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भगवती-१३/-/७/५९२
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है ? गौतम ! चार प्रकार का है, -नैरयिक-द्रव्यावधिमरण, यावत् देवद्रव्यावधिमरण । भगवन् ! नैरयिक-द्रव्यावधिमरण नैरयिक-द्रव्यावधिमरण क्यों कहलाता है ? गौतम ! नैरयिकद्रव्य के रूप में रहे हए नैरयिक जीव जिन द्रव्यों को इस समय में छोड़ते हैं, फिर वे ही जीव पुनः नैरयिक हो कर उन्हीं द्रव्यों को ग्रहण कर भविष्य में फिर छोड़ेंगे; इस कारण हे गौतम ! यावत् कहलाता है । इसी प्रकार तिर्यञ्चयोनिक-द्रव्यावधिमरण, मनुष्य-द्रव्यावधिमरण और देव-द्रव्यावधिमरण भी कहना। इसी प्रकार के आलापक क्षेत्रावधिमरण, कालावधिमरण, भवावधिमरण और भावावधिमरण के विषय में भी कहने चाहिए ।
___ भगवन् ! आत्यन्तिकमरण कितने प्रकार का है ? गौतम ! पांच प्रकार का, यथाद्रव्यात्यन्तिकमरण, क्षेत्रात्यन्तिकमरण यावत् भावात्यन्तिकमरण | भगवन् ! द्रव्यात्यन्तिकमरण कितने प्रकार का है । गौतम ! चार प्रकार का । यथा-नैरयिक-द्रव्यात्यन्तिकमरण यावत् देवद्रव्यात्यन्तिक मरण । भगवन् ! नैरयिक-द्रव्यात्यन्तिकमरण नैरयिक-द्रव्यात्यन्तिकमरण क्यों कहलाता है ? गौतम ! नैरयिक द्रव्य रूप में रहे हुए नैरयिक जीव जिन द्रव्यों को इस समय छोड़ते हैं, वे नैरयिक जीव उन द्रव्यों को भविष्यत्काल में फिर कभी नहीं छोड़ेंगे । इस कारण हे गौतम ! यावत् कहलाता है । इसी प्रकार तिर्यञ्चयोनिक-द्रव्यात्यन्तिकमरण, मनुष्य-द्रव्यात्यन्तिकमरण एवं देवद्रव्यात्यन्तिकमरण के विषय में कहना । इसी प्रकार क्षेत्रात्यन्तिकमरण, यावत् भावात्यन्तिकमरण भी जानना।
भगवन् ! बालमरण कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! बारह प्रकार का । यथावलयमरण इत्यादि, द्वितीय स्कन्दकाधिकार के अनुसार, यावत् गृध्रपृष्ठमरण जानना।
भगवन् ! पण्डितमरण कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! दो प्रकार का यथापादपोपगमनमरण और भक्तप्रत्याख्यानमरण । भगवन् ! पादपोपगमनमरण कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! दो प्रकार का । यथा-निर्हारिम और अनिर्हारिम । (दोनों) नियमतः अप्रतिकर्म (शरीर-संस्कारहित) होता है । भगवन् ! भक्तप्रत्याख्यानमरण कितने प्रकार का कहा गया है ? पूर्ववत् दो प्रकार का है, विशेषता यह है कि दोनों प्रकार का यह मरण नियमतः सप्रतिकर्म (शरीरसंस्कारसहित) होता है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
| शतक-१३ उद्देशक-८ | [५९३] भगवन् ! कर्मप्रकृतियाँ कितनी हैं ? गौतम आठ । प्रज्ञापनासूत्र के बन्धस्थिति-उद्देशक का सम्पूर्ण कथन करना । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।
| शतक-१३ उद्देशक-९ । [५९४] राजगृह नगर में यावत् पूछा- भगवन् ! जैसे कोई पुरुष रस्सी से बंधी हुई घटिका लेकर चलता है, क्या उसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी रस्सी से बंधी हुई घटिका स्वयं हाथ में लेकर ऊँचे आकाश में उड़ सकता है ? हाँ, गौतम ! उड़ सकता है । भगवन् ! भावितात्मा अनगार रस्सी से बंधी हुई घटिका हाथ में ग्रहण करने रूप कितने रूपों की विकुर्वणा करने में समर्थ है ? गौतम ! तृतीय शतक में जैसे युवती-युवक के हस्तग्रहण का दृष्टान्त दे कर समझाया है, वैसे ही यहाँ समझना । यावत् यह उसकी शक्तिमात्र है । सम्प्राप्ति द्वारा कभी इतने रूपों की