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________________ ९२ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद भगवन् ! मन कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! मन चार प्रकार का कहा गया है । यथा-सत्यमन, मृषामन, सत्यमृषा-(मिश्र) मन और असत्यामृषा (व्यवहार) मन । [५९१] भगवन् ! काय आत्मा है, अथवा अन्य है ? गौतम ! काय आत्मा भी है और आत्मा से भिन्न भी है । भगवन् ! काय रूपी है अथवा अरूपी? गौतम ! काय रूपी भी है और अरूपी भी है । इसी प्रकार काय सचित्त भी है और अचित्त भी है । इसी प्रकार एक-एक प्रश्न करना चाहिए | काय जीवरूप भी है और अजीवरूप भी है । काय जीवों के भी होता है, अजीवों के भी होता है। भगवन् ! (जीव का सम्बन्ध होने से) पूर्व काया होती है, (अथवा कायिकपुद्गलों) के ग्रहण होते समय या काया-समय बीत जाने पर भी काया होती है ? गौतम ! पूर्व भी, चीयमान होते समय भी और काया-समय बीत जाने पर भी काया होती है । भगवन् ! (कायरूप से ग्रहण करने के समय से) पूर्व, ग्रहण करते या काया-समय बीत जाने पर काया का भेदन होता है ? गौतम ! (कायरूप से ग्रहण करने के समय से) पूर्व भी, पुद्गलों का ग्रहण होते समय भी और काय-समय बीत जाने पर भी काय का भेदन होता है ।। भगवन् ! काय कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! सात प्रकार का औदारिक, औदारिकमिश्र, वैक्रिय, वैक्रियमिश्र, आहारक, आहारकमिश्र और कार्मण । [५९२] भगवन् ! मरण कितने प्रकार का है ? गौतम ! पांच प्रकार का आवीचिकमरण, अवधिमरण, आत्यन्तिकमरण, बालमरण और पण्डितमरण । भगवन् ! आवीचिकमरण कितने प्रकार का है ? गौतम पांच प्रकार का । द्रव्यावीचिकमरण, क्षेत्रावीचिकमरण, कालावीचिकमरण, भवावीचिकमरण और भावावीचिकमरण । भगवन् ! द्रव्यावीचिकमरण कितने प्रकार का है ? गौतम ! वह चार प्रकार का । -नैरयिक-द्रव्यावीचिकमरण, तिर्यग्योनिक-द्रव्यावीचिकमरण, मनुष्यद्रव्यावीचिकमरण और देव-द्रव्यावीचिकमरण । भगवन् ! नैरयिक-द्रव्यावीचिकमरण को नैरयिक-द्रव्यावीचिकमरण किस लिए कहते हैं ? गौतम ! नारकद्रव्य रूप से वर्तमान नैरयिक ने जिन द्रव्यों को नारकायुष्य रूप में स्पर्श रूप से ग्रहण किया है, बन्धन रूप से बांधा है, प्रदेशरूप से प्रक्षिप्त कर पुष्ट किया है, अनुभाग रूप से विशिष्ट रसयुक्त किया है, स्थिति-सम्पादनरूप से स्थापित किया है, जीवप्रदेशों में निविष्ट किया है, अभिनिविष्ट, किया है तथा जो द्रव्य अभिसमन्वागत हैं, उन द्रव्यों को वे प्रतिसमय निरन्तर छोड़ते रहते हैं । इस कारण से हे गौतम ! यावत् नैरयिकद्रव्यावीचिकमरण कहते हैं । इसी प्रकार यावत् देव-द्रव्यावीचिकमरण के विषय में कहना । भगवन् ! क्षेत्रावीचिकमरण कितने प्रकार का है ? गौतम ! चार प्रकार का । यथानैरयिकक्षेत्रावीचिकमरण यावत् देवक्षेत्रावीचिकमरण । भगवन् ! नैरयिक-क्षेत्रावीचिकमरण नैरयिकक्षेत्रावीचिकमरण क्यों कहा जाता है ? गौतम ! नैरयिक क्षेत्र में रहे हुए जिन द्रव्यों को नारकायुष्यरूप में नैरयिकजीव ने स्पर्शरूप से ग्रहण किया है, यावत् उन द्रव्यों को (भोग कर) वे प्रतिसमय निरन्तर छोड़ते रहते हैं, इत्यादि सब कथन द्रव्यावीचिकमरण के समान करना । इसी प्रकार भावावीचिकमरण तक कहना । भगवन् ! अवधिमरण कितने प्रकार का है ? गौतम ! पांच प्रकार का है, यथाद्रव्याधिमरण, क्षेत्रावधिमरण यावत् भावावधिमरण । भगवन् ! द्रव्यावधिमरण कितने प्रकार का
SR No.009782
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size18 MB
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