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विपाकश्रुत-१/६/३०
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[३०] वह दुर्योधन चारकपाल का जीव छठे नरक से निकलकर इसी मथुरा नगरी में श्रीदाम राजा की बन्धुश्री देवी की कुक्षि में पुत्ररूप से उत्पन्न हुआ । लगभग नव मास परिपूर्ण होने पर बन्धुश्री ने बालक को जन्म दिया । तत्पश्चात् बारहवें दिन माता-पिता ने नवजात बालक का नन्दिषेण नाम क्खा । तदनन्तर पाँच धायमाताओं से सार-संभाल किया जाता हुआ नन्दिषेणकुमार वृद्धि को प्राप्त होने लगा । जब वह बाल्यावस्था को पार करके युवावस्था को प्राप्त हुआ तब युवराज पद से अलंकृत भी हो गया । राज्य और अन्तःपुर में अत्यन्त आसक्त नंदिषेणकुमार श्रीदाम राजा को मारकर स्वयं ही राज्यलक्ष्मी को भोगने एवं प्रजा का पालन करने की इच्छा करने लगा । एतदर्थ कुमार नन्दिषेण श्रीदाम राजा के अनेक अन्तर, छिद्र, अथवा विरह ऐसे अवसर की प्रतीक्षा करने लगा ।
श्रीदाम नरेश के वध का अवसर प्राप्त न होने से कुमार नन्दिषेण ने किसी अन्य समय चित्र नामक अलंकारिक को बुलाकर कहा-देवानुप्रिय ! तुम श्रीदाम नरेश के सर्वस्थानों, सर्वभूमिकाओं तथा अन्तःपुर में स्वेच्छापूर्वक आ-जा सकते हो और श्रीदाम नरेश का बारबार क्षौरधर्म करते हो । अतः हे देवानुप्रिय ! यदि तुम श्रीदाम नरेश के क्षौरकर्म करने के अवसर पर उसकी गरदन में उस्तरा घुसेड़ दो तो मैं तुमको आधा राज्य दे दूँगा । तब तुम भी हमारे साथ उदार-प्रधान कामभोगों का उपभोग करते हुए सानन्द समय व्यतीत कर सकोगे । चित्र नामक नाई ने कुमार नन्दिषेण के उक्त कथन को स्वीकार कर लिया ।
परन्तु चित्र अलंकारिक के मन में यह विचार उत्पन्न हुआ कि यदि किसी प्रकार से श्रीदाम नरेश को इस षड्यन्त्र का पता लग गया तो न मालूम वे मुझे किस कुमौत से मारेंगे। इस विचार से वह भयभीत हो उठा और एकान्त में गुप्त रूप से जहाँ महाराजा श्रीदाम थे, वहाँ आया । दोनों हाथ जोड़कर मस्तक पर अञ्जलि कर विनयपूर्वक इस प्रकार बोला'स्वामिन् ! निश्चय ही नन्दिषेण कुमार राज्य में आसक्त यावत् अध्युपपन्न होकर आपका वध करके स्वयं ही राज्यलक्ष्मी भोगना चाह रहा है ।' तब श्रीदाम नरेश ने विचार किया और अत्यन्त क्रोध में आकर नन्दिषेण को अपने अनुचरों द्वारा पकड़वाकर इस पूर्वोक्त विधान से मार डालने का राजपुरुषों को आदेश दिया । 'हे गौतम ! नन्दिषेण पुत्र इस प्रकार अपने किये अशुभ पापमय कर्मों के फल को भोग रहा है ।'
भगवान् ! नन्दिषेण कुमार मृत्यु के समय में यहां से काल करके कहां जायगा । कहाँ उत्पन्न होगा ? हे गौतम ! यह नन्दिषेणकुमार साठ वर्ष की परम आयु को भोगकर मरके इस रत्नप्रभा नामक नरक में उत्पन्न होगा । इसका शेष संसारभ्रमण मृगापुत्र के अध्ययन की तरह समझना यावत् वह पृथ्वीकाय आदि सभी कायों में लाखों बार उत्पन्न होगा । पृथ्वीकाय से निकलकर हस्तिनापुर नगर में मत्स्य के रूप में उत्पन्न होगा । वहां मच्छीमारों के द्वारा वध को प्राप्त होकर फिर वहीं हस्तिनापुर नगर में एक श्रेष्ठि-कुल में पुत्ररूप में उत्पन्न होगा । वहाँ से महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेगा । वहां पर चारित्र ग्रहण करेगा और उसका यथाविधि पालन कर उसके प्रभाव से सिद्ध होगा, बुद्ध होगा, मुक्त होगा और परमनिर्वाण को प्राप्त कर सर्व प्रकार के दुःखों का अन्त करेगा ।
अध्ययन-६ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण