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जीवाजीवाभिगम-३/वैमा.-२/३३०
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देवलोक तक करना । आगे के आनतादि चार कल्पों में, ग्रैवेयकों में तथा अनुत्तर विमानों के देवों को समय-समय में एक-एक का अपहार करने का क्रम पल्योपम के असंख्यातवें भाग तक चलता रहे तो उनका अपहार हो सकता है । लेकिन ये कल्पनामात्र है । भगवन् ! सौधर्म
और ईशान कल्प में देवों के शरीर की अवगाहना कितनी है ? गौतम ! उनके दो प्रकार के शरीर हैं-भवधारणीय और उत्तरवैक्रिय, उनमें भवधारणीय शरीर की अवगाहना जघन्य से अंगुल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट से सात हाथ है । उत्तरवैक्रिय शरीर की अपेक्षा से उत्कृष्ट एक लाख योजन है । इस प्रकार आगे-आगे के कल्पों में एक-एक हाथ कम करते जाना, यावत् अनुत्तरोपपातिक देवों की एक हाथ की अवगाहना रह जाती है । ग्रैवेयकों और अनुत्तर विमानों में केवल भवधारणीय शरीर होता है । वे देव उत्तरविक्रिया नहीं करते ।
[३३१] भगवन् ! सौधर्म-ईशानकल्प में देवों के शरीर का संहनन कौनसा है ? गौतम ! एक भी नहीं; क्योंकि उनके शरीर में न हड्डी होती है, न शिराएं होती हैं और न नसें ही होती हैं । जो पुद्गल इष्ट, कान्त यावत् मनोज्ञ-मनाम होते हैं, वे उनके शरीर रूप में एकत्रित होकर तथारूप में परिणत होते हैं । यही कथन अनुत्तरोपपातिक देवों तक कहना । भगवन् ! सौधर्म-ईशानकल्प में देवों के शरीर का संस्थान कैसा है ? गौतम ! उनके शरीर दो प्रकार के हैं-भवधारणीय और उत्तरवैक्रिय । जो भवधारणीय शरीर है, उसका समचतुरस्रसंस्थान है और जो उत्तरवैक्रिय शरीर है, उनका संस्थान नाना प्रकार का होता है । यह कथन अच्युत देवलोक तक कहना । ग्रैवेयक और अनुत्तर विमानों के देव उत्तर-विकुर्वणा नहीं करते । उनका भवधारणीय शरीर समचतुरस्रसंस्थान वाला है ।
३३२] भगवन् ! सौधर्म-ईशान के देवों के शरीर का वर्ण कैसा है ? गौतम ! तपे हुए स्वर्ण के समान लाल आभायुक्त । सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्प के देवों का वर्ण पद्म, कमल के पराग के समान गौर है । ब्रह्मलोक के देव गीले महए के वर्ण वाले (सफेद) हैं । इसी प्रकार ग्रैवेयक देवों तक सफेद वर्ण कहना । अनुत्तरोपपातिक देवों के शरीर का वर्ण परमशुक्ल है । भगवन् ! सौधर्म-ईशान कल्पों के देवों के शरीर की गंध कैसी है ? गौतम! कोष्ठपुट आदि सुगंधित द्रव्यों की सुगंध भी अधिक इष्ट, कान्त यावत् मनाम उनके शरीर की गंध होती है । अनुत्तरोपपातिक देवों पर्यन्त ऐसा ही कहना ।
सौधर्म-ईशान कल्पों के देवों के शरीर का स्पर्श मृदु, स्निग्ध और मुलायम छविवाला है । इसी प्रकार अनुत्तरोपपातिकदेवों पर्यन्त कहना । सौधर्म-ईशान देवों के श्वास के रूप में इष्ट, कान्त, प्रिय, मनोज्ञ पुद्गल परिणत होते हैं । यही कथन अनुत्तरोपपातिकदेवों तक कहना तथा यही बात उनके आहार रूप में परिणत होनेवाले पुद्गलों में जानना । यही कथन अनुत्तरोपपातिकदेवों पर्यन्त समझना । सौधर्म-ईशान देवलोक के देवों के मात्र एक तेजोलेश्या होती है । सनत्कुमार, माहेन्द्र और ब्रह्मलोक में पद्मलेश्या होती है । शेष सब में केवल शुक्ललेश्या होती है । अनुत्तरोपपातिकदेवों में परमशुक्ललेश्या होती है ।
___ भगवन् ! सौधर्म-ईशान कल्प के देव सम्यग्दृष्टि हैं, मिथ्यादृष्टि हैं या सम्यगमिथ्यादृष्टि हैं ? गौतम ! तीनों प्रकार के हैं । ग्रैवेयक विमानों तक के देव तीनों दृष्टिवाले हैं । अनुत्तर विमानों के देव सम्यग्दृष्टि ही होते हैं । भगवन् ! सौधर्म-ईशान कल्प के देव ज्ञानी हैं या अज्ञानी ? गौतम ! दोनों प्रकार के हैं । जो ज्ञानी हैं वे नियम से तीन ज्ञानवाले हैं और जो