________________
औपपातिक - २१
१७७
परखपूर्वक गृहीत निर्जरा, यतना, उपयोग, ज्ञान, दर्शन ( चारित्र) तथा विशुद्ध व्रत रूप श्रेष्ठ माल भरा था । वीतराग प्रभु के वचनों द्वारा उपदिष्ट शुद्ध मार्ग से वे श्रमण रूप उत्तम सार्थवाह, सिद्धिरूप महापट्टन की ओर बढ़े जा रहे थे । वे सम्यक् श्रुत, उत्तम संभाषण, प्रश्न तथा उत्तम आकांक्षा- वे अनगार ग्रामों में एक-एक रात तथा नगरों में पाँच-पाँच रात रहेते हुए जितेन्द्रिय, निर्भय, गतभय, सचित्त, अचित्त, मिश्रित, द्रव्यों में वैराग्ययुक्त, संयत, विरत, अनुरागशील, मुक्त, लघुक, निरवकांक्ष, साधु, एवं निभृत होकर धर्म की आराधना करते थे ।
[२२] उस काल, उस समय श्रमण भगवान् महावीर के पास अनेक असुरकुमार देव प्रादुर्भूत हुए । काले महानीलमणि, नीलमणि, नील की गुटका, भैंसे के सींग तथा अलसी के पुष्प जैसा उनका काला वर्ण तथा दीप्ति थी । उनके नेत्र खिले हुए कमल सदृश थे । नेत्रों की भौहें निर्मल थीं । उनके नेत्रों का वर्ण कुछ-कुछ सफेद, लाल तथा ताम्र जैसा था । उनकी नासिकाएँ गरुड के सदृश, लम्बी, सीधी तथा उन्नत था । उनके होठ परिपुष्ट मूंगे एवं बिम्ब फल के समान लाल थे । उनकी दन्तपंक्तियाँ स्वच्छ चन्द्रमा के टुकड़ों जैसी उज्ज्वल तथा शंख, गाय के दूध के झाग, जलकण एवं कमलनाल के सदृश धवल थीं । उनकी हथेलियाँ, पैरों के तलवे, तालु तथा जिह्वा-अग्नि में गर्म किये हुए, धोये हुए पुनः तपाये हुए, शोधित किये हुए निर्मल स्वर्ण के समान लालिमा लिये हुए थे । उनके केश काजल तथा मेघ के सदृश काले तथा रुचक मणि के समान रमणीय और स्निग्ध, मुलायम थे ।
उनके बायें कानों में एक-एक कुण्डल था । शरीर आर्द्र चन्दन से लिप्त थे । सिलीघ्रपुष्प जैसे कुछ-कुछ श्वेत या लालिमा लिये हुए श्वेत, सूक्ष्म, असंक्लिष्ट, वस्त्र सुन्दर रूप में पहन रखे थे । वे बाल्यावस्था को पार कर चुके थे, मध्यम वय नहीं प्राप्त किये हुए थे, भद्र यौवन किशोरावस्था में विद्यमान थे । उनकी भुजाएँ तलभंगकों, त्रुटिकाओं, अन्यान्य उत्तम
भूषण तथा निर्मल रत्नों, मणियों से सुशोभित थीं । हाथों की दशों अंगुलियाँ अंगूठियों से मंडित थीं । मुकुटों पर चूडामणि के रूप में विशेष चिह्न थे । वे सुरूप, पर ऋद्धिशाली, परम द्युतिमान्, अत्यन्त बलशाली, परम यशस्वी, परम सुखी तथा अत्यन्त सौभाग्यशाली थे । उनके वक्षःस्थलों पर हार सुशोभित हो रहे थे । वे अपनी भुजाओं पर कंकण तथा भुजाओं को सुस्थिर बनाये रखनेवाली आभरणात्मक पट्टियाँ एवं अंगद धारण किये हुए थे । केसर, कस्तूरी आदि से मण्डित कपोलों पर कुंडल व अन्य कर्णभूषण शोभित थे ।
I
वे विचित्र, हस्ताभरण धारण किये हुए थे । उनके मस्तकों पर तरह-तरह की मालाओं से युक्त मुकुट थे । वे कल्याणकृत्, अनुपहत, प्रवर पोशाक पहने हुए थे । वे मंगलमय, उत्तम मालाओं एवं अनुलेपन से युक्त थे । उनके शरीर देदीप्यमान थे । वनमालाएँ उनके गलों से घुटनों तक लटकती थीं । उन्होंने दिव्य-वर्ण, गन्ध, रूप, स्पर्श, संघात, संस्थान, ऋद्धि, द्युति, प्रभा, कान्ति, अर्चि, तेज, लेश्या - तदनुरूप प्रभामंडल से दशों दिशाओं को उद्योतित, प्रभासित करते हुए श्रमण भगवान् महावीर के समीप आ आकर अनुरागपूर्वक तीन बार आदक्षिण प्रदक्षिणा की, वन्दन - नमस्कार किया । वैसा कर वे भगवान् महावीर के न अधिक समीप, न अधिक दूर सुनने की इच्छा रखते हुए, प्रणाम करते हुए, विनयपूर्वक सामने हाथ जोड़े हुए इनकी पर्युपासना करने लगे ।
[२३] उस काल, उस समय श्रमण भगवा महावीर के पास असुरेन्द्रवर्जित, भवनवासी देव प्रकट हुए । उनके मुकुट क्रमशः नागफण, गरुड, वज्र, पूर्ण कलश, सिंह, अश्व, हाथी, मगर तथा वर्द्धमान थे । वे सुरूप, परम ऋद्धिशाली, परम द्युतिमान्, अत्यन्त बलशाली, परम
6 12