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________________ १४२ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद और त्रिकोण । [३३०] भगवन् ! सौधर्म-ईशानकल्प में विमानों की लम्बाई-चौड़ाई कितनी है ? उनकी परिधि कितनी है ? गौतम ! वे विमान दो तरह के हैं-संख्यात योजन विस्तारवाले और असंख्यात योजन विस्तारवाले । नरकों के कथन समान यहां कहना; यावत् अनुत्तरोपपातिकविमान दो प्रकार के हैं-संख्यात योजन विस्तार वाले और असंख्यात योजन विस्तार वाले । जो संख्यात योजन विस्तार वाले हैं वे जम्बूद्वीप प्रमाण हैं और जो असंख्यात योजन विस्तार वाले हैं वे असंख्यात हजार योजन विस्तार और परिधि वाले कहे गये हैं । भगवन् ! सौधर्म-ईशानकल्प में विमान कितने रंग के हैं ? गौतम पांचों वर्ण के यथा कृष्ण यावत् शुक्ल। सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्प में चार वर्ण के हैं-नील यावत् शुक्ल | ब्रह्मलोक एवं लान्तक कल्पों में तीन वर्ण के हैं लाल यावत् शुक्ल । महाशुक्र एवं सहस्रार कल्प में दो रंग के हैं-पीले और शुक्ल । आनत प्राणत आरण और अच्युत कल्पों में सफेद वर्ण के हैं । ग्रैवेयकविमान भी सफेद हैं । अनुत्तरोपपातिकविमान परम-शुक्ल वर्ण के हैं। भगवन् ! सौधर्म-ईशानकल्प में विमानों की प्रभा कैसी है ? गौतम ! वे विमान नित्य स्वयं की प्रभा से प्रकाशमान और नित्य उद्योत वाले हैं यावत् अनुत्तरोपपातिकविमान तक ऐसा ही जानना । भगवन् ! सौधर्म-ईशानकल्प में विमानों की गंध कैसी हैं ? गौतम ! कोष्ठपुटादि सुगंधित पदार्थों की गंध भी इष्टतर उनकी गंध है, अनुत्तरविमान पर्यन्त ऐसा ही कहना । भगवन् ! सौधर्म-ईशानकल्प में विमानों का स्पर्श कैसा है ? गौतम ! अजिन चर्म, रूई आदि का मूदुल स्पर्श से भी इष्टतर कहना अनुत्तररोपपातिकविमान पर्यन्त ऐसा ही कहना । भगवन् ! सौधर्म-ईशानकल्प में विमान कितने बड़े हैं ? गौतम ! कोइ देव जो चुटकी बजाते ही इस एक लाख योजन के लम्बे-चौड़े और तीन लाख योजन से अधिक की परिधि वाले जम्बूद्वीप की २१ बार प्रदक्षिणा कर आवे, ऐसी शीघ्रतादि विशेषणों वाली गति से निरन्तर छह मास चलता रहे, तब वह कितनेक विमानों के पास पहुंच सकता है, उन्हें लांघ सकता है और कितनेक उन विमानों को नहीं लांघ सकता है । इसी प्रकार का कथन अनुत्तरोपपातिक विमानों तक के लिए समझना । सौधर्म-ईशानकल्प के विमान सर्वरत्नमय हैं । उनमें बहुत से जीव और पुद्गल पैदा होते हैं, च्यवित होते हैं, इक्ठे होते हैं और वृद्धि को प्राप्त करते हैं । वे विमान द्रव्यार्थिकनय की अपेक्षा से शाश्वत हैं और स्पर्श आदि पर्यायों की अपेक्षा अशाश्वत हैं । ऐसा ही अनुत्तरोपपातिक विमानों तक समझना । सम्मूर्छिम जीवों को छोड़कर शेष पंचेन्द्रिय तिर्यंचों और मनुष्यों में से आकर जीव सौधर्म और ईशान में देवरूप से उत्पन्न होते हैं । प्रज्ञापना के छठे व्युत्क्रान्तिपद समान उत्पाद कहना । भगवन् ! सौधर्म-ईशानकल्प में एक समय में कितने देव उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! जघन्य एक, दो, तीन और उत्कृष्ट संख्यात और असंख्यात । यह कथन सहस्रार देवलोक तक कहना । आनत आदि चार कल्पों में, नवग्रैवेयकों में और अनुत्तरविमानों में यावत् उत्कृष्ट संख्यात जीव उत्पन्न होते हैं । भगवन् ! सौधर्म-ईशानकल्प के देवों में से यदि प्रत्येक समय में एक-एक का अपहार किया जाये तो कितने काल में वे खाली होंगे ? गौतम ! वे देव असंख्यात हैं अतः यदि एक समय में एक देव का अपहार किया जाये तो असंख्यात उत्सर्पिणियों अपसर्पिणियों तक अपहार तो भी वे खाली नहीं होते । उक्त कथन सहस्रार
SR No.009785
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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