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ज्ञाताधर्मकथा-१/-/१७/१८५
२१९ उन्होंने भी राजा का आदेश अंगीकार किया । तत्पश्चात् कौटुम्बिक पुरुषों ने गाड़ी-गाड़े सजाए । सजा कर उनमें बहुत-सी वीणाएँ, वल्लकी, भ्रामरी, कच्छी, भंभा, षट्भ्रमरी आदि विविध प्रकार की वीणाओं तथा विचित्र वीणाओं से और श्रोत्रेन्द्रिय के योग्य अन्य बहुत-सी वस्तुओं से गाड़ी-गाड़े भर लिये । श्रोत्रेन्द्रिय के योग्य वस्तुएँ भर कर बहुत-से कृष्ण वर्ण वाले, शुक्ल वर्ण वाले काष्ठकर्म, चित्रकर्म, पुस्तकर्म, लेप्यकर्म तथा वेढ़िम, पूरिम तथा संघातिम एवं अन्य चक्षु-इन्द्रिय के योग्य द्रव्य गाड़ी-गाड़ों में भरे । यह भर कर बहुत-से कोष्ठपुट केतकीपुट, पत्रपुट, चोय-त्वक्पुट, तगरपुट, एलापुट, ह्रीवेर पुट, उशीर, पुट, चम्पकपुट, मरुक पुट, दमनकपुट, जाती पुट, यूथिकापुट, मल्लिकापुट, वासंतीपुट, कपूरपुट, पाटलपुट तथा अन्य बहुत-से घ्राणेन्द्रिय को प्रिय लगने वाले पदार्थों से गाड़ी-गाड़े भरे ।
तदनन्तर बहुत-से खांड, गुड़, शक्कर, मत्स्यंडिका, पुष्पोत्तर तथा पद्मोत्तर जाति की शर्करा आदि अन्य अनेक जिह्वा-इन्द्रिय के योग्य द्रव्य गाड़ी-गाड़ों में भरे । उसके बाद बहुतसे कोयतक-कंबल-प्रावरण-जीन, मलय-विशेष प्रकार का आसन मढ़े, शिलापट्टक, यावत् हंसगर्भ तथा अन्य स्पर्शेन्द्रिय के योग्य द्रव्य गाड़ी-गाड़ों में भरे । उक्त सब द्रव्य भरकर उन्होंने गाड़ी-गाड़े जोते । जोत कर जहाँ गंभीर पोतपट्टन था, वहाँ पहुँचे । गाड़ी-गाड़े खोले । पोतवहन तैयार करके उन उत्कृष्ट शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गंध के द्रव्य तथा काष्ठ, तृण, जल, चावल, आटा, गोरस तथा अन्य बहुत-से पोतवहन के योग्य पदार्थ पोतवहन में भरे ।
वे उपर्युक्त सब सामान पोतवहन में भर कर दक्षिण दिशा के अनकल पवन से जहाँ कालिक द्वीप था, वहाँ आये । आकर लंगर डाला । उन उत्कृष्ट शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गंध के पदार्थों को छोटी-छोटी नौकाओं द्वारा कालिक द्वीप में उतारा । वे घोड़े जहाँ-जहाँ बैठते थे, सोते थे और लोटते थे, वहाँ-वहाँ वे कौटुम्बिक पुरुष वह वीणा, विचित्र वीणा आदि श्रोत्रेन्द्रिय को प्रिय वाद्य बजाते रहने लगे तथा इनके पास चारों ओर जाल स्थापित कर दिएवे निश्चल, निस्पन्द और मूक होकर स्थित हो गए । जहाँ-जहाँ वे अश्व बैठते थे, यावत् लोटते थे, वहाँ-वहाँ उन कौटुम्बिक पुरुषों ने बहुतेरे कृष्ण वर्ण वाले यावत् शुक्ल वर्ण वाले काष्ठकर्म यावत् संघातिम तथा अन्य बहुत-से चक्षु-इन्द्रिय के योग्य पदार्थ रख दिए तथा उन अश्वों के पास चारों ओर जाल बिछा दिया और वे निश्चल और मूक होकर छिप रहे । जहाँजहाँ वे अश्व बैठते थे, सोते थे, खड़े होते थे अथवा लोटते थे वहाँ-वहाँ उन कौटुम्बिक पुरुषों ने बहुत से कोष्ठपुट तथा दूसरे घ्राणेन्द्रिय के प्रिय पदार्थों के पुंज और निकर कर दिये । उनके पास चारों ओर जाल बिछाकर वे मूक होकर छिप गये ।
जहाँ-जहाँ वे अश्व बैठते थे, सोते थे, खड़े होते थे अथवा लेटते थे, वहाँ-वहाँ कौटुम्बिक पुरुषों ने गुड़ के यावत् अन्य बहुत-से जिह्वेन्द्रिय के योग्य पदार्थों के पुंज और निकर कर दिये । उन जगहों पर गड़हे खोद कर गुड़ का पानी, खांड का पानी, पोर का पानी तथा दूसरा बहुत तरह का पानी उन गड़हों में भर दिया । भरकर उनके पास चारों ओर जाल स्थापित करके मूक होकर छिप रहे । जहाँ-जहाँ वे घोड़े बैठते थे, यावत् लेटते थे, वहाँ-वहाँ कोयवक यावत् शिलापट्टक तथा अन्य स्पर्शनेन्द्रिय के योग्य आस्तरण-प्रत्यास्तरण | रखकर उनके पास चारों ओर जाल बिछा कर एवं मूक होकर छिप गए ।
तत्पश्चात् वे अश्व वहाँ आये, जहाँ यह उत्कृष्ट शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गंध रखी