________________
भगवती - ११/-/९/५०९
२७
पूछा- 'भगवन् ! सिद्ध होने वाले जीव किस संहनन से सिद्ध होते हैं ?' गौतम ! वे वज्रऋषभनाराचसंहनन से सिद्ध होते हैं; इत्यादि औपपातिकसूत्र के अनुसार संहनन, संस्थान, उच्चत्व, आयुष्य, परिवसन, इस प्रकार सम्पूर्ण सिद्धिगण्डिका- 'सिद्ध जीव अव्याबाध शाश्वत सुख का अनुभव करते हैं, यहाँ तक कहना चाहिए । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । शतक - ११ उद्देशक - १०
[५१०] राजगृह नगर में यावत् पूछा- भगवन् ! लोक कितने प्रकार का है ? गौतम ! चार प्रकार है । यथा - द्रव्यलोक, क्षेत्रलोक, काललोक और भावलोक ।
भगवन् ! क्षेत्रलोक कितने प्रकार का है ? गौतम ! तीन प्रकार का । यथा - अधोलोक - क्षेत्रलोक, तिर्यग्लोक - क्षेत्रलोक और ऊर्ध्वलोक - क्षेत्रलोक । भगवन् ! अधोलोक - क्षेत्रलोक कितने प्रकार का है ? गौतम ! सात प्रकार का यथा - रत्नप्रभापृथ्वी - अधोलोक - क्षेत्रलोक, यावत् अधः सप्तमपृथ्वी- अधोलोक - क्षेत्रलोक । भगवन् ! तिर्यग्लोक - क्षेत्रलोक कितने प्रकार का है ? गौतम ! असंख्यात प्रकार का यथा - जम्बूद्वीप - तिर्यग्लोक - क्षेत्रलोक, यावत् स्वयम्भूरमणसमुद्रतिर्यग्लोक - क्षेत्रलोक । भगवन् ! ऊर्ध्वलोक क्षेत्रलोक कितने प्रकार का है ? गौतम ! पन्द्रह प्रकार का है । यथा - सौधर्मकल्प- ऊर्ध्वलोक- क्षेत्रलोक, यावत् अच्युतकल्प- ऊर्ध्वलोक- क्षेत्रलोक, ग्रैवेयक विमान-ऊर्ध्वलोक- क्षेत्रलोक, अनुत्तरविमान-ऊर्ध्वलोक- क्षेत्रलोक, और ईषत्प्राग्भारपृथ्वीऊर्ध्वलोक- क्षेत्रलोक |
भगवन् ! अधोलोक - क्षेत्रलोक का किस प्रकार का संस्थान है ? गौतम ! त्रपा के आकार का है । भगवन् ! तिर्यग्लोक - क्षेत्रलोक का संस्थान किस प्रकार का है ? गौतम ! झालर के आकार का है । भगवन् ! ऊर्ध्वलोक- क्षेत्रलोक किस प्रकार के संस्थान का है ? गौतम ! ऊर्ध्वमृदंग के आकार का है । भगवन् ! लोक का संस्थान किस प्रकार का है ? गौतम ! सुप्रतिष्ठक के आकार का । यथा - वह नीचे विस्तीर्ण है, मध्य में संक्षिप्त है, इत्यादि सातवें शतक में कहे अनुसार जानना । यावत्-उस लोक को उत्पन्न ज्ञान- दर्शन - धारक केवलज्ञानी जानते हैं, इसके पश्चात् वे सिद्ध होते हैं, यावत् समस्त दुःखों का अन्त करते हैं । भगवन् ! अलोक का संस्थान कैसा है ? गौतम ! अलोक का संस्थान पोले गोले के समान है ।
भगवन् ! अधोलोक - क्षेत्रलोक में क्या जीव हैं, जीव के देश हैं, जीव के प्रदेश हैं ? अजीव हैं, अजीव के प्रदेश हैं ? गौतम ! दसवें शतक के ऐन्द्री दिशा समान कहना । यावत्अद्धा समय रूप है । भगवन् ! क्या तिर्यग्लोक में जीव हैं ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! पूर्ववत् जानना । इसी प्रकार ऊर्ध्वलोक - क्षेत्रलोक के विषय में भी जानना, इतना विशेष है कि ऊर्ध्वलोक में अरूपी के छह भेद ही हैं, क्योंकि वहाँ अद्धासमय नहीं है ।
भगवन् ! क्या लोक में जीव हैं ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! दूसरे शतक के अस्ति उद्देशक के लोकाकाश के विषय में जीवादि के कथन समान, विशेष इतना है कि यहां अरूपी के सात भेद कहने चाहिए; यावत् अधर्मास्तिकाय के प्रदेश, आकाशास्तिकाय का देश, आकाशास्तिकाय के प्रदेश और अद्धा समय । शेष पूर्ववत् । भगवन् ! क्या अलोक में जीव है ? गौतम ! दूसरे शतक के दसवें अस्तिकाय उद्देशक में अलोकाकाश के विषय अनुसार जानना; यावत् वह आकाश के अनन्तवें भाग न्यून है । भगवन् ! अधोलोक क्षेत्रलोक के एक आकाशप्रदेश