल्पों, विमानों, विमानावलियों और विमानों के प्रस्तटों में हैं । तिर्यग्लोक में अवटों, तालाबों, नदियों, हृदों, वापियों, पुष्करिणियों, दीर्घिकाओं, गुंजालिकाओं, सरोवरों, सरःसरःपंक्तियों, बिलों, उज्झरों, निर्झरों, गड्ढों, पोखरों, वों, द्वीपों, समुद्रों, जलाशयों और जलस्थानों में । उपपात, समुद्घात और स्वस्थान की अपेक्षा से लोक के असंख्यातवें भाग में होते हैं ।
भगवन् ! बादर-अप्कायिकों के अपर्याप्तकों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! बादरअप्कायिक-पर्याप्तकों के स्थान समान उनके अपर्याप्तकों के स्थान हैं । उपपात और समुद्घात की अपेक्षा से सर्वलोक में और स्वस्थान की अपेक्षा से लोक के असंख्यातवें भाग में होते हैं । भगवन् ! सूक्ष्म-अप्कायिकों के पर्याप्तकों और अपर्याप्तकों के स्थान कहाँ कहे हैं ? गौतम ! सूक्ष्म-अप्कायिकों के जो पर्याप्तक और अपर्याप्तक हैं, वे सभी एक प्रकार के और नानात्व से रहित हैं, वे सर्वलोकव्यापी हैं ।
___ भगवन् ! बादर तेजस्कायिक-पर्याप्तक जीवों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! स्वस्थान की अपेक्षा से मनुष्यक्षेत्र के अन्दर ढाई द्वीप-समुद्रों में, नियाघात से पन्द्रह कर्मभूमियों में, व्याघात से-पांच महाविदेहों में । उपपात की अपेक्षा से लोक, समुद्घात तथा स्वस्थान की अपेक्षा से लोक के असंख्यातवें भाग में हैं । भगवन् ! बादर तेजस्कायिकों के अपर्याप्तकों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! बादर तेजस्कायिकों के पर्याप्तकों के स्थान समान उनके अपर्याप्तकों के स्थान हैं । उपपात की अपेक्षा से (वे) लोक के दो ऊर्ध्वकपाटों में तथा तिर्यग्लोक के तट्ट में एवं समुद्घात की अपेक्षा से सर्वलोक में तथा स्वस्थान की अपेक्षा से लोक के असंख्यातवें भाग में होते हैं । भगवन् ! सूक्ष्म तेजस्कायिकों के पर्याप्तकों और अपर्याप्तकों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! सूक्ष्म तेजस्कायिक, जो पर्याप्त और अपर्याप्त हैं, वे सब एक ही प्रकार के, अविशेष और नानात्व रहित है, वे सर्वलोकव्यापी हैं ।
[१९३] भगवन् ! बादर वायुकायिक-पर्याप्तकों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! स्वस्थान की अपेक्षा से सात घनवात, सात घनवातवलय, सात तनुवात और सात तनुवातवलयों में । अधोलोक में पातालों, भवनों, भवनों के प्रस्तटों, भवनों के छिद्रों, भवनों के निष्कुट प्रदेशों, नरकों में, नरकावलियों, नरकों के प्रस्तटों, छिद्रों और नरकों के निष्कुट-प्रदेशों में । उर्ध्वलोक में-कल्पों, विमानों, विमानों के छिद्रों और विमानों के निष्कुट-प्रदेशों में । तिर्यग्लोक में-पूर्व, पश्चिम, दक्षिण और उत्तर में समस्त लोकाकाश के छिद्रों में, तथा लोक के निष्कुट-प्रदेशों में, हैं । उपपात की अपेक्षा से-लोक, समुद्घात तथा स्वस्थान की अपेक्षा से लोक के असंख्येयभागों में हैं ।