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________________ ९४ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद विक्रिया की नहीं, करता नहीं, करेगा नहीं । भगवन् ! जैसे कोई पुरुष हिरण्य की मंजूषा लेकर चलता है, वैसे ही क्या भावितात्मा अनगार भी हिरण्य-मंजूषा हाथ में लेकर स्वयं ऊँचे आकाश में उड़ सकता है ? हाँ, गौतम! पूर्ववत् समझना । इसी प्रकार स्वर्णमंजूषा, रत्नमंजूषा, वज्र मंजूषा, वस्त्रमंजूषा एवं आभरणमंजूषा इत्यादि पूर्ववत् । इसी प्रकार बाँस की चटाई, वीरणघास की चटाई, चमड़े से चटाई या खाट आदि एवं कम्बल का बिछौना इत्यादि प्रश्नोत्तर पूर्ववत् कहना । इसी प्रकार लोहे का भार, तांबे का भार, कलई का भार, शीशे का भार, हिरण्य का भार, सोने का भार और वज्र का भार इत्यादि पूर्ववत् प्रश्नोत्तर कहना ।) भगवन् ! जैसे कोई वगुलीपक्षी अपने दोनों पैर लटका-लटका कर पैरों को ऊपर और शिर को नीचा किये रहती है, क्या उसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी उक्त चमगादड़ की तरह अपने रूप की विकुर्वणा करके स्वयं ऊँचे आकाश में उड़ सकता है ? हाँ, गौतम ! वह उड़ सकता है । इसी प्रकार यज्ञोपवीत-सम्बन्धी वक्तव्यता भी कहनी चाहिए। . (भगवन् !) जैसे कोई जलौका अपने शरीर को उत्प्रेरित करके पानी में चलती है; क्या उसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी...इत्यादि प्रश्न पूर्ववत् ? (गौतम !) वगुलीपक्षी के समान जानना चाहिए । भगवन् ! जैसे कोई बीजंबीज पक्षी अपने दोनों पैरो को घोड़े की तरह एक साथ उठाता-उठाता हुआ गमन करता है, क्या उसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी...इत्यादि प्रश्न पूर्ववत् । (हाँ, गौतम ! उड़ सकता है), शेष पूर्ववत् । (भगवन् !) जिस प्रकार कोई पक्षीबिडालक एक वृक्ष से दूसरे वृक्ष को लांघता-लांघता जाता है, क्या उसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी...इत्यादि प्रश्न । (हाँ, गौतम ! उड़ सकता है ।) शेष पूर्ववत् । (भगवन् !) जैसे कोई जीवंजीवक पक्षी अपने दोनों पैरों को घोड़े के समान एक साथ उठाता-उठाता गमन करता है; क्या उसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी...इत्यादि प्रश्न पूर्ववत् । (हाँ, गौतम ! उड़ सकता है ।) शेष पूर्ववत् । (भगवन् !) जैसे कोई हंस एक किनारे से दूसरे किनारे पर क्रीड़ा करता-करता चला जाता है, क्या वैसे ही भावितात्मा अनगार भी हंसवत् विकुर्वणा करके गगन में उड़ सकता है ? (हाँ, गौतम ! उड़ सकता है ।) शेष पूर्ववत् । (भगवन् !) जैसे कोई समुद्रवायस एक लहर से दूसरी लहर का अतिक्रमण करता-करता चला जाता है, क्या वैसी ही भावितात्मा अनगार भी...इत्यादि प्रश्न । पूर्ववत् समझना । (भगवन् !) जैसे कोई पुरुष हाथ में चक्र ले कर चलता है, क्या वैसे ही भावितात्मा अनगार भी तदनुसार विकुर्वणा करके चक्र हाथ में लेकर स्वयं ऊँचे आकाश में उड़ सकता है ? (हाँ, गौतम !) सभी कथन रज्जुबद्धघटिका के समान जानना चाहिए । इसी प्रकार छत्र और चर्म के सम्बन्ध में भी कथन करना । (भगवन् !) जैसे कोई पुरुष रत्न लेकर गमन करता है, (क्या उसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी...इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न) । (गौतम !) पूर्ववत् । इसी प्रकार वज्र, वैडूर्य यावत् रिष्टरत्न तक पूर्ववत् कहना । इसी प्रकार उत्पल हाथ में लेकर, पद्म हाथ में लेकर एवं कुमुद हाथ में लेकर तथा जैसे कोई पुरुष यावत् सहस्रपत्र हाथ में लेकर गमन करता है, क्या उसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी...इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न । (हाँ, गौतम !) पूर्ववत् जानना । जिस प्रकार कोई पुरुष कमल की डंडी को तोड़ता-तोड़ता चलता है, क्या उसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी स्वयं इस प्रकार के
SR No.009782
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size18 MB
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