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भगवती-२६/-/७/९८६
३०१ प्रश्न । गौतम ! परम्परोपपन्नक नैरयिकादि-सम्बन्धी उद्देशक समान परम्पराहारक उद्देशक कहना।
| शतक-२६ उद्देशक-८ । [९८७] भगवन् ! क्या अनन्तपर्याप्तक नैरयिक ने पापकर्म बांधा था ? अनन्तरोपपन्नक उद्देशक समान यह सारा उद्देशक कहना । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।
| शतक-२६ उद्देशक-९ [९८८] भगवन् ! क्या परम्परपर्याप्तक नैरयिक ने पापकर्म बांधा था ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! परम्परोपपन्नक उद्देशक समान परम्परपर्याप्तक नैरयिकादि उद्देशक समग्ररूप से कहना ।
शतक-२६ उद्देशक-१०॥ [९८९] भगवन् ! क्या चरम नैरयिक ने पापकर्म बांधा था ? परम्परोपपन्नक उद्देशक समान चरम नैरयिकादि समग्र उद्देशक कहना । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।
शतक-२६ उद्देशक-११|| [९९०] भगवन् ! अचरम नैरयिक ने पापकर्म बांधा था ? इत्यादि प्रश्न | गौतम ! किसी ने पापकर्म बांधा था, इत्यादि प्रथम उद्देशक समान सर्वत्र प्रथम और द्वितीय भंग पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक पर्यन्त कहना । भगवन् ! क्या अचरम मनुष्य ने पापकर्म बांधा था ? किसी मनुष्य ने बांधा था, बांधता है और बांधेगा, किसी ने बांधा था, बांधता है और आगे नहीं बांधेगा, किसी मनुष्य ने बांधा था, नहीं बांधता है और आगे बांधेगा । भगवन् ! क्या सलेश्यी अचरम मनुष्य ने पापकर्म बांधा था ? गौतम ! पूर्ववत् अन्तिम भंग को छोड़कर शेष तीन भंग समान कहना । विशेष यह है कि जिन बीस पदों में वहाँ चार भंग कहे हैं उन पदों में से यहाँ आदि के तीन भंग कहने । यहाँ अलेश्यी, केवलज्ञानी और अयोगी के विषय में प्रश्न नहीं करना चाहिए । शेष स्थानों में पूर्ववत् जानना । वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के विषय में नैरयिक समान कहना ।
भगवन् ! अचरम नैरयिक ने ज्ञानावरणीयकर्म बांधा था ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! पापकर्मबन्ध समान कहना । विशेष यह है कि सकषायी और लोभकषायी मनुष्यों में प्रथम
और द्वितीय भंग कहने चाहिए । शेष अठारह पदों में शेष तीन भंग कहने चाहिए । शेष सर्वत्र वैमानिक पर्यन्त पूर्ववत् जानना । दर्शनावरणीयकर्म के विषय में इसी प्रकार समझना । वेदनीयकर्म के विषय में सभी स्थानों में वैमानिक तक प्रथम और द्वितीय भंग कहना । विशेष यह है कि अचरम मनुष्यों में अलेश्यी, केवलज्ञानी और अयोगी नहीं होते । भगवन् ! अचरम नैरयिक ने क्या मोहनीय कर्म बांधा था ? पापकर्मबन्ध समान अचरम नैरयिक के विषय में समस्त कथन वैमानिक तक कहना । भगवन् ! क्या अचरम नैरयिक ने आयुष्य कर्म बांधा था ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! प्रथम और तृतीय भंग जानना । .
इसी प्रकार नैरयिकों के बहवचन-सम्बन्धी पदों में पहला और तीसरा भंग कहना । किन्तु सम्यग्मिथ्यात्व में केवल तीसरा भंग कहना । इस प्रकार यावत् स्तनितकुमारों तक कहना चाहिए । पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, वनस्पतिकायिक और तेजोलेश्या, इन सबमें तृतीय