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________________ भगवती-१३/-/९/५९४ ९५ रूप की विकुर्वणा करके ऊँचे आकाश में उड़ सकता है ? (हाँ, गौतम !) शेष पूर्ववत् । जैसे कोई मृणालिका हो और वह अपने शरी को पानी में डुबाए रखती है तथा उसका मुख बाहर रहता है; क्या उसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी...इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न । (हाँ, गौतम !) शेष कथन वगुली के समान जानना। (भगवन् !) जिस प्रकार कोई वनखण्ड हो, जो काला, काले प्रकाश वाला, नीला, नीले आभास वाला, हरा, हरे आभास वाला यावत् महामेघसमूह के समान प्रसन्नतादायक, दर्शनीय, अभिरूप एवं प्रतिरूप हो; क्या इसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी स्वयं वनखण्ड के समान विकुर्वणा करके ऊँचे आकाश में उड़ सकता है ? (हाँ, गौतम !) शेष पूर्ववत् । (भगवन् !) जैसे कोई पुष्करिणी हो, जो चतुष्कोण और समतीर हो तथा अनुक्रम से जो शीतल गंभीर जल से सुशोभित हो, यावत् विविध पक्षियों के मधुर स्वर-नाद आदि से युक्त हो तथा प्रसन्नतादायिनी, दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप हो, क्या इसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी उस पुष्करिणी के समान रूप की विकुर्वणा करके स्वयं ऊँचे आकाश में उड़ सकता है ? हाँ, गौतम ! वह उड़ सकता है । भगवन् ! भावितात्मा अनगार पुष्करिणी के समान कितने रूपों की विकुर्वणा कर सकता है ? (हे गौतम !) शेष पूर्ववत् ।। भगवन् ! क्या (पूर्वोक्त) विकुर्वणा मायी (अनगार) करता है, अथवा अमायी? गौतम ! मायी विकुर्वणा करता है, अमायी (अनगार) विकुर्वणा नहीं करता । मायी अनगार यदि उस स्थान की आलोचना और प्रतिक्रमण किये बिना ही कालधर्म को प्राप्त हो जाए तो उसके आराधना नहीं होती; इत्यादि तीसरे शतक के चतुर्थ उद्देशक के अनुसार यावत्-उसके आराधना होती है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। | शतक-१३ उद्देशक-१० । [५९५] भगवन् ! छाद्मस्थिक समुद्घात कितने प्रकार का है ? गौतम ! छह प्रकार का है । वेदनासमुद्घात इत्यादि, छाद्मस्थिक समुद्घातों के विषय में प्रज्ञापनासूत्र के अनुसार यावत् आहारकसमुद्घात कहना । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। शतक-१३ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण (शतक-१४ ) [५९६] [चौदहवें शतक के दस उद्देशक इस प्रकार हैं-] चरम, उन्माद, शरीर, पुद्गल, अग्नि तथा किमाहार, संश्लिष्ट, अन्तर, अनगार और केवली । | शतक-१४ उद्देशक-१ [५९७] राजगृह नगर में यावत् पूछा- भगवन् ! (कोई) भावितात्मा अनगार, (जिसने) चरम देवलोक का उल्लंघन कर लिया हो, किन्तु परम को प्राप्त न हुआ हो, यदि वह इस मध्य में ही काल कर जाए तो भंते ! उसकी कौन-सी गति होती है, कहाँ उपपात होता है ? गौतम ! जो वहाँ परिपार्श्व में उस लेश्या वाले देवावास होते हैं, वही उसकी गति होती है और वहीं उसका उपपात होता है । वह अनगार यदि वहाँ जा कर अपनी पूर्वलेश्या को विराधता है, तो कर्मलेश्या से ही गिरता है और यदि वह वहाँ जा कर उस लेश्या को नहीं विराधता है, तो वह उसी लेश्या
SR No.009782
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size18 MB
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