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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
अपने पूर्वजन्मोपार्जित कर्मों का प्रत्यक्ष रूप से फलानुभव करता हुआ इस तरह समय-यापन कर रहा है ।
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[१०] हे भगवन् ! यह मृगापुत्र नामक दारक यहाँ से मरणावसर पर मृत्यु को पाकर कहाँ जायगा ? और कहाँ पर उत्पन्न होगा ? हे गौतम ! मृगापुत्र दारक २६ वर्ष के परिपूर्ण आयुष्य को भोगकर मृत्यु का समय आने पर काल करके इस जम्बूद्वीप नामक द्वीप के अन्तर्गत भारतवर्ष में वैताढ्य पर्वत की तलहटी में सिंहकुल में सिंह के रूप में उत्पन्न होगा । वह सिंह महाअधर्मी तथा पापकर्म में साहसी बनकर अधिक से अधिक पापरूप कर्म एकत्रित करेगा । वह सिंह मृत्यु को प्राप्त होकर इस रत्नप्रभापृथ्वी में, जिसकी उत्कृष्ट स्थिति एक सागरोपम की है; उन नारकियों में उत्पन्न होगा । बिना व्यवधान के पहली नरक से निकलकर सीधा सरीसृपों की योनियों में उत्पन्न होगा । वहाँ से काल करके दूसरे नरक में, जिसकी उत्कृष्ट स्थिति तीन सागरोपम की है, उत्पन्न होगा । वहाँ से निकलकर सीधा पक्षी - योनि में उत्पन्न होगा । वहाँ से सात सागरोपम की उत्कृष्ट स्थिति वाले तीसरे नरक में उत्पन्न होगा । वहाँ से सिंह की योनि में उत्पन्न होगा । वहाँ वह बड़ा अधर्मी, दूर-दूर तक प्रसिद्ध शूर एवं गहरा प्रहार करने वाला होगा । वहाँ से चौथी नरकभूमि में जन्म लेगा । चौथे नरक से निकलकर सर्प बनेगा । वहाँ से पाँचवें नरक में उत्पन्न होगा । वहाँ से स्त्रीरूप में उत्पन्न होगा । स्त्री पर्याय से काल करके छट्टे नरक में उत्पन्न होगा । वहाँ से पुरुष होगा । वहाँ से सबसे निकृष्ट सातवीं नरक भूमि में उत्पन्न होगा । वहाँ से जो ये पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चों में मच्छ, कच्छप, ग्राह, मगर, सुमार आदि जलचर पञ्चेन्द्रिय जाति में योनियाँ, एवं कुलकोटियों में, जिनकी संख्या साढ़े बारह लाख है, उनके एक एक योनि-भेद में लाखों बार उत्पन्न होकर पुनः पुनः उत्पन्न होकर मरता रहेगा । तत्पश्चात् चतुष्पदों में उरपरिसर्प, भुज-परिसर्प, खेचर, एवं चार इन्द्रिय, तीन इन्द्रिय और दो इन्द्रियवाले प्राणियों में तथा वनस्पति कायान्तर्गत कटु वृक्षों में, कटु दुग्धवाली अर्कादि वनस्पतियों में, वायुकाय, तेजस्काय, अप्काय व पृथ्वीकाय में लाखों-लाखों बार जन्म मरण करेगा ।
तदनन्तर वहाँ से निकलकर सुप्रतिष्ठपुर नामक नगर में वृषभ के पर्याय में उत्पन्न होगा | जब वह बाल्यावस्था को त्याग करके युवावस्था में प्रवेश करेगा तब किसी समय, वर्षाऋतु के आरम्भ काल में गंगा नामक महानदी के किनारे पर स्थित मिट्टीको खोदता हुआ नदी के किनारे पर गिर जाने से पीड़ित होता हुआ मृत्यु को प्राप्त हो जायगा । मृत्यु के अनन्तर उसी सुप्रतिष्ठपुर नामक नगर में किसी श्रेष्ठि के घर में पुत्ररूप से उत्पन्न होगा । वहाँ पर वह
भाव को परित्याग कर युवावस्था को प्राप्त होने पर तथारूप - साधुजनोचित गुणों को धारण करनेवाले स्थविर-वृद्ध जैन साधुओं के पास धर्म को सुनकर, मनन कर तदनन्तर मुण्डित होकर अगारवृत्ति का परित्याग कर अनगारधर्म को प्राप्त करेगा । अनगारधर्म में ईर्यासमिति युक्त यावत् ब्रह्मचारी होगा । वह बहुत वर्षों तक यथाविधि श्रामण्य पर्याय का पालन करके आलोचना व प्रतिक्रमण से आत्मशुद्धि करता हुआ समाधि को प्राप्त कर समय आने पर कालमास में काल प्राप्त करके सौधर्म नाम के प्रथम देव-लोक में देवरूप में उत्पन्न होगा । तदनन्तर देवभव की स्थिति पूरी हो जाने पर वहाँ से च्युत होकर महाविदेह क्षेत्र में जो आढ्य कुल हैं; उनमें उत्पन्न होगा । वहाँ उसका कलाभ्यास, प्रव्रज्याग्रहण यावत् मोक्षगमन रूप