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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
यशस्वी, परम सुखी तथा अत्यन्त सौभाग्यशाली थे । उनके वक्षःस्थलों पर हार सुशोभित हो रहे थे । वे अपनी भुजाओं पर कंकण तथा भुजाओं को सुस्थिर बनाये रखने वाली पट्टियाँ एवं अंगद धारण किये हुए थे । उनके केसर, कस्तूरी आदि से मण्डित कपोलों पर कुंडल व अन्य कर्णभूषण शोभित थे । वे विचित्र आभूषण धारण किये हुए थे । उनके मस्तकों पर तरह तरह की मालाओं से युक्त मुकुट थे । वे कल्याणकृत् अनुपहत, प्रवर पोशाक पहने हुए थे । वे मंगलमय, उत्तम मालाओं एवं अनुलेपन से युक्त थे । उनके शरीर देदीप्यमान थे । वनमालाएँ, उनके गलों से घुटनों तक लटकती थीं । उन्होंने दिव्य वर्ण, गन्ध, रूप, स्पर्श, संघात, संस्थान, ऋद्धि, द्युति, प्रभा, कान्ति, अर्चि, तेज, लेश्या, तदनुरूप भामण्डल से दशों दिशाओं को उद्योतित, प्रभासित करते हुए श्रमण भगवान् महावीर के समीप आ - आकर अनुरागपूर्वक प्रदक्षिणा की, वन्दन - नमस्कार किया । वे भगवान् महावीर के न अधिक समीप, न अधिक दूर, सुनने की इच्छा रखते हुए, प्रणाम करते हुए, विनयपूर्वक सामने हाथ जोड़ते हुए उनकी पर्युपासना करने लगे ।
[२४] उस काल, उस समय श्रमण भगवान् महावीर के समीप पिशाच, भूत, यक्ष, राक्षस, किन्नर, किंपुरुष, महाकाय भुजगपति, गन्धर्व गण, अणपन्निक, पणपन्निक, ऋषिवादिक, भूतवादिक, क्रन्दित, महाक्रन्दित, कूष्मांड, प्रयत-ये व्यन्तर जाति के देव प्रकट हुए । वे देव अत्यन्त चपल चित्तयुक्त, क्रीडाप्रिय तथा परिहासप्रिय थे । उन्हें गंभीर हास्य तथा वैसी ही वाणी प्रिय थी । वे वैक्रिय लब्धि द्वारा अपनी इच्छानुसार विरचित वनमाला, फूलों का सेहरा या कलंगी, मुकुट, कुण्डल आदि आभूषणों द्वारा सुन्दर रूप में सजे हुए थे । सब ऋतुओं में खिलने वाले, सुगन्धित पुष्पों से सुरचित, लम्बी, शोभित होती हुई, सुन्दर, विकसित वनमालाओं द्वारा उनके वक्ष:स्थल बड़े आह्लादकारी प्रतीत होते थे । वे कामगम, कामरूपधारी, थे । वे भिन्न-भिन्न रंग के, उत्तम, चित्र-विचित्र चमकीले वस्त्र पहने हुए थे । अनेक देशों की वेशभूषा के अनुरूप उन्होंने भिन्न-भिन्न प्रकार की पोशाकें धारण कर रखी थीं । वे प्रमोदपूर्ण कामकलह, क्रीडा तथा तज्जनित कोलाहल में प्रीति मानते थे । वे बहुत हँसने वाले तथा बहुत
वा । वे अनेक मणियों एवं रत्नों से विविध रूप में निर्मित चित्र-विचित्र चिह्न
हुए थे । वे सुरूप तथा परम ऋद्धि सम्पन्न थे । पूर्व समागत देवों की तरह यथाविधि वन्दन - नमन कर श्रमण भगवान् महावीर की पर्युपासना करने लगे ।
[२५] उस काल, उस समय श्रमण भगवान् महावीर के सान्निध्य में बृहस्पति, चन्द्र, सूर्य, शुक्र, शनैश्चर, राहु, धूमकेतु, बुध तथा मंगल, जिनका वर्ण तपे हुए स्वर्ण- बिन्दु के समान दीप्तिमान् था - ( ये ) ज्योतिष्क देव प्रकट हुए । इनके अतिरिक्त ज्योतिश्चक्र में परिभ्रमण करने वाले केतु आदि ग्रह, अट्ठाईस प्रकार के नक्षत्र देगण, नाना आकृतियों के पाँच वर्ण के तारे प्रकट हुए । उनमें स्थित रहकर प्रकाश करनेवाले तथा अविश्रान्ततया गतिशील - दोनों प्रकार के ज्योतिष्क देव थे हर किसी ने अपने - अपने नाम से अंकित अपना विशेष चिह्न अपने मुकुट पर धारण कर रखा था । वे परम ऋद्धिशाली देव भगवान् की पर्युपासना करने लगे ।
[२६] उस काल, उस समय श्रमण भगवान् महावीर के समक्ष सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्म, लान्तक, महाशुक्र, सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण तथा अच्युत देवलोकों के अधिपति—–इन्द्र अत्यन्त प्रसन्नतापूर्वक प्रादुर्भूत हुए । जिनेश्वरदेव के दर्शन पाने की उत्सुकता और तदर्थ अपने वहाँ पहुँचने से उत्पन्न हर्ष से वे उल्लसित थे । जिनेन्द्र प्रभु