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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
आत्मज होने के कारण इसका बृहस्पतिदत्त यह नाम रक्खा जाए । तदनन्तर वह बृहस्पतिदत्त बालक पांच धायमाताओं से परिगृहीत यावत् वृद्धि को प्राप्त करता हुआ तथा बालभाव को पार करके युवावस्था को प्राप्त होता हुआ, परिपक्क विज्ञान को उपलब्ध किये हुए वह उदयन कुमार का बाल्यकाल से ही प्रिय मित्र हो गया । कारण यह था कि ये दोनों एक साथ ही उत्पन्न हुए, एक साथ बढ़े और एक साथ ही दोनों ने धूलि - क्रीडा की थी ।
तदनन्तर किसी समय राजा शतानीक कालधर्म को प्राप्त हो गया । तब उदयनकुमार बहुत से राजा, तलवर, माडंबिक, कौटुंबिक, इभ्य, श्रेष्ठी सेनापति और सार्थवाह आदि के साथ रोता हुआ, आक्रन्दन करता हुआ तथा विलाप करता हुआ शतानीक नरेश का राजकीय समृद्धि के अनुसार सन्मानपूर्वक नीहरण तथा मृतक सम्बन्धी सम्पूर्ण लौकिक कृत्यों को करता है । तदनन्तर उन राजा, ईश्वर यावत् सार्थवाह आदि ने मिलकर बड़े समारोह के साथ उदयन कुमार का राज्याभिषेक किया । उदयनकुमार हिमालय पर्वत के समान महान् राजा हो गया ।
तदनन्तर बृहस्पतिदत्त कुमार उदयन नरेश का पुरोहित हो गया और पौरोहित्य कर्म करता हुआ सर्वस्थानों, सर्वभूमिकाओं तथा अन्तःपुर में भी इच्छानुसार बेरोक-टोक गमनागमन करने लगा । तत्पश्चात् वह बृहस्पतिदत्त पुरोहित उदयन- नरेश के अन्तःपुर में समय-असमय, काल- अकाल तथा रात्रि एवं सन्ध्याकाल में स्वेच्छापूर्वक प्रवेश करते हुए धीरे धीरे पद्मावती देवी के साथ अनुचित सम्बन्धवाला हो गया । पद्मावती देवी के साथ उदार यथेष्ट मनुष्य सम्बन्धी काम-भोगों को सेवन करता हुआ समय व्यतीत करने लगा । इधर किसी समय उदयन नरेश स्नानादि से निवृत्त होकर और समस्त अलङ्कारों से अलंकृत होकर जहाँ पद्मावती देवी थी वहाँ आया । आकर उसने बृहस्पतिदत्त पुरोहित को पद्मावती देवी के साथ भोगोपभोग भोगते हुए देखा । देखते ही वह क्रोध से तमतमा उठा । मस्तक पर तीन वल वाली भृकुटि चढ़ाकर बृहस्पतिदत्त पुरोहित को पुरुषों द्वारा पकड़वाकर यष्टि, मुट्ठी, घुटने, कोहनी, आदि के प्रहारों से उसके शरीर को भग्न कर दिया गया, मथ डाला और फिर इस प्रकार ऐसा कठोर दण्ड देने की राजपुरुषों को आज्ञा दी । हे गौतम ! इस तरह बृहस्पतिदत्त पुरोहित पूर्वकृत क्रूर पापकर्मों के फल को प्रत्यक्षरूप से अनुभव कर रहा है ।
हे भगवन् ! बृहस्पतिदत्त यहाँ से काल करके कहाँ जायेगा ? हे गौतम! बृहस्पतिदत्त पुरोहित ६४ वर्ष की आयु को भोगकर दिन का तीसरा भाग शेष रहने पर सूली से भेदन किया जाकर कालावसर में काल करके रत्नप्रभा नामक प्रथम नरक में उत्कृष्ट एक सागर की स्थिति वाले नारकों में उत्पन्न होगा । वहाँ से निकलकर प्रथम अध्ययन में वर्णित मृगापुत्र की तरह सभी नरकों में, सब तिर्यञ्चों में तथा एकेन्द्रियों में लाखों बार जन्म-मरण करेगा । तत्पश्चात् हस्तिनापुर नगर में मृग के रूप में जन्म लेगा । वहाँ पर वागुरिकों द्वारा मारा जाएगा। और इसी हस्तिनापुर में श्रेष्ठकुल में पुत्ररूप से जन्म धारण करेगा । वहाँ सम्यक्त्व को प्राप्त करेगा और काल करके सौधर्म देवलोक में उत्पन्न होगा । वहाँ से महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेगा । वहाँ पर अनगार वृत्ति धारण कर, संयम की आराधना करके सब कर्मों का अन्त करेगा । निक्षेप पूर्ववत् ।
अध्ययन - ५ का मुनि दीपरत्नमागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण