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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
में क्या जीव हैं; जीव के देश हैं, जीव के प्रदेश हैं, अजीव हैं, अजीव के देश हैं या अजीव के प्रदेश हैं ? गौतम ! (वहाँ) जीव नहीं, किन्तु जीवों के देश हैं, जीवों के प्रदेश भी हैं, यथा अजीव हैं, अजीवों के देश हैं और अजीवों के प्रदेश भी हैं । इनमें जो जीवों के देश हैं, वे नियम से एकेन्द्रिय जीवों के देश हैं, अथवा एकेन्द्रियों के देश और द्वीन्द्रिय जीव का एक देश है, अथवा एकेन्द्रिय जीवों के देश और द्वीन्द्रिय जीव के देश हैं; इसी प्रकार मध्यम भंग-रहित, शेष भंग, यावत् अनिन्द्रिय तक जानना, यावत् अथवा एकेन्द्रिय जीवों के देश और अनिन्द्रिय जीवों के देश हैं । इनमें जो जीवों के प्रदेश हैं, वे नियम से एकेन्द्रिय जीवों के प्रदेश हैं, अथवा एकेन्द्रिय जीवों के प्रदेश और एक द्वीन्द्रिय जीव के प्रदेश हैं, अथवा एकेन्द्रिय जीवों का प्रदेश और द्वीन्द्रिय जीवों के प्रदेश हैं । इसी पकार यावत् पंचेन्द्रिय तक प्रथम भंग को छोड़ कर दो-दो भंग कहना, अनिन्द्रिय में तीनों भंग कहना । उनमें जो अजीव हैं, वे दो प्रकार के हैं यथा-रूपी अजीव और अरूपी अजीव । रूपी अजीवों का वर्णन पूर्ववत् । अरूपी अजीव पांच प्रकार हैं-यथा धर्मास्तिकाय का देश, धर्मास्तिकाय का प्रदेश, अधर्मास्तिकाय का देश, अधर्मास्तिकाय का प्रदेश और अद्धा-समय । भगवन् ! क्या तिर्यग्लोक-क्षेत्रलोक के एक आकाशप्रदेश में जीव हैं; इत्यादि प्रश्न । गौतम ! अधोलोक-क्षेत्रलोक के समान तिर्यग्लोक-क्षेत्रलोक के विषय में समझ लेना । इस प्रकार ऊर्ध्वलोक-क्षेत्रलोक के एक आकाशप्रदेश के विषय में भी जानना । विशेष इतना है कि वहाँ अद्धा-समय नहीं है, (इस कारण) वहाँ चार प्रकार के अरूपी अजीव हैं । लोक के एक आकाशप्रदेश के विषय में भी अधोलोक-क्षेत्रलोक के आकाशप्रदेश के कथन के समान जानना । भगवन् ! क्या अलोक के एक आकाशप्रदेश में जीव हैं ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! वहाँ जीव नहीं हैं, जीवों के देश नहीं हैं, इत्यादि पूर्ववत्; यावत् अलोक अनन्त अगुरुलघुगुणों से संयुक्त है और सर्वाकाश के अनन्तवें भाग न्यून है ।
द्रव्य से-अधोलोक-क्षेत्रलोक में अनन्त जीवद्रव्य हैं, अनन्त अजीवद्रव्य हैं और अनन्त जीवाजीवद्रव्य हैं । इसी प्रकार तिर्यग्लोक-क्षेत्रलोक में भी जानना । इसी प्रकार ऊर्ध्वलोकक्षेत्रलोक में भी जानना । द्रव्य से अलोक में जीवद्रव्य नहीं, अजीवद्रव्य नहीं और जीवाजीवद्रव्य भी नहीं, किन्तु अजीवद्रव्य का एक देश है, यावत् सर्वाकाश के अनन्तवें भाग न्यून है । काल से-अधोलोक-क्षेत्रलोक किसी समय नहीं था-ऐसा नहीं; यावत् वह नित्य है । इसी प्रकार यावत् अलोक के विषय में भी कहना । भाव से-अधोलोक-क्षेत्रलोक में 'अनन्तवर्णपर्याय' है, इत्यादि, द्वितीय शतक के में वर्णित स्कन्दक-प्रकरण अनुसार जानना, यावत् अनन्त अगुरुलघु-पर्याय हैं। इसी प्रकार यावत् लोक तक जानना । भाव से अलोक में वर्ण-पर्याय नहीं, यावत् अगुरुलघुपर्याय नहीं है, परन्तु एक अजीवद्रव्य का देश है, यावत् वह सर्वाकाश के अनन्तवें भाग कम है ।
[५११] भगवन् ! लोक कितना बड़ा कहा गया है ? गौतम ! यह जम्बूद्वीप नामक द्वीप, समस्त द्वीप-समुद्रों के मध्य में है; यावत् इसकी परिधि तीन लाख, सोलह हजार, दो सौं सत्ताईस योजन, तीन कोस, एक सौ अट्ठाईस धनुष और साढे तेरह अंगुल से कुछ अधिक है । किसी काल और किसी समय महर्द्धिक यावत् महासुख-सम्पन्न छह देव, मन्दर पर्वत पर मन्दर की चूलिका के चारों ओर खड़े रहें और नीचे चार दिशाकुमारी देवियां चार बलिपिण्ड लेकर जम्बूद्वीप नामक द्वीप की चारों दिशाओं में बाहर की ओर मुख करके खड़ी रहें । फिर वे चारों देवियाँ एक साथ चारों बलिपिण्डों को बाहर की ओर फैंकें । हे गौतम ! उसी समय उन देवों में से एक-एक देव,