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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
हैं यावत् सर्व दुःखों का अन्त कर देते हैं ।
भगवन् ! देवाधिदेव आयुष्यपूर्ण कर दूसरे ही क्षण कहाँ जाते हैं, कहाँ उत्पन्न होते हैं ? गौतम! वे सिद्ध होते हैं, यावत सर्व दुःखों का अन्त करते हैं । भगवन् ! भावदेव, आयु पूर्ण कर तत्काल कहाँ उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! व्युत्क्रान्तिपद में जिस प्रकार असुरकुमारों की उद्वर्तना कही है, उसी प्रकार यहाँ भावदेवों की भी उद्धर्तना कहना चाहिए ।
भगवन् ! भव्यद्रव्यदेव, भव्यद्रव्यदेवरूप से कितने काल तक रहता है ? गौतम ! जघन्य अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट तीन पल्योपम । इसी प्रकार जिसकी जो (भव-) स्थिति कही है, उसी प्रकार उसकी संस्थिति भी यावत् भावदेव तक कहनी चाहिए । विशेष यह है कि धर्मदेव की (संस्थिति) जघन्य एक समय और उत्कृष्ट देशोन पूर्वकोटि वर्ष है ।
___ भगवन् ! भव्यद्रव्यदेव का अन्तर कितने काल का होता है ? गौतम ! जघन्य अन्तमुहूर्त अधिक दस हजार वर्ष और उन्कृष्ट अनन्तकाल-वनस्पतिकाल | भगवन् ! नरदेवों का कितने काल का अन्तर होता है ? गौतम ! जघन्य सागरोपम से कुछ अधिक और उत्कृष्ट अनन्तकाल, देशोन अपार्द्ध पुद्गलपरावर्त-काल । भगवन् ! धर्मदेव का अन्तर कितने काल तक का होता है ? गौतम ! जघन्य पल्योपम-पृथक्त्व तक और उत्कृष्ट अनन्तकाल यावत देशोन अपार्द्ध पुद्गलपरावर्त । भगवन् ! देवाधिदेवों का अन्तर कितने काल का होता है ? गौतम ! देवाधिदेवों का अन्तर नहीं होता । भगवन् ! भावदेव का अन्तर कितने काल का होता है ? गौतम ! जघन्य अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट अनन्तकाल-वनस्पतिकाल ।
भगवन् ! इन भव्यद्रव्यदेव, नरदेव यावत् भावदेव में से कौन (देव) किन (देवों) से अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक होते हैं ? गौतम ! सबसे थोड़े नरदेव होते हैं, उनसे देवाधिदेव संख्यात-गुणा (अधिक) होते हैं, उनसे धर्मदेव संख्यातगुण (अधिक) होते हैं, उनसे भव्यद्रव्यदेव असंख्यातगुणे होते हैं, और उनसे भी भावदेव असंख्यात गुणे होते हैं ।
[५५९] भगवन् ! भवनवासी, वाणव्यन्तर ज्योतिष्क और वैमानिक, तथा वैमानिकों में भी सौधर्म, ईशान, यावत् अच्युत, ग्रैवेयक एवं अनुत्तरोपपातिक विमानों तक के भावदेवों में कौन (देव) किस (देव) से अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक है ? गौतम ! सबसे थोड़े अनुत्तरोपपातिक भावदेव हैं, उनसे उपरिम ग्रैवेयक के भावदेव संख्यातगुणे अधिक हैं, उनसे मध्यम ग्रैवेयक के भावदेव संख्यातगुणे हैं, उनसे नीचे के ग्रैवेयक के भावदेव संख्यात गुणे हैं । उनसे अच्युतकल्प के देव संख्यातगुणे हैं, यावत् आनतकल्प के देव संख्यात गुणे हैं । इससे आगे जीवाभिगमसूत्र की दूसरी प्रतिपत्ति में देवपुरुषों का अल्पबहुत्व कहा है, उसी प्रकार यहाँ भी ज्योतिषी भावदेव असंख्यातगुणे (अधिक) हैं तक कहना चाहिए । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है' ।
| शतक-१२ उद्देशक-१० | [५६०] भगवन् ! आत्मा कितने प्रकार की कही गई है ? गौतम ! आत्मा आठ प्रकार की कही गई है, वह इस प्रकार-द्रव्यात्मा, कषायात्मा, योग-आत्मा, उपयोग-आत्मा, ज्ञानआत्मा, दर्शन-आत्मा, चारित्र-आत्मा और वीर्यात्मा ।
भगवन् ! जिसके द्रव्यात्मा होती है, कया उसके कषायात्मा होती है और जिसके कषायात्मा