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________________ भगवती-१२/-/४/५३९ ५७ कितने हुए ? गौतम ! व अनन्त हुए हैं । भगवन् ! भविष्य में कितने होंगे ? किसी के होंगे, और किसी के नहीं होंगे । जिसके होंगे, उसके जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त होंगे । इसी प्रकार यावत् मनुष्य भव तक कहना । असुकुमारपन के समान वाणव्यन्तरपन, ज्योतिष्कपन तथा वैमानिकपन में कहना। भगवन् ! प्रत्येक असुरकुमार के नैरयिक भव में अतीत औदारिक-पुद्गलपरिवर्त कितने हुए हैं ? गौतम ! (प्रत्येक) नैरयिक जीव के समान असुरकुमार के विषय में यावत् वैमानिक भवपर्यन्त कहना । इसी प्रकार स्तनितकुमार तक कहना । इसी प्रकार प्रत्येक पृथ्वीकाय के विषय में भी वैमानिक पर्यन्त सबका एक आलापक कहना । ____भगवन् ! प्रत्येक नैरयिक जीव के नैरयिक भव में अतीतकालीन वैक्रियपुद्गलपरिवर्त कितने हुए हैं ? गौतम! अनन्त हुए हैं । भगवन् ! भविष्यकालीन कितने होंगे? गौतम ! (किसी के होंगे और किसी के नहीं होंगे । एक से लेकर उत्तरोत्तर उत्कृष्ट संख्यात, असंख्यात अथवा यावत् अनन्त होंगे । इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमार भव तक कहना । (भगवन् ! प्रत्येक नैरयिक जीव के) पृथ्वीकायिक भव में (अतीत में वैक्रियपुद्गलपरिवर्त) कितने हुए ? (गौतम !) एक भी नहीं हुआ । (भगवन् !) भविष्यत्काल में (ये) कितने होंगे? गौतम ! एक भी नहीं होगा । इस प्रकार जहाँ वैक्रियशरीर है, वहाँ एक से लेकर उत्तरोत्तर (अनन्त तक), (वैक्रियपुद्गलपरिवर्त्त जानना चाहिए ।) जहाँ वैक्रियशरीर नहीं है, वहाँ (प्रत्येक नैरयिक के) पृथ्वीकायभव में (वैक्रिय-पुद्गलपरिवर्त के विषय में) कहा, उसी प्रकार यावत् (प्रत्येक) वैमानिक जीव के वैमानिक भव पर्यन्त कहना चाहिए । तैजस-पुद्गलपरिवर्त और कार्मण-पुद्गलपरिवर्त्त सर्वत्र एक से लेकर उत्तरोत्तर अनन्त तक कहने चाहिए । मनः-पुद्गलपरिवर्त समस्त पंचेन्द्रिय जीवों में एक से लेकर उत्तरोत्तर यावत् अनन्त तक कहने चाहिए । किन्तु विकलेन्द्रियों में मनः-पुद्गलपरिवर्त नहीं होता । इसी प्रकार वचन-पुद्गलपरिवर्त के सम्बन्ध में भी कहना चाहिए । विशेष इतना ही है कि वह (वचनपुद्गलपरिवर्त) एकेन्द्रिय जीवों में नहीं होता । आन-प्राण-पुद्गलपरिवर्त भी सर्वत्र एक से लेकर अनन्त तक जानना चाहिए । यावत् वैमानिक के वैमानिक भव तक कहना । भगवन् ! अनेक नैरयिक जीवों के नैरयिक भव में अतीतकालिक औदारिकपुद्गलपरिवर्त कितने हुए हैं ? गौतम ! एक भी नहीं हुआ । भगवन् ! भविष्य में कितने होंगे? गौतम ! भविष्य में एक भी नहीं होगा । इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमार भव तक । भगवन् ! अनेक नैरयिक जीवों के पृथ्वीकायिकपन में (अतीतकालिक औदारिकपुद्गलपरिवर्त) कितने हुए हैं । गौतम ! अनन्त हुए हैं । भगवन् ! भविष्य में (औदारिकपुद्गल-परिवर्त) कितने होंगे ? गौतम ! अनन्त होंगे । अनेक नैरयिकों के पृथ्वीकायिकपन में अतीत-अनागत औदारिक-पुद्गल परिवर्त्त के समान मनुष्यभव तक कहना । अनेक नैरयिकों के नैरयिकभव में अतीत-अनागत औदारिकपुद्गलपरिवर्त्त के समान उनके वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देव के भव में भी कहना । उसी प्रकार अनेक वैमानिकों के वैमानिक भव तक कहना। जिस प्रकार औदारिक-पुद्गलपरिवर्त के विषय में कहा, उसी प्रकार शेष सातों पुद्गलपरिवर्तों का कथन कहना चाहिए । जहाँ जो पुद्गलपरिवर्त्त हो, वहाँ उसके अतीत और
SR No.009782
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size18 MB
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