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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
अनाच्छादित रहता है । इनमें से जो पर्वराहु है, वह जघन्यतः छह मास में चन्द्र और सूर्य को आवृत करता है और उत्कृष्ट बयालीस मास में चन्द्र को और अड़तालीस वर्ष में सूर्य को ढंकता है ।
[५४७] भगवन् ! चन्द्रमा को 'चन्द्र शशी है', ऐसा क्यों कहा जाता है ? गौतम ! ज्योतिषियों के इन्द्र, ज्योतिषियों के राजा चन्द्र का विमान मृगांक है, उसमें कान्त देव तथा कान्ता देवियाँ हैं और आसन, शयन, स्तम्भ, भाण्ड, पात्र आदि उपकरण (भी) कान्त हैं । स्वयं ज्योतिष्कों का इन्द्र, ज्योतिष्कों का राजा चन्द्र भी सौम्य, कान्त, सुभग, प्रियदर्शन और सुरूप है, इसलिए, हे गौतम ! चन्द्रमा को शशी कहा जाता है ।
[५४८] भगवन् ! सूर्य को–'सूर्य आदित्य है', ऐसा क्यों कहा जाता है ? गौतम ! समय अथवा आवलिका यावत् अथवा अवसर्पिणी या उत्सर्पिणी (इत्यादि काल) की आदि सूर्य से होती है, इसलिए इसे आदित्य कहते हैं ।
[५४९] भगवन् ! ज्योतिष्कों के इन्द्र, ज्योतिष्कों के राजा चन्द्र की कितनी अग्रमहिषियाँ हैं ? गौतम ! दशवें शतक अनुसार राजधानी में सिंहासन पर मैथुन-निमित्तक भोग भोगने में समर्थ नहीं है, यहाँ तक कहना । सूर्य के सम्बन्ध में भी इसी प्रकार कहना । भगवन् ! ज्योतिष्कों के इन्द्र, ज्योतिष्कों के राजा चन्द्र और सूर्य किस प्रकार के कामभोगों का उपभोग करते हुए विचरते हैं ? गौतम ! जिस प्रकार प्रथम यौवन वय में किसी बलिष्ठ पुरुष ने, किसी यौवनअवस्था में प्रविष्ट होती हुई किसी बलिष्ठ भार्या के साथ नया ही विवाह किया, और अर्थोपार्जन करने की खोज में सोलह वर्ष तक विदेश में रहा । वहाँ से धन प्राप्त करके अपना कार्य सम्पन्न कर वह निर्विघ्नरूप से पुनः लौट कर शीघ्र अपने घर आया । वहाँ उसने स्नान किया, बलिकर्म किया, कौतुक और मंगलरूप प्रायश्चित्त किया । तत्पश्चात् सभी आभूषणों से विभूषित होकर मनोज्ञ स्थालीपाक-विशुद्ध अठारह प्रकार के व्यंजनों से युक्त भोजन करे । फिर महाबल के प्रकरण में वर्णित वासगृह के समान शयनगृह में श्रृंगारगृहरूप सुन्दर वेषवाली, यावत् ललतिकलायुक्त, अनुरक्त, अत्यन्त रागयुक्त और मनोऽनुकूल पत्नी के साथ वह इष्ट शब्द रूप, यावत् स्पर्श (आदि), पांच प्रकार के मनुष्य-सम्बन्धी कामभोग का उपभोग करता हुआ विचरता है ।
हे गौतम ! वह पुरुष वेदोपशमन के समय किस प्रकार के साता-सौख्य का अनुभव करता है ? आयुष्यमन् श्रमण भगवन् ! वह पुरुष उदार (सुख का अनुभव करता है ।) हे गौतम ! उस पुरुष के इन कामभोगों से वाणव्यन्तरदेवों के कामभोग अनन्तगुण-विशिष्टतर होते हैं । ऊनसे असुरेन्द्र के सिवाय शेष भवनवासी देवों के कामभोग अनन्तगुण-विशिष्टतर होते हैं | ऊनसे असुरकुमारदेवों के कामभोग अनन्तगुण-विशिष्टतर होते हैं । ऊनसे ग्रहगण, नक्षत्र और तारारूप ज्योतिष्कदेवों के कामभोग अनन्तगुण-विशिष्टतर होते हैं । ऊनसे ज्योतिष्कों के इन्द्र, ज्योतिष्कों के राजा चन्द्रमा और सूर्य के कामभोग अनन्तगुण विशिष्टतर होते हैं । हे गौतम ! ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिष्कराज चन्द्रमा और सूर्य इस प्रकार के कामभोगों का अनुभव करते हुए विचरते हैं । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
| शतक-१२ उद्देशक-७ [५५०] उस काल और उस समय में यावत् गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान् महावीर से प्रश्न किया- भगवन् ! लोक कितना बड़ा है ? गौतम ! लोक महातिमहान् है । पूर्वदिशा में