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भगवती-१२/-/६/५४६
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लेता है, तो हे भगवन् ! क्या यह ऐसा ही है ? गौतम ! यह जो बहुत-से लोग परस्पर इस प्रकार कहते हैं, वे मिथ्या कहते हैं । मैं इस प्रकार कहता हूँ, यावत् प्ररूपणा करता हूँ-“यह निश्चय है कि राहु महर्द्धिक यावत् महासौख्यसम्पन्न उत्तम वस्त्रधारी, श्रेष्ठ माला का धारक, उत्कृष्ट सुगन्धधर और उत्तम आभूषणधारी देव है ।"
राहु देव के नौ नाम कहे हैं-(१) श्रृंगाटक, (२) जटिलक, (३) क्षत्रक, (४) खर, (५) दर्दुर, (६) मकर, (७) मत्स्य, (८) कच्छप और (९) कृष्णसर्प ।।
राहुदेव के विमान पांच वर्ण के कहे हैं-काला, नीला, लाल, पीला और श्वेत । इनमें से राहु का जो काला विमान है, वह खंजन के समान कान्तिवाला है । राहुदेव का जो नीला विमान है, वह हरी तुम्बी के समान कान्तिवाला है । राहु का जो लोहित विमान है, वह मजीठ के समान प्रभावाला है । राहु का जो पीला विमान है, वह हल्दी के समान वर्ण वाला है और राहु का जो शुक्ल विमान है, वह भस्मराशि के समान कान्ति वाला है । जब गमन-आगमन करता हुआ, विकुर्वणा करता हुआ तथा कामक्रीड़ा करता हुआ राहुदेव, पूर्व में स्थित चन्द्रमा की ज्योत्स्ना को ढंक कर पश्चिम की ओर चला जाता है; तब चन्द्रमा पूर्व में दिखाई देता है और पश्चिम में राह दिखाई देता है । जब आता हुआ या जाता हुआ, अथवा विक्रिया करता हुआ, या कामक्रीडा करता हुआ राहु, चन्द्रमा की दीप्ति को पश्चिमदिशा में आच्छादित करके पूर्वदिशा को ओर चला जाता है; तब चन्द्रमा पश्चिम में दिखाई देता है और राहु पूर्व में दिखाई देता है । इसी प्रकार दक्षिण और उत्तर के दो आलापक है । इसी प्रकार ईशानकोण और नैऋत्यकोण के और इसी प्रकार आग्नेयकोण एवं वायव्यकोण के दो आलापक है । इसी प्रकार जब आता हुआ या जाता हुआ, अथवा विक्रिया करता हुआ या कामक्रीडा करता हुआ राहु, बार-बार चन्द्रमा की ज्योत्स्ना को आवृत करता रहता है, तब मनुष्य कहते हैं-'राहु ने चन्द्रमा को ऐसे ग्रस लिया, राहु इस प्रकार चन्द्रमा को ग्रस रहा हैं ।' जब आता हुआ या यावत् कामक्रीडा करता हुआ राहु चन्द्रद्युति को आच्छादित करके पास से होकर निकलता है, तब मनुष्य कहते हैं-'चन्द्रमा ने राहु की कुक्षि का भेदन कर डाला, इस प्रकार चन्द्रमा ने राहु की कुक्षि का भेदन कर डाला ।' जब आता हुआ या यावत् कामक्रीडा करता हुआ राहु, चन्द्रमा की प्रभा को आवृत करके वापस लौटता है, तब मनुष्य कहते हैं-राहु ने चन्द्रमा का वमन कर दिया, राहु ने चन्द्रमा का वमन कर दिया ।' जब आता हुआ या यावत् कामक्रीडा करता हुआ राहु, चन्द्रमा की दीप्ति को नीचे से, दिशाओं एवं विदिसाओं से ढंक कर रहता है, तब मनुष्यलोक में मनुष्य कहते हैं-'राहु ने इसी प्रकार चन्द्रमा को ग्रसित कर लिया है।' ।
__ भगवन् ! राहु कितने प्रकार का है ? गौतम ! दो प्रकार का, यथा-ध्रुवराहु और पर्वराहु । उनमें से जो ध्रुवराहु है, वह कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से लेकर प्रतिदिन अपने पन्द्रहवें भाग से, चन्द्रबिम्ब के पन्द्रहवें भाग को बार-बार ढंकता रहता है, यथा-प्रथमा को (चन्द्रमा) के प्रथम भाग को ढंकता है, द्वितीया को दूसरे भाग को ढंकता है, इसी प्रकार यावत् अमावस्या को पन्द्रहवें भाग को ढंकता है । कृष्णपक्ष के अन्तिम समय में चन्द्रमा रक्त (सर्वथा आवृत) हो जाता है, और शेष समय में चन्द्रमा रक्त और विरक्त रहता है । इसी कारण शुक्लपक्ष का प्रतिपदा से लेकर यावत् पूर्णिमा तक प्रतिदिन पन्द्रहवाँ भाग दिखाई देता रहता है, शुक्लपक्ष के अन्तिम समय में चन्द्रमा पूर्णतः अनाच्छादित हो जाता है, और शेष समय में वह अंशतः अनाच्छादित और अंशतः