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भगवती-१२/-/१/५३१
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विपुल अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य का उपभोग आदि करते हुए पौषध करना कल्पनीय नहीं है । मेरे लिए पौषधशाला में पौषध अंगीकार करके यावत् धर्मजागरणा करते हुए रहना कल्पनीय है । अतः हे देवानुप्रिय ! तुम सब अपनी इच्छानुसार उस विपुल अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य आहार का उपभोग आदि करते हुए यावत् पौषध का अनुपालन करो ।
तदनन्तर वह पुष्कली श्रमणोपासक, शंख श्रमणोपासक की पौषधशाला से लौटा और श्रावस्ती नगरी के मध्य में से होकर, जहाँ वे (साथी) श्रमणोपासक थे, वहाँ आया । फिर उन श्रमणोपासकों से बोला-शंख श्रमणोपासक निराहार-पौषधव्रत अंगीकार करके स्थित है । उसने कह दिया कि “देवानुप्रियो ! तुम सब स्वेच्छानुसार उस विपुल अशनादि आहार को परस्पर देते हुए यावत् उपभोग करते हुए पौषध का अनुपालन करो । शंख श्रमणोपासक अब नहीं आएगा।" यह सुन कर उन श्रमणोपासकों ने उस विपुल अशन-पान-खाद्य-स्वाधरूप आहार को खाते-पीते हुए यावत् पौषध करके धर्मजागरणा की ।
इधर उस शंख श्रमणोपासक को पूर्वरात्रि व्यतीत होने पर, पिछली रात्रि के समय में धर्मजागरिकापूर्वक जागरणा करते हुए इस प्रकार का अध्यवसाय यावत् उत्पन्न हुआ–'कल प्रातःकाल यावत् जाज्वल्यमान सूर्योदय होने पर मेरे लिये यह श्रेयस्कर है कि श्रमण भगवान् महावीर को वन्दना-नमस्कार करके यावत् उनकी पर्युपासना करके वहाँ से लौट कर पाक्षिक पौषध पारित करूं । प्रातःकाल सूर्योदय होने पर अपनी पौषधशाला से बाहर निकला | शुद्ध एवं सभा में प्रवेश करने योग्य मंगल वस्त्र ठीक तरह से पहने, और अपने घर से चला । वह पैदल चलता हुआ श्रावस्ती नगरी के मध्य में होकर भगवान् की सेवा में पहुँचा, यावत् उनकी पर्युपासना करने लगा। वहाँ अभिगम नहीं (कहना चाहिए ।) तदनन्तर वे सब श्रमणोपासक, (दूसरे दिन) प्रातःकाल यावत् सूर्योदय होने पर स्नानादि (नित्यकृत्य) करके यावत् शरीर को अलंकृत करके अपने-अपने घरों से निकले और एक स्थान पर मिले । फिर सब मिल कर पूर्ववत् भगवान् की सेवा में पहुँचे, यावत् पर्युपासना करने लगे।
भगवान महावीर ने उन श्रमणोपासकों और उस महती महापरिषद् को यावत्-धर्मदेशना दी । इसके बाद वे सभी श्रमणोपासक श्रमण भगवान् महावीर से धर्म श्रवण कर और हृदय में अवधारणा करके हर्षित एवं सन्तुष्ट हुए । फिर उन्होंने खड़े होकर श्रमण भगवान् महावीर को वन्दन-नमस्कार किया । तदनन्तर वेशंख श्रमणोपासक के पास आए और कहने लगे-देवानप्रिय! कल आपने ही हमें कहा था कि "देवानुप्रियो ! तुम प्रचुर अशनादि आहार तैया करवाओ, हम आहार देते हुए यावत् उपभोग करते हुए पौषध का अनुपालन करेंगे । किन्तु फिर आप आए नहीं और आपने अकेले ही पौषधशाला में यावत् निराहार पौषध कर लिया । अतः देवानुप्रिय ! आपने हमारी अच्छी अवहेलना की !" श्रमण भगवान् महावीर ने उन श्रमणोपासकों से इस प्रकार कहा-“आर्यो ! तुम श्रमणोपासक शंख की हीलना, निन्दा, कोसना, गर्दा और अवमानना मत करो । क्योंकि शंख श्रमणोपासक प्रियधर्मा और दृढधर्मा है । इसने सुदर्शन नामक जागरिका जागृत की है।
[५३२] गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को वन्दन-नमस्कार किया और पूछा-भगवन् ! जागरिका कितने प्रकार की है । गौतम ! जागरिका तीन प्रकार की कही गई हैं, यथा-बुद्ध-जागरिका, अबुद्ध-जागरिका और सुदर्शन-जागरिका ।