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________________ राजप्रश्न- २९ २२५ बन्धे हैं यावत् पद्म-कमलों के झूमकों-गुच्छों से उपशोभित हैं । उन तोरणों में से प्रत्येक के आगे दो-दो पुतलियां स्थित हैं । पुतलियों का वर्णन पूर्ववत् । उन तोरणों के आगे दो-दो नागदन्त हैं । मुक्तादाम पर्यन्त इनका वर्णन पूर्ववर्णित नागदन्तों के समान जानना । उन तोरणों के आगे दो-दो अश्व, गज, नर, किन्नर, किंपुरुष, महोरग, गन्धर्व और वृषभ संघाट हैं। ये सभी रत्नमय, निर्मल यावत् असाधारण रूप-सौन्दर्य वाले हैं । इसी प्रकार से इनकी पंक्ति वीथि और मिथुन स्थित हैं । उन तोरणों के आगे दो-दो पद्मलतायें यावत् श्यामलतायें हैं । ये सभी लतायें पुष्पों से व्याप्त और रत्नमय, निर्मल यावत् असाधारण मनोहर हैं । उन तोरणों के अग्र भाग में दोदो दिशा- स्वस्तिक रखे हैं, जो सर्वात्मना रत्नों से बने हुए, निर्मल यावत् प्रतिरूप हैं । उन तोरणों के आगे दो-दो चन्दनकलश कहे हैं । ये चन्दनकलश श्रेष्ठ कमलों पर स्थापित हैं, इत्यादि वर्णन पूर्ववत् । उन तोरणों के आगे दो-दो भृंगार हैं । ये भृंगार भी उत्तम कमलों पर रखे हुए हैं यावत् हे आयुष्यमन् श्रमणो ! मत्त गजराज की मुखाकृति के समान विशाल आकार वाले हैं । उन तोरणों के आगे दो-दो आदर्श-दर्पण रखे हैं । इनकी पाठपीठ सोने की है, प्रतिबिम्ब मण्डल अंक रत्न के हैं और अनघिसे होने पर भी ये दर्पण अपनी स्वाभाविक निर्मल प्रभा से युक्त हैं । चन्द्रमण्डल सरीखे ये निर्मल दर्पण ऊंचाई में कायार्ध जितने बड़े-बड़े हैं । उन तोरणों के आगे वज्रमय नाभि वाले दो-दो थाल रखे हैं । ये सभी थाल मूशल आदि से तीन बार छांटे गये, शोध गये, अतीव स्वच्छ निर्मल अखण्ड तंदुलों-चावलों से परिपूर्ण भरे हुए से प्रतिभासित होते हैं । हे आयुष्मन् श्रमणो ! ये थाल जम्बूनद-स्वर्णविशेषसे बने हुए यावत् अतिशय रमणीय और रथ के पहिये जितने विशाल गोल आकार के हैं । उन तोरणों के आगे दो-दो पात्रियाँ रखी हैं । ये पात्रियां स्वच्छ निर्मल जल से भरी हुई हैं और विविध प्रकार के सद्य-ताजे हरे फलों से भरी हुई-सी प्रतिभासित होती हैं । हे आयुष्मन् श्रमणो ! ये सभी पात्रियां रत्नमयी, निर्मल यावत् अतीव मनोहर हैं और इनका आकार बड़ेबड़े गोकलिंजरों के समान गोल हैं । तोरणों के आगे दो दो सुप्रतिष्ठकपात्र विशेष रखे हैं । प्रसाधन-श्रृंगार की साधन भूत औषधियों आदि से भरे हुए भांडों से सुशोभित हैं और सर्वात्मना रत्नों से बने हुए, निर्मल यावत् अतीव मनोहर हैं । उन तोरणों के आगे दो-दो मनोगुलिकायें हैं । इन पर अनेक सोने और चांदी के पाटिये जड़े हुए हैं और उन पर वज्र रत्नमय नागदन्त लगे हैं एवं उन नागदन्तों के ऊपर वज्ररत्नमय छीके टंगे हैं । उन छींकों पर काले, नीले, लाल, पीले और सफेद सूत के जालीदार वस्त्र खण्ड से ढँके हुए वातकरक रखे हैं । ये सभी वातकरक वज्ररत्नमय, स्वच्छ यावत् अतिशय सुन्दर हैं । उन तोरणों के आगे चित्रामों से युक्त दो-दो ( रत्नकरंडक ) रखे हैं । जिस तरह चातुरंत चक्रवर्ती राजा का वैडूर्यमणि से बना एवं स्फटिक मणि के पटल से आच्छादितं अद्भूत - आश्चर्यजनक रत्नकरंडक अपनी प्रभा से उस प्रदेश को पूरी तरह से प्रकाशित, उद्योतित, तापित और प्रभासित करता है, उसी प्रकार ये रत्नकरंडक भी अपनी प्रभा से अपने निकटवर्ती प्रदेश को सर्वात्मना प्रकाशित, उद्योतित, तापित, और प्रभासित करते हैं । उन तोरणों के आगे दो-दो अश्वकंठ, गजकंठ, नरकंठ, किन्नरकंठ, किंपुरुषकंठ, महोरगकंठ, गंधर्वकंठ और वृषभकंठ रखे हैं । ये सब सर्वथा रत्नमय, स्वच्छ-निर्मल यावत् असाधारण सुन्दर हैं । उन तोरणों के आगे दो-दो पुष्प - चंगेरिकायें माल्यचंगेरिकायें, चूर्ण चंगेरिकायें गन्ध चंगेरिकायें, वस्त्र चंगेरिकायें, आभरण चंगेरिकायें, सिद्धार्थ की चंगेरिकायें एवं 6 15
SR No.009784
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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