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भगवती-११/-/११/५१८
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सिंह अपनी सुनिर्मित, सुन्दर एवं उन्नत पूंछ को फटकारता हुआ, सौम्य आकृति वाला, लीला करता हुआ, जंभाई लेता हुआ, गगनतल से उतरता हुआ तथा अपने मुख-कमल-सरोवर में प्रवेश करता हुआ दिखाई दिया । स्वप्न में ऐसे सिंह को देखकर रानी जागृत हुई ।
तदनन्तर वह प्रभावती रानी इस प्रकार के उस उदार यावत् शोभायुक्त महास्वप्न को देखकर जागृत होते ही अत्यन्त हर्षित एवं सन्तुष्ट हुई; यावत् मेघ की धारा से विकसित कदम्बपुष्प के समान रोमांचित होती हुई उस स्वप्न का स्मरण करने लगी । फिर वह अपनी शय्या से उठी
और शीघ्रता से रहित तथा अचपल, असम्भ्रमित एवं अविलम्बित अतएव राजहंस सरीखी गति से चलकर जहाँ बल राजा की शय्या थी, वहाँ आई और उन्हें उन इष्ट, कान्त, प्रिय, मनोज्ञ, मनाम, उदार, कल्याणरूप, शिव, धन्य, मंगलमय तथा शोभायुक्त परिमित, मधुर एवं मंजुल वचनों से जगाने लगी । राजा जागृत हुआ । राजा की आज्ञा होने पर रानी विचित्र मणि और रत्नों की रचना से चित्रित भद्रासन पर बैठी । और उत्तम सुखासन से बैठ कर आश्वस्त और विश्वस्त हुई रानी प्रभावती, बल राजा से इष्ट, कान्त यावत् मधुर वचनों से बोली-“हे देवानुप्रिय ! आज मैं सो रही थी, तब मैंने यावत् अपने मुख में प्रविष्ट होते हुए सिंह को स्वप्न में देखा और मैं जाग्रत हुई हूं । तो हे देवानुप्रिय ! मुझे इस उदार यावत् महास्वप्न का क्या कल्याणरूप फल विशेष होगा ?
तदनन्तर वह बल राजा प्रभावती देवी से इस बात को सुनकर और समझकर हर्षित और सन्तुष्ट हुआ यावत् उसका हृदय आकर्षित हुआ । मेघ की धारा से विकसित कदम्ब के सुगन्धित पुष्प के समान उसका शरीर पुलकित हो उठा, रोमकूप विकसित हो गए । राजा बल उस स्वप्न के विषय में अवग्रह करके ईहा में प्रविष्ट हुआ, फिर उसने अपने स्वाभाविक बुद्धिविज्ञान से उस स्वप्न के फल का निश्चय किया । उसके बाद इष्ट, कान्त यावत् मंगलमय, परिमित, मधुर एवं शोभायुक्त सुन्दर वचन बोलता हुआ राजा बोला-“हे देवी ! तुमने उदार स्वप्न देखा है । देवी ! तुमने कल्याणकारक यावत् शोभायुक्त स्वप्न देखा है । हे देवी ! तुमने आरोग्य, तुष्टि, दीर्घायु, कल्याणरूप एवं मंगलकारक स्वप्न देखा है । हे देवानुप्रिये ! (तुम्हें) अर्थलाभ, भोगलाभ, पुत्रलाभ
और राज्या लाभ होगा । हे देवानुप्रिये ! नौ मास और साढ़े सात दिन व्यतीत होने पर तुम हमारे कुल में केतु-समान, कुल के दीपक, कुल में पर्वततुल्य, कुल का शेखर, कुल का तिलक, कुल की कीर्ति फैलाने वाले, कुल को आनन्द देने वाले, कुल का यश बढ़ाने वाले, कुल के आधार, कुल में वृक्ष समान, कुल की वृद्धि करने वाले, सुकुमाल हाथ-पैर वाले, अंगहीनतारहित, परिपूर्ण पंचेन्द्रिययुक्त शरीर वाले, यावत् चन्द्रमा के समान सौम्य आकृति वाले, कान्त, प्रियदर्शन, सुरूप एवं देवकुमार के समान कान्ति वाले पुत्र को जन्म दोगी ।" वह बालक भी बालभाव से मुक्त होकर विज्ञ और कलादि में परिपक्व होगा । यौवन प्राप्त होते ही वह शूरवीर, पराक्रमी तथा विस्तीर्ण एवं विपुल बल और वाहन वाला राज्याधिपति राजा होगा । अतः हे देवी ! तुमने उदार स्वप्न देखा है, यावत् देवी ! तुमने आरोग्य, तुष्टि यावत् मंगलकारक स्वप्न देखा है, इस प्रकार बल राजा ने प्रभावती देवी को इष्ट यावत् मधुर वचनों से वही बात दो बार और तीन बार कही ।
तदनन्तर वह प्रभावती रानी, बल राजा से इस बात को सुन कर, हृदय में धारण करके हर्षित और सन्तुष्ट हुई; और हाथ जोड़ कर यावत् बोली-“हे देवानुप्रिय ! आपने जो कहा, वह यथार्थ है, देवानुप्रिय ! वह सत्य है, असंदिग्ध है । वह मुझे इच्छित है, स्वीकृत है, पुनः पुनः इच्छित और स्वीकृत है ।" इस प्रकार स्वप्न के फल को सम्यक् रूप से स्वीकार किया और फिर