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अनुत्तरोपपातिकादशा-१/-/9
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अनगार के धर्म- आचार आदि साधन के उपकरण हैं । भगवान् गोतम ने प्रश्न किया " हे भगवन् ! भद्र-भगवान् महावीर की सेवा में उपस्थित होकर उन्होंने सविनय निवेदन किया कि हे भगवन् ! ये जालि प्रकृति और विनयी वह आप का शिष्य जालि अनगार मृत्यु के अनन्तर कहां गया ? कहां उत्पन्न हुआ ?" "हे गौतम ! जालि अनगार चन्द्र से और बारह कल्प देवलोकों से नव ग्रैवेयक विमानों का उल्लङ्घन कर विजय - विमान में देव रूप से उत्पन्न हुआ है ।" "हे भगवन् ! उस जालि देव की वहां कितनी स्थिति है ?" "हे गौतम! की वहां बत्तीस सागरोपम की स्थिति है" "हे भगवन् ! वह जालिदेव उस देवलोक से आयु, भव और स्थिति क्षय होने पर कहां जायगा ?" "हे गौतम ! वह महाविदेह क्षेत्र में सिद्धिगति प्राप्त करेगा । हे जम्बू ! इस प्रकार श्रमण भगवान् महावीर ने अनुत्तरोपपातिक दशा के प्रथम वर्ग के प्रथम अध्ययन का अर्थ प्रतिपादन किया है ।
[२] इसी प्रकार शेष नौ अध्ययनों में भी जानना । विशेषता इतनी कि अवशिष्ट कुमारों में से सात धारिणी देवी के पुत्र थे, वेहल्ल और वेहायस कुमार चेल्लणा देवी के पुत्र थे। पहले पांच ने सोलह वर्ष तक, तीन ने बारह वर्ष और दो ने पांच वर्ष तक संयम पर्याय का पालन किया था । पहले पांच क्रम से विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित और सर्वार्थसिद्ध विमानों में, दीर्घदन्त सर्वार्थसिद्ध में और अभयकुमार विजय विमान में उत्पन्न हुए और शेष प्रथम अध्ययन अनुसार जानना । अभयकुमार के विषय में इतनी विशेषता है कि वह राजगृह नगर में उत्पन्न हुआ था और श्रेणिक राजा तथा नन्दादेवी उसके पिता-माता थे । शेष पूर्ववत् । हे जम्बू ! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने अनुत्तरोपपातिक - दशा के प्रथम वर्ग का यह अर्थ प्रतिपादन किया है ।
वर्ग-१ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
वर्ग - २
[३] हे भगवन् ! यदि श्रमण भगवान् महावीरने अनुत्तरोपपातिक-द 5- दशा के प्रथम वर्ग का पूर्वोक्त अर्थ प्रतिपादन किया है तो श्रमण भगवान् महावीरने अनुत्तरोपपातिक - दशा के द्वितीय वर्ग का क्या अर्थ प्रतिपादन किया है ? हे जम्बू ! द्वितीय वर्ग के तेरह अध्ययन प्रतिपादन किये हैं जैसे
[४] दीर्घसेन, महासेन, लष्टदन्त, गूढदन्त, शुद्धदन्त, हल्ल, द्रुम, द्रुमसेन, और महाद्रुमसेन कुमार । तथा
[५] सिंह, सिंहसेन, महासिंहसेन और पुण्यसेन कुमार । इस प्रकार द्वितीय वर्ग के तेरह अध्ययन होते हैं ।
[६] हे भगवन् ! यदि श्रमण भगवान् महावीरने अनुत्तरोपपातिक- दशा के द्वितीय वर्ग के तेरह अध्ययन प्रतिपादन किये हैं तो फिर हे भगवन् ! द्वितीय वर्ग के प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ प्रतिपादन किया है ? हे जम्बू ! उस काल और उस समय में राजगृह नगर था । शैलक चैत्य था । श्रेणिक राजा था । धारिणी देवी थी । उसने सिंह का स्वप्न देखा । जल कुमार समान, जन्म हुआ, बालकपन रहा और कलाएं सीखीं । विशेषता इतनी कि नाम दीर्घसेनकुमार रखा गया । यावत् महाविदेह क्षेत्र में मोक्ष प्राप्त करेगा इत्यादि ।