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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
का विचार किया ।
[५३१] उस शंख श्रमणोपासक ने दूसरे श्रमणोपासकों से कहा-देवानुप्रियो ! तुम विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम तैयार कराओ । फिर हम उस प्रचुर अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य का आस्वादन करते हुए, विस्वादन करते हुए, एक दूसरे को देते हुए भोजन करते हुए पाक्षिक पौषध का अनुपालन करते हुए अहोरात्र-यापन करेंगे । इस पर उन श्रमणोपासकों ने शंख श्रमणोपासक की इस बात को विनयपूर्वक स्वीकार किया ।
तदनन्तर उस शंख श्रमणोपासक को एक ऐसा अध्यवसाय यावत् उत्पन्न हुआ–“उस विपुल अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य का आस्वादन, विस्वादन, परिभाग और परिभोग करते हुए पाक्षिक पौषध (करके) धर्मजागरणा करना मेरे लिए श्रेयस्कर नहीं प्रत्युत अपनी पौषध-शाला में, ब्रह्मचर्यपूर्वक, मणि, सुवर्ण आदि के त्यागरूप तथा माला, वर्णक एवं विलेपन से रहित, और शस्त्र-मूसल आदि के त्यागरूप पौषध का ग्रहण करके दर्भ के संस्तारक पर बैठ कर अकेले को ही पाक्षिक पौषध के रूप में धर्मजागरणा करते हुए विचरण करना श्रेयस्कर है ।" इस प्रकार विचार करके वह श्रावस्ती नगरी में जहाँ अपना घर था, वहाँ आया, (और अपनी धर्मपत्नी) उत्पला श्रमणोपासिका से पूछा । फिर पौषधशाला में प्रवेश किया । पौषधशाला का प्रमार्जन किया; उच्चारण-प्रस्त्रवण की भूमि का प्रतिलेखन किया । डाभ का संस्तारक बिछाया और उस पर बैठा। फिर पौषधशाला में उसने ब्रह्मचर्य पूर्वक यावत् पाक्षिक पौषध पालन करते हुए, (अहोरात्र) यापन किया ।
__ तत्पश्चात् वे श्रमणोपासक श्रावस्ती नगरी में अपने-अपने घर पहुँचे । और उन्होंने पुष्कल अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य तैयार करवाया । एक दूसरे को बुलाया और परस्पर कहने लगेदेवानुप्रियो ! हमने तो पुष्कल अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य तैयार करवा लिया; परन्तु शंख श्रमणोपसक अभी तक नहीं आए, देवानुप्रियो ! हमें शंख श्रमणोपासक को बुला लाना श्रेयस्कर है । इसके बाद उस पुष्कली श्रमणोपासक ने कहा-“देवानुप्रियो ! तुम सब अच्छी तरह स्वस्थ
और विश्वस्त होकर बैठो, मैं शंख श्रमणोपासक को बुलाकर लाता हूँ।" यों कह कर वह श्रावस्ती नगरी में जहाँ शंख श्रमणोपासक का घर था, वहाँ आकर उसने शंख श्रमणोपासक के घर में प्रवेश किया ।
पुष्कली श्रमणोपासक को आते देख कर, वह उत्पला श्रमणापासिका हर्षित और सन्तुष्ट हुई । वह अपने आसन से उठी और सात-आठ कदम सामने गई । पुष्कली श्रमणोपासक को वन्दन-नमस्कार किया, और आसन पर बैठने को कहा । फिर पूछा-'कहिये, देवानुप्रिय ! आपके आने का क्या प्रयोजन है ?' पुष्कली श्रमणोपासक ने, उत्पला श्रमणोपासिका से कहा-'देवानुप्रिये ! शंख श्रमणोपासक कहाँ हैं ?' उत्पला-'देवानुप्रिय ! बात ऐसी है कि वह पौषधशाला में पौषध ग्रहण करके ब्रह्मचर्ययुक्त होकर यावत् (धर्मजागरणा कर) रहे हैं । तब वह पुष्कली श्रमणोपासक, जिस पौषधशाला में शंख श्रमणोपासक था, वहाँ उसके पास आया और उसने गमनागमन का प्रतिक्रमण किया । फिर शंख श्रमणोपासक को वन्दन-नमस्कार करके बोला-'देवानुप्रिय ! हमने वह विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम आहार तैयार करा लिया है । अतः देवानुप्रिय ! अपन चलें और वह विपुल अशनादि आहार एक दूसरे को देते और उपभोगादि करते हुए पौषध करके रहें । शंख श्रमणोपासक ने पुष्कली श्रमणोपासक से कहा-'देवानुप्रिय ! मेरे लिये उस