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________________ ५२ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद इसी प्रकार तेरह अध्ययनों के तेरह कुमारों के विषय में जानना । ये सब राजगृह नगर में उत्पन्न हुए । महाराज श्रेणिक और महाराणी धारिणी देवी के पुत्र थे । सोलह वर्ष तक संयम पालन किया । इसके अनन्तर क्रम से दो विजय विमान, दो वैजयन्त विमान, दो जयन्त विमान और दो अपराजित विमान में उत्पन्न हुए । शेष महाद्रुमसेन आदि पांच सर्वार्थसिद्ध विमान में उत्पन्न हुए । हे जम्बू ! इस प्रकार श्रमण भगवान् महावीर ने अनुत्तरोपपातिक-दशा के द्वितीय वर्ग का अर्थ प्रतिपादन किया है। वर्ग-२ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण वर्ग-३ । [७] हे भगवन् ! यदि श्रमण भगवान् महावीर ने अनुत्तरोपपातिक-दशा के द्वितीय वर्ग का उक्त अर्थ प्रतिपादन किया है, तो हे भगवन् ! अनुत्तरोपपातिक-दशा के तृतीय वर्ग का क्या अर्थ प्रतिपादन किया है ? हे जम्बू ! मोक्ष को प्राप्त हुए श्रमण भगवान् महावीर ने अनुत्तरोपपातिक-दशा के तृतीय वर्ग के दश अध्ययन प्रतिपादन किये हैं, जैसे [८] धन्य, सुनक्षत्र, ऋषिदास, पेल्लक कुमार, रामपुत्र, चन्द्रिका और पृष्टिमातृका कुमार। [१] पेढालपुत्र, पृष्टिमायी और वेहल्ल कुमार । ये तृतीय वर्ग के दश अध्ययन कहे गये हैं। वर्ग-३ अध्ययन-१ [१०] हे भगवन् ! यदि श्रमण भगवान् महावीर ने, अनुत्तरोपपातिक-दशा के तृतीय वर्ग के दश अध्ययन प्रतिपादन किये हैं तो फिर हे भगवन् ! प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ प्रतिपादन किया है ? हे जम्बू ! उस काल और उस समय में काकन्दी नगरी थी । वह सब तरह के ऐश्वर्य और धन-धान्य से परिपूर्ण थी । सहस्त्राम्रवन नाम का उद्यान था, जो सब ऋतुओं में फल और फूलों से भरा रहता था । जितशत्रु राजा था । भद्रा सार्थवाहिनी थी । वह अत्यन्त समृद्धिशालिनी और धन-धान्य में अपनी जाति और बराबरी के लोगों में किसी से किसी प्रकार भी परिभृत नहीं थी । उस भद्रा सार्थवाहिनी का धन्य नाम का एक सर्वाङ्गपूर्ण और रूपवान् पुत्र था । उसके पालन-पोषण करने के लिए पांच धाइयां नियत थीं । शेष वर्णन महाबल कुमार समान जानना । इस प्रकार धन्य कुमार सब भोगों को भोगने में समर्थ हो गया । इसके अनन्तर भद्रा सार्थवाहिनी ने धन्य कुमार को बालकपन से मुक्त और सब तरह के भोगों को भोगने में समर्थ जानकर बत्तीस बड़े बड़े अत्यन्त ऊँचे और श्रेष्ठ भवन बनवाये। उनके मध्य में एक सैकड़ों स्तम्भों से युक्त भवन बनवाया । फिर बत्तीस श्रेष्ठ कुलों की कन्याओं से एक ही दिन उसका पाणि-ग्रहण कराया । उनके साथ बत्तीस (दास, दासी और धन-धान्य से युक्त) प्रीतिदान मीला। तदनन्तर धन्य कुमार अनेक प्रकार के मृदङ्ग आदि वाद्यों की ध्वनि से गुज्जित प्रासादों के ऊपर पञ्च-विध सांसारिक सुखों का अनुभव करते हुए विचरण करने लगा । उस काल और उस समय में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी वहां विराजमान हुए । नगरी की परिषद् वन्दना के लिये गई । कोणिक राजा के समान जितशत्रु राजा भी गया ।
SR No.009784
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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