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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
अज्ञानी हैं वे नियम से तीन अज्ञानवाले हैं । यह कथन अवेयकविमान तक करना । अनुत्तरोपपातिकदेव ज्ञानी ही हैं । उनमें तीन ज्ञान नियमतः होती ही हैं । इसी प्रकार उन देवों में तीन योग और दो उपयोग भी कहना । सौधर्म-ईशान से अनुत्तरोपपातिक पर्यन्त सब देवों में तीन योग और दो उपयोग पाये जाते हैं ।
[३३३] भगवन् ! सौधर्म-ईशान कल्प के देव अवधिज्ञान के द्वारा कितने क्षेत्र को जानते हैं-देखते हैं ? गौतम ! जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्र को और उत्कृष्ट से नीची दिशा में रत्नप्रभापृथ्वी तक, ऊर्ध्वदिशा में अपने-अपने विमानों के ऊपरी भाग ध्वजा-पताका तक और तिरछीदिशा में असंख्यात द्वीप-समुद्रों को जानते-देखते हैं ।।
[३३४] शक्र और ईशान प्रथम नरकपृथ्वी के चरमान्त तक, सनत्कुमार और माहेन्द्र दूसरी पृथ्वी के चरमान्त तक, ब्रह्म और लांतक तीसरी पृथ्वी तक, शुक्र और सहस्रार चौथी पृथ्वी तक ।
[३३५] आणत-प्राणत-आरण-अच्युत कल्प के देव पांचवीं पृथ्वी तक अवधिज्ञान के द्वारा जानते-देखते हैं ।
[३३६] अधस्तनौवेयक, मध्यमग्रैवेयक देव छठी नरक पृथ्वी के चरमान्त तक, उपरितनग्रैवेयक देव सातवीं नरकपृथ्वी तक और अनुत्तरविमानवासी देव सम्पूर्ण चौदह रज्जू प्रमाण लोकनाली को जानते-देखते हैं ।
[३३७] भगवन् ! सौधर्म-ईशानकल्पों में देवों में कितने समुद्घात हैं ? गौतम ! पांच, वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात, मारणान्तिकसमुद्घात, वैक्रियसमुद्घात और तेजससमुद्घात । इसी प्रकार अच्युतदेवलोक तक कहना । ग्रैवेयकदेवों के आदि के तीन समुद्घात कहे गये हैंभगवन् ! सौधर्म-ईशान देवलोक के देव कैसी भूख-प्यास का अनुभव करते हैं ? गौतम ! उन देवों को भूख-प्यास की वेदना होती ही नहीं है । अनुत्तरोपपातिकदेवों पर्यन्त ऐसा कहवा । भगवन् ! सौधर्म-ईशानकल्पों के देव एकरूप की विकुर्वणा करने में समर्थ हैं या बहुत रूपों की हैं ? गौतम ! दोनों प्रकार की । एक की विकुर्वणा करते हुए वे एकेन्द्रिय यावत् पंचेन्द्रिय का रूप बना सकते हैं और बहुरूप की विकुर्वणा करते हुए वे बहुत सारे एकेन्द्रिय यावत् पंचेन्द्रिय रूपों की विकुर्वणा कर सकते हैं । वे संख्यात अथवा असंख्यात सरीखे या भिन्नभिन्न और संबद्ध असंबद्ध नाना रूप बनाकर इच्छानुसार कार्य करते हैं । ऐसा कथन अच्युतदेवों पर्यन्त कहना ।
. भगवन् ! ग्रैवेयकदेव और अनुत्तर विमानों के देव एक रूप बनाने में समर्थ हैं या बहुत रूप हैं ? गौतम ! दोनो । लेकिन उन्होंने ऐसी विकुर्वणा न तो पहले कभी की है, न वर्तमान में करते हैं और न भविष्य में कभी करेंगे । भगवन् ! सौधर्म-ईशानकल्प के देव किस प्रकार का साता-सौख्य अनुभव करते हुए विचरते हैं ? गौतम ! मनो शब्द यावत् मनोज्ञ स्पर्शों द्वारा सुख का अनुभव करते हुए । ग्रैवेयकदेवों तक यही समझना । अनुत्तरोपपातिकदेव अनुत्तर शब्द यावत् स्पर्शजन्य सुखों का अनुभव करते हैं । भगवन् ! सौधर्म-ईशान देवों की ऋद्धि कैसी है ? गौतम ! वे महान् ऋद्धिवाले, महाधुतिवाले यावत् महाप्रभावशाली ऋद्धि से युक्त हैं । अच्युतविमान पर्यन्त ऐसा कहना । ग्रैवेयकविमानों और अनुत्तरविमानों में सब देव महान् ऋद्धिवाले यावत् महाप्रभावशाली हैं । वहां कोई इन्द्र नहीं है । सब “अहमिन्द्र" हैं ।