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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
शिलाओं, लकड़ियों, मुद्गरों और कनंगरों के पुंज व निकर रखे रहते थे । उस दुर्योधन चरकपाल के पास चमड़े की रस्सियों, सामान्य रस्सियों, वल्कल रज्जुओं, छाल से निर्मित रस्सियों, केशरज्जुओं और सूत्र रज्जुओं के पुज व निकर क्खे रहते थे ।
उस दुर्योधन चारकपाल के पास असिपत्र, करपत्र, क्षुरपत्र और कदम्बचीरपत्र के भी पुज व निकर रक्खे रहते थे । उस दुर्योधन चारकपाल के पास लोहे की कीलों, बांस की सलाइयों, चमड़े के पट्टों वे अल्लपट्ट के पुञ्ज व निकर रक्खे हुए थे । उस दुर्योधन चारकपाल के पास अनेक सुइयों, दम्भनों ऐसी सलाइयों तथा लघु मुद्गरों के पुज व निकर रखे हुए थे। उस दुर्योधन के पास अनेक प्रार के शस्त्र, पिप्पल, कुल्हाड़ों, नखच्छेदक एवं डाभ के अग्रभाग से तीक्ष्ण हथियारों के पुञ्ज व निकर रक्खे हुए थे ।
___ तदनन्तर वह दुर्योधन चारपालक सिंहरथ राजा के अनेक चोर, परस्त्रीलम्पट, ग्रन्थिभेदक, राजा के अपकारी-दुश्मनों, कृणधारक, बालघातकों, विश्वासघातियों, जुआरियों और धूर्त पुरुषों को राजपुरुषों के द्वारा पकड़वाकर ऊर्ध्वमुख गिराता है और गिराकर लोहे के दण्डे से मुख को खोलता है और खोलकर कितनेक को तप्त तांबा पिलाता है, कितनेक को रांगा, सीसक, चूर्णादिमिश्रित जल अथवा कलकल करता हुआ अत्यन्त उष्ण जल और क्षारयुक्त तैल पिलाता है तथा कितनों का इन्हीं से अभिषेक कराता है । कितनों को ऊर्ध्वमुख गिराकर उन्हें अश्वमूत्र हस्तिमूत्र यावत् भेड़ों का मूत्र पिलाता है । कितनों को अधोमुख गिराकर छल छल शब्द पूर्वक वमन कराता है और कितनों को उसी के द्वारा पीड़ा देता है । कितनों को हथकड़ियों बेड़ियों से, हडिबन्धनों से व निगडबन्धनों बद्ध करता है । कितनों के शरीर को सिकोड़ता व मरोड़ता है । कितनों को सांकलों से बांधता है, तथा कितनों का हस्तच्छेदन यावत् शस्त्रों से चीरताफाड़ता है । कितनों को वेणुलताओं यावत् वृक्षत्वचा के चाबुकों से पिटवाता है ।
कितनों को ऊर्ध्वमुख गिराकर उनकी छाती पर शिला व लक्कड़ रखवा कर उत्कम्पन कराता है, जिससे हड्डियाँ टूट जाएँ । कितनों के चर्मरजुओं व सूत्ररज्जुओं से हाथों और पैरों को बँधवाता है, बंधवाकर कुए में उल्टा लटकवाता है, लटकाकर गोते खिलाता है | कितनों का असिपत्रों यावत् कलम्बचीरपत्रों से छेदन कराता है और उस पर क्षारमिश्रित तैल से मर्दन कराता है । कितनों के मस्तकों, कण्ठमणियों, घंटियों, कोहनियों, जानुओं तथा गुल्फों-गिट्टों में लोहे की कीलों को तथा बांस की शालाकाओं को ठुकवाता है तथा वृश्चिककण्टकों-बिच्छु के कांटो को शरीर में प्रविष्ट कराता है ।
कितनों के हाथ की अंगुलियों तथा पैर की अंगुलियों में मुद्गरों के द्वारा सूइयों तथा दम्भनों को प्रविष्ट कराता है तथा भूमि को खुदवाता है । कितनों का शस्त्रों व नेहरनों से अङ्ग छिलवाता है और दर्डा, कुशाओं तथा आर्द्र चर्मों द्वारा बंधवाता है । तदनन्तर धूप में गिराकर उनके सूखने पर चड़ चड़ शब्द पूर्वक उनका उत्पाटन कराता है । इस तरह वह दुर्योधन चारकपालक इस प्रकार की निर्दयतापूर्ण प्रवृत्तियों को अपना कर्म, विज्ञान व सर्वोत्तम आचरण बनाए हुए अत्यधिक पापकर्मों का उपार्जन करके ३१ सौ वर्ष की परम आयु भोगकर कालमास में काल करके छठे नरक में उत्कृष्ट २२ सागरोपम की स्थितिवाले नारकियों में नारक रूप में उत्पन्न हुआ ।