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________________ भगवती-१४/-/१/५९९ ९७ इसी कारण, हे गौतम ! ऐसा कहा गया है कि नैरयिक जीव, यावत् अनन्तर-परम्पर-अनिर्गत भी हैं । इसी प्रकार वैमानिकों तक कहना । ___ भगवन् ! अनन्तरनिर्गत नैरयिक जीव, क्या नास्कायुष्य बांधते हैं यावत् देवायुष्य बांधते हैं ? गौतम ! वे न तो नरकायुष्य यावत् न ही देवायुष्य बांधते हैं । भगवन् ! परम्पर-निर्गत नैरयिक, क्या नरकायु बांधते हैं ? इत्यादि पृच्छा । गौतम ! वे नरकायुष्य भी बांधते हैं, यावत् देवायुष्य भी बांधते हैं । भगवन् ! अनन्तर-परम्पर-अनिर्गत नैरयिक, क्या नारकायुष्य बांधते हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न । गौतम ! वे न तो नारकायुष्य बांधते, यावत् न देवायुष्य बांधते हैं । इसी प्रकार वैमानिकों तक कहना । भगवन् ! नैरयिक जीव क्या अनन्तर-खेदोपपन्नक हैं, परम्परखेदोपपन्नक हैं अथवा अनन्तरपरम्परा-खेदानुपपन्नक हैं ? गौतम ! नैरयिक जीव, अनन्तरखेदोपपन्नक भी हैं, परम्पर-खेदोपपन्नक भी हैं और अनन्तर-परम्पर-खेदानुपपन्नक भी हैं । पूर्वोक्त चार दण्डक कहना । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। | शतक-१४ उद्देशक-२ | [६००] भगवन् ! उन्माद कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! उन्माद दो प्रकार का कहा गया है, यथा यक्षावेश से और मोहनीयकर्म के उदय से । इनमें से जो यक्षावेशरूप उन्माद है, उसका सुखपूर्वक वेदन किया जा सकता है और वह सुखपूर्वक छुड़ाया जा सकता है । (किन्तु) इनमें से जो मोहनीयकर्म के उदय से होने वाला उन्माद है, उसका दुःखपूर्वक वेदन होता है और दुःखपूर्वक ही उससे छुटकारा पाया जा सकता है । भगवन् ! नारक जीवों में कितने प्रकार का उन्माद है ? गौतम ! दो प्रकार का, यथायक्षावेशरूप उन्माद और मोहनीयकर्म के उदय से होने वाला उन्माद | भगवन् ! ऐसा क्यों कहा जाता है ? गौतम ! यदि कोई देव, नैरयिक जीव पर अशुभ पुद्गलों का प्रक्षेप करता है, तो उन अशुभ पुद्गलों के प्रक्षेप से वह नैरयिक जीव यक्षावेशरूप उन्माद को प्राप्त होता है और मोहनीयकर्म के उदय से मोहनीयकर्मजन्य-उन्माद को प्राप्त होता है । इस कारण, हे गौतम ! दो प्रकार का उन्माद कहा गया है । . भगवन् ! असुरकुमारों में कितने प्रकार का उन्माद कहा गया है ? गौतम ! नैरयिकों के समान उनमें भी दो प्रकार का उन्माद कहा गया है । विशेषता यह है कि उनकी अपेक्षा महर्द्धिक देव, उन असुरकुमारों पर अशुभ पुद्गलों का प्रक्षेप करता है और वह उन अशुभ पुद्गलों के प्रक्षेप सें यक्षावेशरूप उन्माद को प्राप्त हो जाता है तथा मोहनीयकर्म के उदय से मोहनीयकर्मजन्यउन्माद को प्राप्त होता है । शेष पूर्ववत् । इसी प्रकार स्तनितकुमारों के विषय में समझना | पृथ्वीकायिकों से लेकर मनुष्यों तक नैरयिकों के समान कहना । वाणव्यन्तर, ज्योतिष्कदेव और वैमानिकदेवों के विषय में भी असुरकुमारों के समान कहना । [६०१] भगवन् ! कालवर्षी मेघ वृष्टिकाय बरसाता है ? हाँ, गौतम ! वह बरसाता है । भगवन् ! जब देवेन्द्र देवराज शक्र वृष्टि करने की इच्छा करता है, तब वह किस प्रकार वृष्टि करता है ? गौतम ! वह आभ्यन्तर परिषद् के देवों को बुलाता है । वे आभ्यन्तर परिषद् के देव मध्यम परिषद् के देवों को बुलाते हैं । वे मध्यम परिषद् के देव, बाह्य परिषद् के देवों को बुलाते हैं, वे बाह्य-परिषद् के देव बाह्य-बाह्य के देवो को बुलाते हैं । वे देव आभियोगिक देवों को बुलाते हैं ।
SR No.009782
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size18 MB
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