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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
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अनुरूप उपासना-रत हुआ ।
आधी रात के समय श्रमणोपासक चुलनीपिता के समक्ष एक देव प्रकट हुआ । उस देव ने एक तलवार निकाल कर जैसे पिशाच रूप धारी देव ने कामदेव से कहा था, वैसे ही श्रमणोपासक चुलनीपिता को कहा - यदि तुम अपने व्रत नहीं तोड़ोगे, तो मैं आज तुम्हारे बड़े पुत्र को घर से निकाल लाऊंगा । तुम्हारे आगे उसे मार डालूंगा । उसके तीन मांस- खंड करूंगा, उबलते आद्रहण - में खौलाऊंगा । उसके मांस और रक्त से तुम्हारे शरीर को सींचूंगाजिससे तुम आर्तध्यान एवं विकट दुःख से पीड़ित होकर असमय में ही प्राणों से हाथ धो बैठोगे । उस देव द्वारा यों कहे जाने पर भी श्रमणोपासक चुलनीपिता निर्भय भाव से धर्मध्यान में स्थित रहा ।
जब उस देव ने श्रमणोपासक चुलनीपिता को निर्भय देखा, तो उसने उससे दूसरी बार और फिर तीसरी बार वैसा ही कहा । पर, चुलनीपिता पूर्ववत् निर्भीकता के साथ धर्म-ध्यान में स्थित रहा । देव ने चुलनीपिता को जब इस प्रकार निर्भय देखा तो वह अत्यन्त क्रुद्ध हुआ । वह चुलनीपिता के बड़े पुत्र को उसके घर से उठा लाया और उसके सामने उसे मार डाला । उसके तीन मांस खंड किए, उबलते पानी से भरी कढ़ाही में खौलाया । उसके मांस और रक्त से चुलनीपिता के शरीर को सींचा । चुलनीपिता ने वह तीव्र वेदना तितिक्षापूर्वक सहन की । देव ने श्रमणोपासक चुलनीपिता को जब यों निर्भीक देखा तो उसने दूसरी बार कहा - मौत को चाहनेवाले चुलनीपिता ! यदि तुम अपने व्रत नहीं तोड़ोगे, तो मैं तुम्हारे मंझले पुत्र को घर से उठा लाऊंगा और उसकी भी हत्या कर डालूंगा । इस पर भी चुलनीपिता जब अविचल रहा तो देव ने वैसा ही किया । उसने तीसरी बार फिर छोटे लड़के के सम्बन्ध में वैसा ही करने को कहा । चुलनीपिता नहीं घबराया । देव ने छोटे लड़के के साथ भी वैसा ही किया । चुलनीपिता ने वह तीव्र वेदना तितिक्षापूर्वक सहन की ।
देव ने जब श्रमणोपासक चुलनीपिता को इस प्रकार निर्भय देखा तो उसने चौथी बार उससे कहा- मौत को चाहने वाले चुलनीपिता ! यदि तुम अपने व्रत नहीं तोड़ोगे तो मैं तुम्हारे लिए देव और गुरु सदृश पूजनीय, तुम्हारे हितार्थ अत्यन्त दुष्कर कार्य करने वाली माता भद्रा सार्थवाही को घर से लाकर तुम्हारे सामने उसकी हत्या करूंगा, तीन मांस खंड करूंगा । यावत् जिससे तुम आर्त ध्यान एवं विकट दुःख से पीड़ित होकर असमय में ही प्राणों से हाथ धो बैठोगे । उस देव द्वारा यों कहे जाने पर भी श्रमणोपासक चुलनीपिता निर्भयता से धर्मध्यान में स्थित रहा । उस देव ने श्रमणोपासक चुलनीपिता को जब निर्भय देखा तो दूसरी बार, तीसरी बार फिर वैसा ही कहा- चुलनीपिता ! तुम प्राणों से हाथ धो बैठोगे ।
[३०] उस देव ने जब दूसरी बार, तीसरी बार ऐसा कहा, तब श्रमणोपासक चुलनीपिता के मन में विचार आया - यह पुरुष बड़ा अधम है, नीच - बुद्धि है, नीचतापूर्ण पाप-कार्य करने वाला है, जिसने मेरे बड़े पुत्र को घर से लाकर मेरे आगे मार डाला । उसके मांस और रक्त से मेरे शरीर को सींचा- छींटा, जो मेरे मंझले पुत्र को घर से ले आया, जो मेरे छोटे पुत्र को घर से ले आया, उसी तरह उसके मांस और रक्त से मेरा शरीर सींचा, जो देव और गुरु सद्दश पूजनीय, मेरे हितार्थ अत्यन्त दुष्कर कार्य करने वाली, अति कठिन क्रियाएं करने वाली मेरी माता भद्रा सार्थवाही को भी घर से लाकर मेरे सामने मारना चाहता है । इसलिए, अच्छा यही है, मैं इस पुरुष को पकड़ लूं । यों विचार कर वह पकड़ने के लिए दौड़ा । इतने में देव