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________________ २२६ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद लोमहस्त चंगेरिकायें रखी हैं । ये सभी रत्नों से बनी हुई, निर्मल यावत् प्रतिरूप हैं । उन तोरणों के आगे दो-दो पुष्पपटलक यावत् मयूर पिच्छपटलक रखे हैं । ये सब भी पटलक रत्नमय, स्वच्छ निर्मल यावत प्रतिरूप हैं । उन तोरणों के आगे दो-दो सिंहासन हैं । इन सिंहासनों का वर्णन मुक्तादामपर्यन्त पूर्ववत् । उन तोरणों के आगे रजतमय दो-दो छत्र हैं । इन छत्रों के दण्ड विमल वैडूर्यमणियों के हैं, कर्णिकायें सोने की हैं, संधियाँ वज्र की हैं, मोती पिरोई हुई आठ हजार सोने की सलाइयां हैं तथा दद्दर चन्दन और सभी ऋतुओं के पुष्पों की सुरभि से युक्त शीतल कान्ति वाले हैं । इन पर मंगलरूप स्वस्तिक आदि के चित्र बने हैं । इनका आकार चन्द्रमण्डलवत् गोल है । उन तोरणों के आगे दो-दो चामर हैं । इन चामरों की डंडियां चन्द्रकांत वैडूर्य और वज्र रत्नों की हैं और उन पर अनेक प्रकार के मणि-रत्नों द्वारा विविध चित्र-विचित्र रचनायें बनी हैं, शंख, अंकरत्न, कुंदपुष्प, जलकण और मथित क्षीरोदधि के फेनपुंज सदृश श्वेत-धवल इनके पतले लम्बे बाल हैं । ये सबी चामर सर्वथा रत्नमय, निर्मल यावत् प्रतिरूप हैं । उन तोरणों के आगे दो-दो तेलसमुद्गक, कोष्ठ समुद्गक, पत्र समुद्गक, चोयसमुद्गक, तगरसमुद्गक, एला समुद्गक, हरतालसमुद्गक, हिंगलुकसमुद्गक, मैनमिलसमुद्गक, अंजनसमुद्गक रखे हैं । ये सभी समुद्गक रत्नों से बने हुए, निर्मल यावत् अतीव मनोहर हैं । [३०] सूर्याभ विमान के प्रत्येक द्वार के ऊपर चक्र, मृग, गरुड़, छत्र, मयूरपिच्छ, पक्षी, सिंह, वृषभ, चार दांत वाले श्वेत हाथी और उत्तम नाग के चित्र से अंकित एक सौ, आठ ध्वजायें फहरा रही हैं । इस तरह सब मिलाकर एक हजार अस्सी ध्वजायें उस सूर्याभ विमान के प्रत्येक द्वार पर फहरा रही हैं-ऐसा तीर्थंकर भगवन्तों ने कहा है । उन द्वारों के एकएक द्वार पर पैंसठ-पैंसठ भौम बताये हैं । यान विमान की तरह ही इन भौमों के समरमणीय भूमि भाग और उल्लोक का वर्णन करना । इन भौमों के बीचों-बीच एक-एक सिंहासन रखा है यानविमानवर्ती सिंहासन की तरह उसका सपरिवार वर्णन समझना | शेष आसपास के भौमों में भद्रासन रक्खे हैं । उन द्वारों के ओतरंग सोलह प्रकार के रत्नों से उपशोभित हैं । उन रत्नों के नाम इस प्रकार हैं-कर्केतनरत्न यावत् रिष्टरत्न । उन द्वारों के ऊपर ध्वजाओं यावत् छत्रातिछत्रों से शोभित स्वस्तिक आदि आठ-आठ मंगल हैं । इस प्रकार सूर्याभ विमान में सब मिलकर चार हजार द्वार सुशोभित हो रहे हैं । उन सूर्याभविमान के चारों ओर पाँच सौ-पाँच सौ योजन के अन्तर पर चार दिशाओं में अशोकवन, सप्तपर्णवन, पंचकवन और आम्रवन नामक चार वन खंड हैं । पूर्व दिशा में अशोकवन, दक्षिण दिशा में सप्तपर्ण वन, पश्चिम में चंपक वन और उत्तर में आम्रवन है । ये प्रत्येक वनखंड साढ़े बारह लाख योजन से कुछ अधिक लम्बे और पांच सौ योजन चौड़े हैं । प्रत्येक वनखंड एक-एक परकोटे से परिवेष्टित है । ये सभी वनखंड अत्यन्त घने होने के कारण काले और काली आभा वाले, नीले और नील आभा वाले, हरे और हरी कांति वाले, शीत स्पर्श और शीत आभा वाले, स्निग्ध और कमनीय कांति वाले, तीव्र प्रभा वाले तथा काले और काली छाया वाले, नीले और नीली छाया वाले, हरे और हरी छाया वाले, शीतल और शीतल छाया वाले, स्निग्ध और स्निग्ध छाया वाले हैं एवं वृक्षों की शाखा-प्रशाखायें आपस में एक दूसरी से मिली होने के कारण अपनी सघन छाया से बड़े ही रमणीय तथा महा मेघों के समुदाय जैसे सुहावने दिखते हैं । इन वनखंडों के वृक्ष जमीन के भीतर गहरी फैल
SR No.009784
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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