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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
आवलिका का एक उच्छ्वास होता है, इत्यादि छठे शतक में कहे अनुसार यावत्-'यह एक सागरोपम का परिमाण होता है', यहां तक जान लेना चाहिए । भगवन् ! इन पल्योपम और सागरोपमों से क्या प्रयोजन है ? हे सुदर्शन ! इन पल्योपम और सागरोपमों से नैरयिकों, तिर्यञ्चयोनिकों, मनुष्यों तथा देवों का आयुष्य नापा जाता है ।
[५१७] भगवन् ! नैरयिकों की स्थिति कितने काल की है ? सुदर्शन ! स्थितिपद सम्पूर्ण कहना, यावत्-अजघन्य-अनुत्कृष्ट तेतीस सागरोपमकी स्थिति है । .
[५१८] भगवन् ! क्या इन पल्योपम और सागरोपम का क्षय या अपचय होता है ? हाँ, सुदर्शन होता है | भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहते हैं ? हे सुदर्शन ! उन काल और उस समय में हस्तिनापुर नामक नगर था । वहाँ सहस्त्राम्रवन नामक उद्यान था । उस हस्तिनापुर में 'बल' नामक राजा था । उस बल राजा की प्रभावती नाम की देवी (पटरानी) थी । उसके हाथ-पैर सुकुमाल थे, यावत् पंचेन्द्रिय संबंधी सुखानुभव करती हुई जीवनयापन करती थी ।
किसी दिन वह प्रभावती देवी उस प्रकार के वासगृह के भीतर, उस प्रकार की अनुपम शय्या पर (सोई हुई थी ।) (वह वासगृह) भीतर से चित्रकर्म से युक्त तथा बाहर से सफेद किया हुआ, एवं घिस कर चिकना बनाया हुआ था । जिसका ऊपरी भाग विविध चित्रों से युक्त तथा अधोभाग प्रकाश से देदीप्यमान था । मणियों और रत्नों के कारण उस का अन्धकार नष्ट हो गया था । उसका भूभाग बहुतसम और सुविभक्त था । पांच वर्ण के सरस और सुगन्धित पुष्पपुंजों के उपचार से युक्त था । उत्तम कालागुरु, कुन्दरुक और तुरुष्क के धूप से वह वासभवन चारों ओर से महक रहा था । उसकी सुगन्ध से वह अभिराम तथा सुगन्धित पदार्थों से सुवासित था । एक तरह से वह सुगन्धित द्रव्य की गुटिका के जैसा हो रहा था । ऐसे आवासभवन में जो शय्या थी, वह अपने आप में अद्वितीय थी तथा शरीर से स्पर्श करते हुए पार्श्ववर्ती तकिये से युक्त थी । फिर उस के दोनों और तकिये रखे हुए थे । वह दोनों ओर से उन्नत थी, बीच में कुछ झुकी हुई एवं गहरी थी, एवं गंगानदी की तटवर्ती बालू पैर रखते ही नीचे धस जाने के समान थी । वह मुलायम बनाए हुए रेशमी दुकूलपट से आच्छादित तथा सुन्दर सुरचित रजस्त्राण से युक्त थी । लालरंग के सूक्ष्म वस्त्र की मच्छरदानी उस पर लगी हुई थी । वह सुरम्य आजिनक, रूई, बूर, नवनीत तथा अर्कतूल के समान कोमल स्पर्श वाली थी; तथा सुगन्धित श्रेष्ठपुरुष चूर्ण एवं शयनोपचार से युक्त थी ।
ऐसी शय्या पर सोती हुई प्रभावती रानी, जब अर्धरात्रिकाल के समय कुछ सोती-कुछ जागती अर्धनिद्रित अवस्था में थी, तब स्वप्न में इस प्रकार का उदार, कल्यामरूप, शिव, धन्य, मंगलकारक एवं शोभायुक्त महास्वप्न देखा और जागृत हुई । प्रभावती रानी ने स्वप्न में एक सिंह देखा, जो हार, रजत, क्षीरसमुद्र, चन्द्रकिरण, जलकण, रजतमहाशैल के समान श्वेत वर्ण वाला था, वह विशाल, रमणीय और दर्शनीय था । उसके प्रकोष्ठ स्थिर और सुन्दर थे । वह अपने गोल, पुष्ट, सुश्लिष्ट, विशिष्ट और तीक्ष्ण दाढ़ाओं से युक्त मुंह को फाड़े हुए था । उसके ओष्ठ संस्कारित जातिमान् कमल के समान कोमल, प्रमाणोपेत एवं अत्यन्त सुशोभित थे । उसका तालु और जीभ रक्तकमल के पत्ते के समान अत्यन्त कोमल थी । उसके नेत्र, मूस में रहे हुए एवं अग्नि में तपाये हुए तथा आवर्त करते हुए उत्तम स्वर्ण के समान वर्ण वाले, गोल एवं विद्युत् के समान विमल (चमकीले) थे । उसकी जंघा विशाल एवं पुष्ट थी । उसके स्कन्ध परिपूर्ण और विपुल थे। वह मृदु, विशद, सूक्ष्म एवं प्रशस्त लक्षण वाली विस्तीर्ण केसर की जटा से सुशोभित था । वह