SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 97
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद का आश्रय करके विचरता है । [५९८] भगवन् ! (कोई) भावितात्मा अनगार, जो चरम असुरकुमरावास का उल्लंघन कर गया और परम असुरकुमारावास को प्राप्त नहीं हुआ, यदि इसके बीच में ही वह काल कर जाए तो उसकी कौन-सी गति होती है, उसका कहाँ उपपात होता है ? गौतम ! पूर्ववत् । इसी प्रकार स्तनितकुमारावास, ज्योतिष्कावास और वैमानिकावास पर्यन्त जानना । भगवन् ! नैरयिक जीवों की शीघ्र गति कैसी है ? और उनकी शीघ्रगति का विषय किस प्रकार का है ? गौतम ! जैसे कोई तरुण, बलवान् एवं युगवान् यावत् निपुण एवं शिल्पशास्त्र का ज्ञाता हो, वह अपनी संकुचित बाँह को शीघ्रता से फैलाए और फैलाई हुई बाँह को संकुचित करे; खुली हुई मुट्ठी बंद करे और बंद मुट्ठी खोले; खुली हुई आँख बन्द करे और बंद आँख खोले तो क्या नैरयिक जीवों की इस प्रकार की शीघ्र गति होती है तथा शीघ्र गति का विषय होता है ? (भगवन् !) यह अर्थ समर्थ नहीं है । (गौतम !) नैरयिक जीव एक समय की, दो समय की, अथवा तीन समय की विग्रहगति से उत्पन्न होते हैं । नैरयिकों की ऐसी शीघ्र गति यावत् विषय है । इसी प्रकार वैमानिकों तक जानना । एकेन्द्रियों में उत्कृष्ट चार समय की विग्रहगति कहना । शेष पूर्ववत् । [५९९] भगवन् ! क्या नैरयिक अनन्तरोपपन्नक हैं, परम्परोपपन्क हैं, अथवा अनन्तरपरम्परानुपपन्नक हैं ? गौतम ! नैरयिक अनन्तरोपपन्नक भी हैं, परम्परोपपन्नक भी हैं और अनन्तरपरम्परानुपपन्नक भी हैं । भगवन् ! किस हेतु से ऐसा कहा है कि नैरयिक यावत् अनन्तरपरम्परानुपपन्नक भी हैं ? गौतम ! जिन नैरयिकों को उत्पन्न हुए अभी प्रथम समय ही हुआ है, वे अनन्तरोपपन्नक हैं । जिन नैरयिकों को उत्पन्न हुए अभी दो, तीन आदि समय हो चुके हैं, वे परम्परोपपन्नक हैं और जो नैरयिक जीव नरक में उत्पन्न होने के लिए (अभी) विग्रहगति में चल रहे हैं, वे अनन्तर-परम्परानुपपन्नक हैं । इस कारण से हे गौतम ! नैरयिक जीव यावत् अनन्तरपरम्परानुपपन्नक भी हैं । इसी प्रकार निरन्तर यावत् वैमानिक कहना । भगवन् ! अनन्तरोपपन्नक नैरयिक, नैरयिक का आयुष्य बाँधते हैं, अथवा तिर्यञ्च मनुष्य या देव का आयुष्य बाँधते हैं ? गौतम ! वे नैरयिक का आयुष्य नहीं बाँधते, यावत् देव का आयुष्य भी नहीं बाँधते । भगवन् ! परम्परोपपन्नक नैरयिक, क्या नैरयिक का आयुष्य यावत् देवायुष्य बाँधते हैं ? गौतम ! वे नैरयिक का आयुष्य नहीं बाँधते, वे तिर्यञ्च का आयुष्य बाँधते हैं, मनुष्य का आयुष्य भी बाँधते हैं, (किन्तु) देवायुष्य नहीं बाँधते । भगवन् ! अनन्तरपरम्परानुपपन्नक नैरयिक, क्या नैरयिक का आयुष्य बाँधते हैं ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! वे नैरयिक का आयुष्य नहीं बाँधते, यावत् देव का आयुष्य नहीं बाँधते । इसी प्रकार वैमानिकों तक समझना विशेषता यह है कि परम्परोपपन्नक पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक और मनुष्य नारकादि, चारों प्रकार का आयुष्य बाँधते हैं । शेष पूर्ववत् । भगवन् ! क्या नारक जीव अनन्तर-निर्गत हैं, परम्पर-निर्गत हैं या अनन्तर-परम्पर-अनिर्गत हैं ? गौतम ! नैरयिक अनन्तर-निर्गत भी होते हैं, परम्पर-निर्गत भी होते हैं और अनन्तर-परम्परअनिर्गत भी होते हैं । भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है ? गौतम ! जिन नैरयिकों को नरक से निकले प्रथम समय ही है, वे अनन्तरनिर्गत हैं, जो नैरयिक अघ्रथम निर्गत हुए हैं, वे ‘परम्पर-निर्गत' हैं और जो नैरयिक विग्रहगति-समापन्नक हैं, वे 'अनन्तर-परम्परअनिर्गत' हैं ।
SR No.009782
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy