________________
२३२
आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
जम्बू ! धर्म की आदि करने वाले, तीर्थ की स्थापना करने वाले, यावत् सिद्धि नामक स्थान को प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर ने ज्ञात-अध्ययन के उन्नीसवें अध्ययन का यह अर्थ कहा है । इस प्रकार हे जम्बू ! श्रमण भगवान् महावीर ने यावत् सिद्धिगति नामक स्थान को प्राप्त जिनेश्वर देव ने इस छठे अंग के प्रथम श्रुतस्कंध का यह अर्थ कहा है ।
२१९] इस प्रथम श्रुतस्कंध के उन्नीस अध्ययन हैं, एक-एक अध्ययन एक-एक दिन में पढ़ने से उन्नीस दिनों में यह अध्ययन पूर्ण होता है ।
अध्ययन-१९ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण श्रुतस्कन्ध-१ का हिन्दी अनुवाद पूर्ण ॐ श्रुतस्कन्ध-२॥
(वर्ग-१) [२२०] उस काल और उस समय में राजगृह नगर था । (वर्णन) उस राजगृह के बाहर ईशान कोण में गुणशील नामक चैत्य था । (वर्णन समझ लेना) उस काल और उस समय में श्रमण भगवान्-महावीर के अन्तेवासी आर्य सुधर्मा नामक स्थविर उच्चजाति से सम्पन्न, कुल से सम्पन्न यावत् चौदह पूर्वो के वेत्ता और चार ज्ञानों से युक्त थे । वे पांच सौ अनगारों से परिवृत होकर अनुक्रम से चलते हुए, ग्रामानुग्राम विचरते हुए और सुखे-सुखे विहार करते हुए जहाँ राजगृह नगर था और जहाँ गुणशील चैत्य था, वहाँ पधारे । यावत् संयम और तप के द्वारा आत्मा को भावित करते हुए विचरने लगे । सुधर्मास्वामी को वन्दना करने के लिए परिषद् निकली । सुधर्मास्वामी ने धर्म का उपदेश दिया । तत्पश्चात् परिषद् वापिस चली गई। उस काल और उस समय में आर्य सुधर्मा अनगार के अन्तेवासी आर्य जम्बू अनगार यावत् सुधर्मास्वामी की उपासना करते हुए बोले-भगवान् ! यदि यावत् सिद्धि को प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर ने छठे अंग के 'ज्ञातश्रुत' नामक प्रथम श्रुतस्कंध का यह अर्थ कहा है, तो भगवन् ! धर्मकथा नामक द्वितीय श्रुतस्कंध का सिद्धपद को प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर ने क्या अर्थ कहा है ? हे जम्बू ! यावत् सिद्धिप्राप्त श्रमण भगवान् महावीर ने धर्मकथा नामक द्वितीय श्रुतस्कंध के दस वर्ग कहे हैं । वे इस प्रकार हैं-चमरेन्द्र की अग्रमहिषियों का प्रथम वर्ग | वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि की अग्रमहिषियों का दूसरा वर्ग । असुरेन्द्र को छोड़ कर शेष नौ दक्षिण दिशा के भवनपति इन्द्रों की अग्रमहिषियों का तीसरा वर्ग । असुरेन्द्र के सिवाय नौ उत्तर दिशा के भवनपति इन्द्रों की अग्रमहिषियों का चौथा वर्ग । दक्षिण दिशा के वाणव्यन्तर देवों के इन्द्रों की अग्रमहिषियों का पाँचवाँ वर्ग । उत्तर दिशा के वाणव्यन्तर देवों के इन्द्रों की अग्रमहिषियों का छठा वर्ग । चन्द्र की अग्रमहिषियों का सातवाँ वर्ग । सूर्य की अग्रमहिषियों का आठवाँ वर्ग । शक्र इन्द्र की अग्रमहिषियों का नौवाँ वर्ग और ईशानेन्द्र की अग्रमहिषियों का दसवाँ वर्ग ।
भगवन् ! श्रमण भगवान् यावत् सिद्धिप्राप्त ने यदि धर्मकथा श्रुतस्कंध के दस वर्ग कहे हैं, तो भगवन् ! प्रथम वर्ग का श्रमण यावत् सिद्धिप्राप्त भगवान् ने क्या अर्थ कहा है ? जम्बू ! श्रमण यावत् सिद्धिप्राप्त भगवान् ने प्रथम वर्ग के पांच अध्ययन कहे हैं । काली, राजी, रजनी, विद्युत और मेघा ।