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भगवती - १३/-/६/५८८
जीव- अजीव आदि तत्त्वों का ज्ञाता यावत् जीवनयापन करता था । ( अभीचि कुमार ) उदायन राजर्षि के प्रति वैर के अनुबन्ध से युक्त था ।
उस काल, उस समय में (भगवान् महावीर ने ) इस रत्नप्रभापृथ्वी के नरकावासों के परिपार्श्व में असुरकुमारों के चौसठ लाख असुरकुमारावास कहे हैं । उस अभीचि कुमार ने बहुत वर्षों तक श्रमणोपासक पर्याय का पालन किया और उस समय में अर्द्धमासिक सल्लेखना से तीस भक्त अनशन का छेदन किया । उस समय ( उदायन राजर्षि के प्रति पूर्वोक्त वैरानुबन्धरूप पाप) स्थान की आलोचना एवं प्रतिक्रमण किये बिना मरण के समय कालधर्म को प्राप्त करके इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नरकावासों के निकटवर्ती चौसठ लाख आताप नामक असुरकुमारावासों में से किसी आताप नामक असुरकुमारावास में आतापरूप असुरकुमार देव के रूप में उत्पन्न हुआ । वहाँ अभीचि देव की स्थिति भी एक पल्योपम की है । भगवन् ! वह अभीचि देव उस देवलोक से आयु-क्षय, भव-क्षय और स्थिति-क्षय होने के अनन्तर उद्वर्त्तन करके कहाँ जाएगा, कहाँ उत्पन्न होगा ? गौतम ! वह वहाँ से च्यव कर महाविदेह वर्ष (क्षेत्र) में सिद्ध होगा, यावत् सर्वदुःखों का अन्तकरेगा । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।
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शतक- १३ उद्देशक - ७
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[५८९] राजगृह नगर में यावत् पूछा-भगवन् ! भाषा आत्मा है या अन्य है ? गौतम ! भाषा आत्मा नहीं है, अन्य ( आत्मा से भिन्न पुद्गलरूप ) है । भगवन् ! भाषा रूपी है या अरूपी है ? गौतम ! भाषा रूपी है, वह अरूपी नहीं है । भगवन् ! भाषा सचित्त है या अचित्त है ? गौतम ! भाषा सचित्त नहीं है अचित्त है । भगवन् ! भाषा जीव है, अथवा अजीव है ? गौतम ! भाषा जीव नहीं है, वह अजीव है ।
भगवन् ! भाषा जीवों के होती है या अजीवों के होती है ? गौतम ! भाषा जीवों के होती है, अजीवों के भाषा नहीं होती । भगवन् ! ( बोलने से ) पूर्व भाषा कहलाती है या बोलते समय भाषा कहलाती है, अथवा बोलने का समय बीत जाने के पश्चात् भाषा कहलाती है ? गौतम ! बोलने से पूर्व भाषा नहीं कहलाती, बोलते समय भाषा कहलाती है; किन्तु बोलने का समय बीत
के बाद भी भाषा नहीं कहलाती । भगवन् ! (बोलने से ) पूर्व भाषा का भेदन होता है, या बोलते समय भाषा का भेदन होता है, अथवा बोलने का समय बीत जाने के बाद भाषा का भेदन होता है ? गौतम ! ( बोलने से ) पूर्व भाषा का भेदन नहीं होता, बोलते समय भाषा का भेदन होता है, किन्तु बोलने के बाद भेदन नहीं होता ।
भगवन् ! भाषा कितने प्रकार की है ? गौतम ! भाषा चार प्रकार की है । यथा - सत्य भाषा, असत्य भाषा, सत्यामृषा भाषा और असत्यामृषा (व्यवहार) भाषा ।
[५९०] भगवन् ! मन आत्मा है, अथवा आत्मा से भिन्न ? गौतम ! आत्मा मन नहीं है । मन अन्य है; इत्यादि । भाषा के ( प्रश्नोत्तर) समान मन के विषय में भी यावत्-अजीवों के मन नहीं होता; (यहाँ तक) कहना । भगवन् ! ( मनन से ) पूर्व मन कहलाता है, या मनन के समय, अथवा मनन के बाद मन कहलाता है ? गौतम ! भाषा के अनुसार कहना । भगवन् ! (मनन से) पूर्व मन का भेदन होता है, अथवा मनन करते या मनन- समय व्यतीत हो जाने पर ? गौतम ! भाषा अनुसार कहना ।