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भगवती-२६/-/१/९९२
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जानना । इसी प्रकार ज्ञानावरणीय के विषय में भी जानना । अन्तरायिक तक इसी प्रकार जानना । इस प्रकार जीव से लेकर वैमानिक पर्यन्त ये नौ दण्डक होते हैं ।
| शतक-२८ उद्देशक-२ । [९९३] भगवन् ! अनन्तरोपपत्रक नैरयिकों ने किस गति में पापकर्मों का समर्जन किया था, कहाँ आचरण किया था । गौतम ! वे सभी तिर्यञ्चयोनिकों में थे, इत्यादि पूर्वोक्त आठों भंगों कहना । अनन्तरोपपन्नक नैरयिकों की अपेक्षा लेश्या आदि से लेकर यावत् अनाकारोपयोगपर्यन्त भंगों में से जिसमें जो भंग पाया जाता हो, वह सब विकल्प से वैमानिक तक कहना चाहिए । परन्तु अनन्तरोपपन्नक नैरयिकों के जो-जो बोल छोड़ने योग्य हैं, उनउन बोलों को बन्धीशतक के अनुसार यहाँ भी छोड़ देना चाहिए । इसी प्रकार अन्तरायकर्म तक नौ दण्डकसहित यह सारा उद्देशक कहना । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।
| शतक-२८ उद्देशक-३ से ११ । [९९१] 'बन्धीशतक' में उद्देशकों की परिपाटी समान आठों ही भंगों में जानना । विशेष यह है कि जिसमें जो बोल सम्भव हों, उसमें वे ही बोल यावत् अचरम उद्देशक तक कहने चाहिए । इस प्रकार ये सब ग्यारह उद्देशक हु । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । शतक-२८ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
(शतक-२९)
उद्देशक-१ [९९५] भगवन् ! जीव पापकर्म का वेदन एक साथ प्रारम्भ करते हैं और एक साथ ही समाप्त करते हैं ? अथवा एक साथ प्रारम्भ करते हैं और भिन्न-भिन्न समय में समाप्त करते हैं ? या भिन्न-भिन्न समय में प्रारम्भ करते हैं और एक साथ समाप्त करते हैं ? अथवा भिन्नभिन्न समय में प्रारम्भ करते हैं और भिन्न-भिन्न समय में समाप्त करते हैं ? गौतम ! कितने ही जीव (पापकर्मवेदन) एक साथ करते हैं और एक साथ ही समाप्त करते हैं यावत् कितने ही जीव विभिन्न समय में प्रारम्भ करते और विभिन्न समय में समाप्त करते हैं । भगवन् ! ऐसा क्यों कहा कि कितने ही जीव ? गौतम ! जीव चार प्रकार के कहे हैं । यथा-कई जीव समान आयु वाले हैं और समान उत्पन्न होते हैं, कई जीव समान आयु वाले हैं, किन्तु विषम समय में उत्पन्न होते हैं, कितने ही जीव विषम आयु वाले हैं और सम उत्पन्न होते हैं और कितने ही जीव विषम आयु वाले हैं और विषम समय में उत्पन्न होते हैं । इनमें से जो समान आयु वाले और समान उत्पन्न होते हैं, वे पापकर्म का वेदन एक साथ प्रारम्भ करते हैं और एक साथ ही समाप्त करते हैं, जो समान आयु वाले हैं, किन्तु विषम समय में उत्पन्न होते हैं, वे पापकर्म का वेदन एक साथ प्रारम्भ करते हैं किन्तु भिन्न-भिन्न समय में समाप्त करते हैं, जो विषम आयु वाले हैं और समान समय में उत्पन्न होते हैं, वे पापकर्म का भोग भिन्न-भिन्न समय में प्रारम्भ करते हैं और एक साथ अन्त करते हैं और जो विषय आयु वाले हैं और विषम समय में उत्पन्न होते हैं, वे पापकर्म का वेदन भी भिन्न-भिन्न समय में प्रारम्भ करते हैं और अन्त भी विभिन्न समय में करते हैं, इस कारण से हे गौतम ! पूर्वोक्त प्रकार का कथन किया है ।
भगवन् ! सलेश्यी जीव पापकर्म का वेदन एक काल में करते हैं ? इत्यादि प्रश्न ।