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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
नयनान्तभाग वाली, सुकोमल, अतीव निर्मल, शोभनीक सघन धुंघराली काली-काली कजरारी केशराशि वाली, उत्तम अशोक वृक्ष का सहारा लेकर खड़ी हुई और बायें हाथ से अग्र शाखा को पकड़े हुए, अर्ध निमीलित नेत्रों की ईषत् वक्र कटाक्ष-रूप चेष्टाओं द्वारा देवों के मनों को हरण करती हुई-सी और एक दूसरे को देखकर परस्पर खेद-खिन्न होती हुई-सी, पार्थिवपरिणाम होने पर भी शाश्वत विद्यमान, चन्द्रार्धतुल्य ललाट वाली, चन्द्र से भी अधिक सौम्य कांति वाली, उल्का के प्रकाश पुंज की तरह उद्योत वाली विद्युत् की चमक एवं सूर्य के देदीप्यमान तेज से भी अधिक प्रकाश, अपनी सुन्दर वेशभूषा से श्रृंगार रस के गृह-जैसी और मन को प्रसन्न करने वाली यावत् अतीव रमणीय हैं ।
इन द्वारों को दोनों बाजुओं की दोनों निषीधिकाओं में सोलह-सोलह जालकटक हैं, ये प्रदेश सर्वरत्नमय, निर्मल यावत अत्यन्त रमणीय हैं । इन द्वारों की उभय पार्श्ववर्ती दोनों निषीधिकाओं में सोलह-सोलह घंटाओं की पंक्तियाँ कही गई हैं । वे प्रत्येक घंटे जाम्बूनद स्वर्ण से बने हुए हैं, उनके लोलक वज्ररत्नमय हैं, भीतर और बाहर दोनों बाजुओं में विविध प्रकार के मणि जड़े हैं, लटकाने के लिये बंधी हुई साँकलें सोने की और रस्सियाँ चाँदी की हैं । मेघ की गड़गड़ाहट, हंसस्वर, क्रौंचस्वर, सिंहगर्जना, दुन्दुभिनाद, वाद्यसमूहनिनाद, नन्दिघोष, मंजुस्वर, मंजुघोष, सुस्वर, सुस्वरघोष जैसी ध्वनिवाले वे घंटे अपनी श्रेष्ठ मनोज्ञ, मनोहर कर्ण
और मन को प्रिय, सुखकारी झनकारों से उस प्रदेश को चारों ओर से व्याप्त करते हुए अतीव अतीव शोभायमान हो रहे हैं ।
उन द्वारों की दोनों बाजुओं की दोनों निषीधिकाओं में सोलह-सोलह वनमालाओं की परिपाटियां हैं । ये वनमालायें अनेक प्रकार की मणियों से निर्मित द्रुमों, पौधों, लताओं किसलयों और पल्लवों से व्याप्त हैं । मधुपान के लिये बारम्बार षटपदों के द्वारा स्पर्श किये जाने से सुशोभित ये वनलतायें मन को प्रसन्न करने वाली, दर्शनीय, अभिरूप, एवं प्रतिरूप हैं । इन द्वारों की उभय पार्श्ववर्ती दोनों निषीधिकाओं में सोलह-सोलह प्रकंठक हैं । ये प्रत्येक प्रकंठक अढ़ाई सौ योजन लम्बे, अढ़ाई सौ योजन चौड़े और सवा सौ योजन मोटे हैं तथा सर्वात्मना रत्नों से बने हुए, निर्मल यावत् अतीव रमणीय हैं ।
उन प्रकण्ठकों के ऊपर एक-एक प्रासादावतंसक है । ये प्रासादावंतसक ऊँचाई में अढाई सौ योजन ऊँचे और सवा सौ योजन चौड़े हैं, चारों दिशाओं में व्याप्त अपनी प्रभा से हँसते हुए से प्रतीत होते हैं । विविध प्रकार के मणि-रत्नों से इनमें चित्र-विचित्र नचायें बनी हुई हैं । वायु से फहराती हुई, विजय को सूचित करने वाली वैजयन्तीपताकाओं एवं छत्रातिछत्रों से अलंकृत हैं, अत्यन्त ऊँचे होने से इनके शिखर मानो आकाशतल का उल्लंघन करते हैं । विशिष्ट शोभा के लिये जाली-झरोखों में रत्न जड़े हुए हैं । वे रत्न ऐसे चमकते हैं मानों तत्काल पिटारों से निकाले हुए हों । मणियों और स्वर्ण से इनकी स्तूपिकायें निर्मित हैं । तथा स्थानस्थान पर विकसित शतपत्र एवं पुंडरीक कमलों के चित्र और तिलकरत्नों से रचित अर्धचन्द्र बने हुए हैं । वे नाना प्रकार की मणिमय मालाओं से अलंकृत हैं । भीतर और बाहर से चिकने हैं । प्रांगणों में स्वर्णमयी बालुका बिछी हुई है, इनका स्पर्श सुखप्रद है । रूप शोभासम्पन्न है । देखते ही चित्त में प्रसन्नता होती है, वे दर्शनीय हैं । यावत् मुक्तादामों आदि से सुशोभित
उन द्वारों के दोनों पार्यों में सोलह-सोलह तोरण हैं । वे सभी तोरण नाना प्रकार के मणिरत्नों से बने हुए हैं तथा विविध प्रकार की मणियों से निर्मित स्तम्भों के ऊपर अच्छी तरह