SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 140
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विपाकश्रुत-१/६/२९ १३९ - (अध्ययन-६ 'नंदिवर्धन') [२९] उत्क्षेप भगवन् ! यदि यावत् मुक्तिप्राप्त श्रमण भगवान् महावीर ने पांचवें अध्ययन का यह अर्थ कहा, तो षष्ठ अध्ययन का भगवान् ने क्या अर्थ कहा है ? हे जम्बू! उस काल तथा उस समय में मथुरा नगरी थी । वहाँ भण्डीर नाम का उद्यान था । सुदर्शनयक्ष का आयतन था । श्रीदाम राजा था, बन्धुश्री रानी थी । उनका सर्वाङ्ग-सम्पन्न युवराज पद से अलंकृत नन्दिवर्द्धन नाम का सर्वांगसुन्दर पुत्र था । श्रीदाम नरेश का सुबन्धु मन्त्री था, जो साम, दण्ड, भेद-उपप्रदान में कुशल था-उस मन्त्री के बहुमित्रापुत्र नामक सर्वाङ्गसम्पन्न व रूपवान् बालक था । श्रीदाम नरेश का, चित्र नामक अलंकारिक था । वह राजा का अनेकविध, क्षौरकर्म करता हुआ राजा की आज्ञा से सर्वस्थानों, सर्व-भूमिकाओं तथा अन्तःपुर में भी, बेरोक-टोक, आवागमन करता रहता था । उस काल उस समय में मथुरा नगरी में भगवान् महावीर पधारे । परिषद् व राजा भगवान् की धर्मदेशना श्रवण करने नगर से निकले, यावत् वापिस चले गये । उस समय भगवान् महावीर के प्रधान शिष्य गौतम स्वामी भिक्षा के लिये नगरी में पधारे । वहाँ उन्होंने हाथियों, घोड़ों और पुरुषों को देखा, तथा उन पुरुषों के मध्य में यावत् बहुत से नर-नारियों के वृन्द से घिरे हुए एक पुरुष को देखा । राजपुरुष उस पुरुष को चत्वर-स्थान में अग्नि के समान-सन्तप्त लोहमय सिंहासन पर बैठाते हैं । बैठाकर कोई-कोई राजपुरुष उसको अग्नि के समान उष्ण लोहे से परिपूर्ण, कोई ताम्रपूर्ण, कोई त्रपु-रांगा से पूर्ण, कोई सीसा से पूर्ण, कोई कलकल से पूर्ण, अथवा कलकल शब्द करते हुए अत्युष्ण पानी से परिपूर्ण, क्षारयुक्त तैल से पूर्ण, अग्नि के समानतपे कलशों के द्वारा महान् राज्याभिषेक से उसका अभिषेक करते हैं । तदनन्तर उसे, लोहमय संडासी से पकड़कर अग्नि के समान तपे हुए अयोमय, अर्द्धहार, यावत् पहिनाते हैं । यावत् गौतमस्वामी उस पुरुष के पूर्वभव सम्बन्धी वृत्तान्त को भगवान् से पूछते हे गौतम ! उस काल उस समय में इसी जम्बूद्वीप अन्तर्गत भारतवर्ष में सिंहपुर नामक एक ऋद्ध, स्तिमित व समृद्ध नगर था । वहाँ सिंहरथ राजा था । दुर्योधन नाम का कारागाररक्षक था, जो अधर्मी यावत् कठिनाई से प्रसन्न होनेवाला था । दुर्योधन नामक उस चारकपाल के निम्न चारकभाण्ड थे । अनेक प्रकार की लोहमय कुण्डियाँ थी, जिनमें से कई एक ताम्र से, कई एक त्रपुरांगा से, कई एक सीसे से, तो कितनीक चूर्णमिश्रित जल से भरी हुई थी और कितनीक क्षारयुक्ततैल से भरी थी, जो कि अग्नि पर रक्खी रहती थी । दुर्योधन चारकपाल के पास उष्ट्रिकाएँ थे उनमें से कई एक अश्वमूत्र से, कितनेक हाथी के मूत्र से, कितने उष्ट्रमूत्र से, कितनेक गोमूत्र से, कितनेक महिषमूत्र से, कितनेक बकरे के मूत्र से तो कितनेक भेड़ों के मूत्र से भरे हुए थे । उस दुर्योधन चारकपाल के पास अनेक हस्तान्दुक, पादान्दुक, हडि, और श्रृंखला तथा निकर लगाए हुए रक्खे थे । तथा उस दुर्योधन चारकपाल के पास वेणुलताओं, बेंत के चाबुकों, चिंता-इमली के चाबुकों, कोमल चर्म के चाबुकों, सामान्य चर्मयुक्त चाबुकों, वल्कलरश्मियों के पुंज व निकर रक्खे रहते थे । उस दुर्योधन चारकपाल के पास अनेक
SR No.009784
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy