________________
भगवती-११/-/१०/५११
चारों बलिपिण्डों को पृथ्वीतल पर पहुँचने से पहले ही, शीघ्र ग्रहण करने में समर्थ हों ऐसे उन देवों में से एक देव, हे गौतम ! उस उत्कृष्ट यावत् दिव्य देवगति से पूर्व में जाए, एक देव दक्षिणदिशा की ओर जाए, इसी प्रकार एक देव पश्चिम की ओर, एक उत्तर की ओर, एक देव ऊर्ध्वदिशा में
और एक देव अधोदिशा में जाए | उसी दिन और उसी समय एक हजार वर्ष की आय वाले एक बालक ने जन्म लिया । तदनन्तर उस बालक के माता-पिता चल बसे । वे देव, लोक का अन्त प्राप्त नहीं कर सकते । उसके बाद वह बालक भी आयुष्य पूर्ण होने पर कालधर्म को प्राप्त हो गया। उतने समय में भी वे देव, लोक का अन्त प्राप्त न कर सके । उस बालक के हड्डी, मज्जा भी नष्ट हो गई, तब भी वे देव, लोक का अन्त नहीं पा सके । फिर उस बालक की सात पीढ़ी तक का कुलवंश नष्ट हो गया तब भी वे देव, लोक का अन्त प्राप्त न कर सके । तत्पश्चात् उस बालक के नाम-गोत्र भी नष्ट हो गए, उतने समय तक भी वे देव, लोक का अन्त प्राप्त न कर सके ।
भगवन् ! उन देवों का गत क्षेत्र अधिक है या अगत क्षेत्र ? हे गौतम ! गतक्षेत्र अधिक है, अमतक्षेत्र गतक्षेत्र के असंख्यातवे भाग है । अगतक्षेत्र से गतक्षेत्र असंख्यातगुणा है । हे गौतम ! लोक इतना बड़ा है । भगवन् ! अलोक कितना बड़ा कहा गया है ? गौतम ! यह जो समयक्षेत्र है, वह ४५ लाख योजन लम्बा-चौड़ा है इत्यादि सब स्कन्दक प्रकरण के अनुसार जानना, यावत् वह (पूर्वोक्तवत्) परिधियुक्त है । किसी काल और किसी समय में, दस महर्द्धिक देव, इस मनुष्यलोक को चारों ओर से घेर कर खड़े हों । उनके नीचे आठ दिशाकुमारियाँ, आठ बलिपिण्ड लेकर मनुषोत्तर पर्वत की चारों दिशाओं और चारों विदिशाओं में बाह्याभिमुख होकर खड़ी रहें । तत्पश्चात् वे उन आठों बलिपिण्डों को एक साथ मनुष्योत्तर पर्वत के बाहर की ओर फैंकें । तब उन खड़े हुए देवों में से प्रत्येक देव उन बलिपिण्डों को धरती पर पहुँचने से पूर्व शीघ्र ही ग्रहण करने में समर्थ हों, ऐसी शीग्र, उत्कृष्ट यावत् दिव्य देवगति द्वारा वे दसों देव, लोक के अन्त में खड़े रह कर उनमें से एक देव पूर्व दिशा की ओर जाए, एक देव दक्षिणपूर्व की ओर जाए, इसी प्रकार यावत् एक देव उत्तरपूर्व की ओर जाए, एक देव ऊर्ध्वदिशा की ओर जाए और एक देव अधोदिशा में जाए । उस काल और उसी समय में एक गृहपति के घर में एक बालक का जन्म हुआ हो, जो कि एक लाख वर्ष की आयु वाला हो । तत्पश्चात् उस बालक के माता-पिता का देहावसान हआ, इतने समय में भी देव अलोक का अन्त नहीं प्राप्त कर सके । तत्पश्चात उस बालक का भी देहान्त हो गया । उसकी अस्थि और मज्जा भी विनष्ट हो गई और उसकी सात पीढ़ियों के बाद वह कुल-वंश भी नष्ट हो गया तथा उसके नाम-गोत्र भी समाप्त हो गए । इतने लम्बे समय तक चलते रहने पर भी देव अलोक के अन्त को प्राप्त नहीं कर सकते । भगवन् ! उन देवों का गतक्षेत्र अधिक है, या अगतक्षेत्र अधिक है ? गौतम ! वहाँ गतक्षेत्र बहुत नहीं, अगतक्षेत्र ही बहुत है । गतक्षेत्र से अगतक्षेत्र अनन्तगुणा है । अगतक्षेत्र से गतक्षेत्र अनन्तवें भाग है । हे गौतम ! अलोक इतना बड़ा है ।
[५१२] भगवन् ! लोक के एक आकाशप्रदेश पर एकेन्द्रिय जीवों के जो प्रदेश हैं, यावत् पंचेन्द्रिय जीवों के और अनिन्द्रिय जीवों के जो प्रदेश हैं, क्या वे सभी एक दूसरे के साथ बद्ध हैं,
अन्योन्य स्पृष्ट हैं यावत् परस्पर-सम्बद्ध हैं ? भगवन् ! क्या वे परस्पर एक दूसरे को आबाधा (पीड़ा) और व्याबाधा (विशेष पीड़ा) उत्पन्न करते हैं ? या क्या वे उनके अवयवों का छेदन करते