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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
है-इन्द्रिय-यापनीय और नोइन्द्रिय-यापनीय । शुक-'इन्द्रिय-यापनीय किसे कहते हैं ?' 'शुक! हमारी श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, स्सनेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय विना किसी उपद्रव के वशीभूत रहती है, यही हमारा इन्द्रिय-यापनीय क्या है ।' शुक-'नो-इन्द्रिय-यापनीय क्या है ?' 'हे शुक ! क्रोध मान माया और लोभ रूप कषाय क्षीण हो ये हों, उपशान्त हो गये हों, उदय में न आ रहे हों, यही हमारा नोइन्द्रिय-यापनीय कहलाता है ।' शुक ने कहा-'भगवन् ! अव्याबाध क्या है ?' 'हे शुक ! जो वात, पित्त, कफ और सन्निपात आदि सम्बन्धी विविध प्रकार के रोग और आतंक उदय में न आवें, वह हमारा अव्याबाध हैं ।' शुक-'भगवन् ! प्रासुक विहार क्या है ? हे शुक ! हम जो आराम में, उद्यान में, देवकुल में, सभा में तथा स्त्री, पशु और नपुंसक से रहित-उपाश्रय में पडिहारी पीठ, फलक, शय्या, संस्तारक आदि ग्रहण करके विचरते हैं, वह हमारा प्रासुक विहार है ।'
शुक पब्रिाजक ने प्रश्न किया-'भगवन् ! आपके लिए ‘सरिसवया' भक्ष्य हैं या अभक्ष्य हैं ?' थावच्चापुत्र ने कहा-'हे शुक ! भक्ष्य भी हैं और अभक्ष्य भी ।' शुक ने पुनः प्रश्न किया-यावत् ! किस अभिप्राय से ऐसा कहते हो कि ‘सरिसवया' भक्ष्य भी हैं और अभक्ष्य भी हैं ?' थावच्चापुत्र 'हे शुक ! 'सरिसवया' दो प्रकार के हैं । मित्र-सरिसवया और धान्य-सरिसवया । इनमें जो मित्र-सरिसवया हैं, वे तीन प्रकार के हैं । साथ जन्मे हुए साथ बढ़े हुए और साथ-साथ धूल में खेले हुए । यह तीन प्रकार के मित्र-सरिसवया श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए अभक्ष्य हैं । जो धान्य-सरिसवया हैं, वे दो प्रकार के हैं । शस्त्रपरिणत और अशस्त्रपरिणत। उनमें जो अशस्त्रपरिणत हैं वे श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए अभक्ष्य हैं । जो शस्त्रपरिणत हैं,वे दो प्रकार के हैं । प्रासुक और अप्रासुक । हे शुक ! अप्रासुक भक्ष्य नहीं हैं । उनमें जो प्रासुक हैं,वे दो प्रकार के हैं । याचित और अयाचित उनमें जो अयाचित हैं, वे अभक्ष्य हैं । उनमें जो याचित हैं, वे दो प्रकार के हैं । यथा-एषणीय और अनेषणीय । उनमें जो अनेषणीय हैं, वे अभक्ष्य हैं । जो एषणीय हैं, वे दो प्रकार के हैं-लब्ध और अलब्ध। उनमें जो अलब्ध हैं, वै अभक्ष्य हैं । जो लब्ध हैं वे निर्ग्रन्थों के लिए भक्ष्य हैं । 'हे शुक ! इस अभिप्राय से सरिसवया भक्ष्य भी हैं और अभक्ष्य भी हैं ।'
इसी प्रकार 'कुलत्था' भी कहना, विशेषता इस प्रकार हैं-कुलत्था के दो भेद हैं-स्त्रीकुलत्था और धान्य-कुलत्था । स्त्री-कुलत्था तीन प्रकार की हैं । कुलवधू, कुलमाता और कुलपुत्री । ये अभक्ष्य हैं । धान्यकुलत्था भक्ष्य भी हैं और अभक्ष्य भी हैं इत्यादि । मास सम्बन्धी प्रश्नोत्तर भी इसी प्रकार जानना । विशेषता इस प्रकार है-मास तीन प्रकार के हैं । कालमास, अर्थमास और धान्मास । इनमें से कालमास बारह प्रकार के हैं । श्रावण यावत् आषाढ़, वे सब अभक्ष्य हैं । अर्थमास दो प्रकार के हैं- चाँदी का माशा और सोने का माशा। वे भी अभक्ष्य हैं । धान्मास भक्ष्य भी हैं और अभक्ष्य भी हैं;
शुक पब्रिाजक ने पुनः प्रश्न किया- आप एक हैं ? आप दो हैं ? आप अनेक हैं ? आप अक्षय हैं ? आप अव्यय हैं ? आप अवस्थित हैं ? आप भूत, भाव और भावी वाले हैं ?' 'हे शुक ! मैं द्रव्य की अपेक्षा से एक हूँ, क्योकि जीव द्रव्य एक ही है । ज्ञान और दर्शन की अपेक्षा से मैं दो भी हूँ | प्रदेशों की अपेक्षा से मैं अक्षय भी हूँ, अव्यय भी हूँ, अवस्थित भी हूँ । उपयोग की अपेक्षा से अनेक भूत, भाव और भावी, भी हूँ ।