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________________ उपासकदशा-२/२७ २५५ तुम अपने शील आदि व्रत भग्न नहीं करोगे तो जीवन से पृथक कर दिए जाओगे । उस देव द्वारा यों कहे जाने पर भी तुम निर्भय भाव से उपासनारत रहे । कामदेव क्या यह ठीक है ? भगवन् ' ऐसा ही हुआ । भगवान् महावीर ने बहुत से श्रमणों और श्रमणियों को संबोधित कर कहा-आर्यो ! यदि श्रमणोपासक गृही घर में रहते हुए भी देवकृत, मनुष्यकृत, तिर्यञ्चकृतपसर्गों को भली भांति सहन करते हैं तो आर्यो ! द्वादशांग-रूप गणिपिटक का-अध्ययन करने वाले श्रमण निर्ग्रन्थों द्वारा उपसर्गों को सहन करना शक्य है ही । श्रमण भगवान् महावीर का यह कथन उन बहुसंख्यक साधु-साध्वियों ने 'ऐसा ही है' भगवन् !' यों कह कर विनयपूर्वक स्वीकार किया । श्रमणोपासक कामदेव अत्यन्त प्रसन्न हुआ, उसने श्रमण भगवान् महावीर से प्रश्न पूछे, समाधान प्राप्त किया । श्रमण भगवान् महावीर को तीन बार वंदन - नमस्कार कर, जिस दिशा से वह आया था, उसी दिशा की ओर लौट गया । श्रमण भगवान् महावीर ने एक दिन चंपा से प्रस्थान किया । प्रस्थान कर वे अन्य जनपदों में विहार कर गए । [२८] तत्पश्चात् श्रमणोपासक कामदेव ने पहली उपासकप्रतिमा की आराधना स्वीकार की । श्रमणोपासक कामदेव ने अणुव्रत द्वारा आत्मा को भावित किया । बीस वर्ष तक श्रमणोपासकपर्याय - पालन किया । ग्यारह उपासक - प्रतिमाओं का भली-भांति अनुसरण किया। एक मास की संलेखना और एक मास का अनशन सम्पन्न कर आलोचना, प्रतिक्रमण कर मरण-काल आने पर समाधिपूर्वक देह त्याग किया । वह सौधर्म देवलोक में सौधर्मावतंसक महाविमान के ईशान कोण में स्थित अरुणाभ विमान में देवरूप में उत्पन्न हुआ । वहां अनेक देवों की आयु चार पल्योपम की होती है । कामदेव की आयु भी देवरूप में चार पल्योपम की बतलाई गई है । गौतम ने भगवान् महावीर से पूछा- भन्ते ! कामदेव उस देव - लोक से आयु, भव एवं स्थिति के क्षय होने पर देव- शरीर का त्याग कर कहां जायगा ? कहां उत्पन्न होगा ? गौतम ! कामदेव महाविदेह - क्षेत्र में सिद्ध होगा - मोक्ष प्राप्त करेगा । अध्ययन - २ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण अध्ययन - ३ चुलनीपिता समय, [२९] उपोद्घातपूर्वक तृतीय अध्ययन का प्रारम्भ यों है : जम्बू ! उस काल- उस वाराणसी नगरी थी । कोष्ठकनामक चैत्य था, राजा जितशत्रु था । वाराणसी नगरी में चुलनीपिता नामक गाथापति था । वह अत्यन्त समृद्ध एवं प्रभावशाली था । उसकी पत्नी का नाम श्यामा था । आठ करोड़ स्वर्ण मुद्राएं स्थायी पूंजी के रूप में, आठ करोड़ स्वर्ण मुद्राएं व्यापार में तथा आठ करोड़ स्वर्ण मुद्राएं घर के वैभव - धन, धान्य आदि में लगी थीं । उसके आठ गोकुल थे । प्रत्येक गोकुल में दस-दस हजार गाएं थीं । गाथापति आनन्द की तरह वह राजा, ऐश्वर्यशाली पुरुष आदि विशिष्ट जनों के सभी प्रकार के आर्यों का सत्परामर्श आदि द्वारा वर्धापक था । भगवान् महावीर पधारे - परिषद् जुड़ी । आनन्द की तरह चुलनीपिता भी घर से निकला - यावत् श्रावकधर्म स्वीकार किया । गौतम ने जैसे आनन्द के सम्बन्ध में भगवान् से प्रश्न किए थे, उसी प्रकार चुलनीपिता के भावी जीवन के सम्बन्ध में भी किए। आगे की घटना गाथापति कामदेव की तरह है । चुलनीपिता पोषधशाला में ब्रह्मचर्य एवं पोषध स्वीकार कर, श्रमण भगवान् महावीर के पास अंगकृत धर्म- प्रज्ञप्ति-धर्म-शिक्षा के
SR No.009783
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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